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नुकसान की भरपाई को ऊंची कीमत में बिक रहा ब्रायलर चिकन Jamshedpur News

सावन के माह में हरी सब्जियों की कीमतों में उछाल जबकि चिकन व मछली के दाम में कमी देखी जाती है। इस साल सावन में ऐसा नहीं है।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Mon, 20 Jul 2020 11:29 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jul 2020 11:29 PM (IST)
नुकसान की भरपाई को ऊंची कीमत में बिक रहा ब्रायलर चिकन Jamshedpur News
नुकसान की भरपाई को ऊंची कीमत में बिक रहा ब्रायलर चिकन Jamshedpur News

जमशेदपुर ( जागरण संवाददाता)। सावन के माह में हरी सब्जियों की कीमतों में उछाल जबकि चिकन व मछली के दाम में कमी देखी जाती है। इस साल सावन में ऐसा नहीं है।

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चिकन व मछली के भाव आसमान छू रहे हैं। बंगाल ओडिशा की सुगना, जाफा सहित एक दर्जन चिकन का व्यापार करने वाली बड़ी कंपनियों ने इस बार ब्रायलर मुर्गे के चूजों को फार्म में काफी कम छोड़ा है। मांग के अनुपात में सप्लाई कम होने से ब्रायलर मुर्गे के बड़े व्यापारी अब अपने घाटे को मुनाफा में बदलने की कोशिश में लगे हैं। लॉकडाउन के दौरान ब्रायलर मुर्गे नहीं बिक रहे थे। 20-30 रुपये प्रतिकिलो तक ब्रायलर मुर्गे की बिक्री हुई। बिक्री कम होने से मुर्गे रखे-रखे ही मर गए थे। ऐसे में इसका कारोबार करने वाली बड़ी कंपनियां दोबारा घाटा नहीं झेलना चाहतीं।

प्रतिदिन 23 लाख का होता था कारोबार

लौहनगरी में लॉकडाउन से पहले प्रतिदिन  15 ट्रक माल शहर में आता था। एक ट्रक में 15 से 20 ङ्क्षक्वटल ब्रायलर मुर्गा आता था जिसकी कीमत सवा लाख रुपये होती थी। इसके अलावा रोज लगभग 20 ङ्क्षक्वटल देशी मुर्गा आता था। कुल मिलाकर प्रतिदिन लगभग 23 लाख रुपये का कारोबार होता था। साकची में चार, बिष्टुपुर में तीन, मानगो में तीन, जुगसलाई में तीन और बारीडीह में दो मुर्गा के थोक कारोबारी हैं।

साकची ए वन चिकन के संचालक सोनू रजा खान ने बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण पहले की अपेक्षा ब्रायलर मुर्गे की सप्लाई आधी हो गई है। इस कारण ऊंचे दाम में बेचा जा रहा है। उन्होंने बताया कि फिलहाल कीमतों में कमी नहीं आएगी। सावन के माह में भी ब्रायलर मुर्गा बाजार में 140 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। जबकि पिछले वर्ष सावन में ब्रायलर 90 रुपये प्रति किलो बेचा गया था।  

पोटका, पटमदा व बहरागोड़ा के तालाब से चोरी हो जा रहीं मछलियां

पोटका, पटमदा व बहरागोड़ा के तालाबों में लॉकडाउन के दौरान तालाब से ही मछलियों की चोरी हो गई। इस कारण बाजार में इन ग्रामीण क्षेत्रों से मछली की आवक कम हो गई है। दूसरी ओर फिर लॉकडाउन की स्थिति में मछली खराब होने का भय भी व्यापारियों को सता रहा है। लॉकडाउन की आशंका में कारोबारी तालाब से मछलियां नहीं निकलवा रहे हैं। साकची मछली बाजार के थोक कारोबारी उमेश ने बताया कि इस बाजार में कुल आठ थोक कारोबारी हैं।

शहर में लॉकडाउन से पहले प्रतिदिन चार से पांच ट्रक रोहू और कतला मछली आंध्र प्रदेश से आती थी। दो ट्रक समुद्री मछली आती थी। रोहू व कतला मछली प्रति ट्रक एक लाख रुपये मूल्य की होती है। समुद्री मछली जिसमें हिल्सा, सुरमई, पॉम्पलेट, भेटकी, फारसी और झींगा शामिल हंै, प्रति ट्रक 1.50 लाख रुपये में आती थी। कोरोना वायरस संक्रमण के कारण रोहू, कतला केवल एक ट्रक ही आ रही हैं। वहीं समुद्री मछली बमुश्किल कभी-कभार ही आ रही हैं।

साकची में आठ और बिष्टुपुर में  मछली के छह थोक कारोबारी हैं। आवक कम होने के कारण मछली की कीमतों में भी उछाल है सावन माह में भी रोहू, कतला मछली 190 से 240 रुपये प्रतिकिलो बाजार में बिक रही है। जबकि पिछले वर्ष सावन माह में -80-90 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकी थी।  


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