चेक बाउंस को गैर आपराधिक बनाने का कैट ने किया विरोध, वित्त मंत्री को लिखा पत्र Jamshedpur News
केंद्र सरकार निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा-138 को गैर आपराधिक बनाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव का देशभर के व्यापारी विरोध कर रहे हैं।
जमशेदपुर (जमशेदपुर समाचार)। केंद्र सरकार निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा-138 को गैर आपराधिक बनाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव का देशभर के व्यापारी विरोध कर रहे हैं। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिख अपनी आपत्ति जताई है।
कैट ने कहा कि भारत की वर्तमान व्यापार प्रणाली में बड़े पैमाने पर पोस्ट डेटेड चेक का चलन है। कम पूंजी वाले व्यापारियों को पोस्ट डेटेड चेक देने पर कुछ समय का उधार मिल जाता है। इससे उनका व्यापार कम पूंजी में भी चालू रहता है और समय आने पर वे अपना भुगतान भी कर पाते हैं।
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल व राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोंथालिया ने कहा कि सरकार का यह कदम देश में छोटे मामलों को अदालत में न जाने एवं अदालतों पर से काम का बोझ कम करने के बारे में एक अच्छी सोच है, लेकिन इससे उनके हौसले बुलंद होंगे, जो आदतन अपराधी हैं। वे चेक देकर व्यापारियों से सामान लेकर लापता हो जाएंगे और उनके चेक बाउंस होंगे। यदि इस धारा को गैर आपराधिक बना दिया तो ईमानदार व्यापारी जो पोस्ट डेटेड चेक देकर माल लेता है, उसको बड़ी परेशानी होगी। आम लोग भी इएमआइ पर बहुत सामान व घर खरीदते हैं और इसके लिए पोस्ट डेटेड चेक देते हैं। इस धारा को गैर आपराधिक बनाने से कोई भी पोस्ट डेटेड चेक स्वीकार नहीं करेगा। एक तरफ सरकार ने हाल ही में धारा 143 और 148 को शामिल कर इस कानून को अधिक मजबूत बनाने की कोशिश की है, वहीं धारा 138 में रियायत बेमानी होगी।
सोंथालिया ने कहा कि पोस्ट डेटेड चेक का भारत के व्यापार में एक महत्वपूर्ण साधन है। यह एक तरह से क्रेडिट के लिए गारंटी के रूप में कार्य करके कार्यशील पूंजी सुनिश्चित करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर चेक जारी करने वाले व्यक्ति की कोई आपराधिक देनदारी नहीं होगी तो यह व्यापार में बेईमानी को बढ़ावा देगी। इस धारा में रियायत से व्यापार के मूल सिद्धांत को नष्ट कर दिया जाएगा और व्यापारियों को मुकदमेबाजी की दया पर छोड़ दिया जाएगा, जिसके तहत न्याय पाने में कई साल लगते हैं। धारा 138 में बड़े कड़े प्रावधान होने के बावजूद देश भर की अदालतों में चल रहे मामलों में 20 फीसद से अधिक मामले केवल चेक बाउंस से संबंधित हैं। यदि यह गैर आपराधिक हो गया तो इस प्रतिशत में अप्रत्याशित वृद्धि होगी।