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ब्रास मेटल एवं डोकरा की मूर्तियों ने ली चीनी सामानों की जगह, 10 गुणा बढ़े स्वदेशी उत्पादों की डिमांड

चीन से हर साल साढ़े पांच लाख करोड़ के सामान भारत में आयात होते थे। इसमें चाइनीज लाइट राखी कलावा सूत्र खिलौने मूर्तियां पटाखे सजावट के सामान व गिफ्ट आइटम होते थे लेकिन इस वर्ष चीन को एक भी आर्डर नहीं दिया गया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 01 Nov 2021 05:47 PM (IST)Updated: Mon, 01 Nov 2021 05:47 PM (IST)
ब्रास मेटल एवं डोकरा की मूर्तियों ने ली चीनी सामानों की जगह, 10 गुणा बढ़े स्वदेशी उत्पादों की डिमांड
कोलकाता, अहमदाबाद, चंडीगढ़ और दिल्ली में इन दिनों स्वदेशी लाइट बन रही है।

निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर : इस दीवाली में चीन के सामानों व गिफ्ट आइटम के बजाए झारखंड में ब्रास मेटल, डोकरा की मूर्तियों सहित छऊ कलाकृतियों ने तो कश्मीर में पशमीना शॉल और बिहार की मधुबनी पेटिंग की डिमांड बढ़ गई है। इसकी मुख्य वजह गलवन घाटी की घटना है जिसके बाद से एक भी भारतीय व्यवसायी चीन को कोई आर्डर नहीं दिया है। कंफडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने पिछले दो सालों से चीनी सामानों का बहिष्कार करने और स्वदेशी अपनाने के लिए अभियान चला रहे हैं ताकि प्रधानमंत्री के वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत के तहत स्थानीय कलाकारों को प्रमोट किया जा सके।

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चीन से हर साल साढ़े पांच लाख करोड़ के सामान भारत में आयात होते थे। इसमें चाइनीज लाइट, राखी, कलावा सूत्र, खिलौने, मूर्तियां, पटाखे, सजावट के सामान व गिफ्ट आइटम होते थे लेकिन इस वर्ष चीन को एक भी आर्डर नहीं दिया गया है। साथ ही कैट देश भर की अपनी शाखाओं की मदद से संबधित क्षेत्र की मशहूर उत्पादों, कलाकृतियों को प्रमोट कर रही है ताकि आत्मनिर्भर भारत के तहत स्थानीय कलाकारों को उपयुक्त मंच मिल सके।

गलवन घटना के बाद हम भारतीयों की बदली है मानसिकता

कैट के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि गलवन घाटी वाली घटना के बाद हम भारतीयों की मानसिकता भी बदली है। पहले हम सस्ते सामानों के लिए चाइनीज सामान खरीदते थे। अब अधिकतर भारतीय पहले पूछते हैं कि ये सामान चाइनीज तो नहीं। लोगों को पता है कि चाइनीज सामान खरीदकर हम चीनी सैनिक को मजबूती देंगे। इसलिए अधिकतर लोग चीनी सामान नहीं खरीद रहे हैं। ऐसे में व्यवसायी भी चीनी सामान नहीं बिकने की जोखिम नहीं लेना चाहते।

चीन को नहीं मिला 50 हजार करोड़ का आर्डर

प्रवीण का कहना है कि देश में 11 हजार बड़े आयातक व्यवसायी हैं जो हर साल राखी से लेकर नववर्ष तक चीन से साढ़े पांच लाख करोड़ का सामान मंगवाते थे। लेकिन इस वर्ष दीवाली में एक भी भारतीय इंपोटर ने दीवाली के लिए चीन को आर्डर नहीं दिया है। कैट ने पिछले दिनों देश के 20 बड़े डिस्ट्रीब्यूटर प्वाइंट में सर्वे कराया था जिसमें यह बात सामने आई है। इससे चीन को लगभग 50 हजार करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है।

देश के विभिन्न राज्यों में बनने वाले स्थानीय उत्पादों को कैट प्रमोट कर रहा है ताकि चीनी सामानों की जगह स्वदेशी उत्पाद जगह ले सके। इसके कारण गिफ्ट में काश्मीर का पशमीना शॉल से लेकर बिहार की मधुबनी पेटिंग और झारखंड की पारंपरिक छऊ कलाकृतियों की डिमांड पूरे देश भर में बढ़ी है।

-सुरेश सोंथालिया, राष्ट्रीय सचिव, कंफडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट)

आजादी के अमृत महोत्सव वाले वर्ष में हमारी डिमांड 10 गुणा बढ़ी है जो बताता है कि हम मानसिक रूप से आजाद हो रहे हैं। पिछले 10 माह में मिट्टी के डिजाइनर दिए, घर सजाने के लिए डोकरा की मूर्तियां, उपहार में देने के लिए बांस के गिफ्ट हैम्पर, पेटिंग की ऑनलाइन डिमांड काफी बढ़ी गई है।

-अमिताभ बोस, संस्थापक, कला मंदिर

आयात शुल्क भी बढ़ा, कंपनियाें ने लगाया स्वदेशी प्लांट

कैट के राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोंथालिया का कहना है कि गलवन घाटी की घटना के बाद केंद्र सरकार ने आयात शुल्क काफी बढ़ा दिया है। जिसके कारण आयातित सस्ते चाइनीज सामानों की कीमत भी बढ़ गई है। ऐसे में कई चीनी कंपनियों ने भारत में ही अपनी असेंबली लाइन लगाकर लाइट, बल्ब, झालर सहित अन्य सामान बनाकर मेड इन चाइना के बजाए मेड इन इंडिया का स्टीकर लगाकर भारतीय बाजारों में सप्लाई कर रहे हैं।

पिछले साल का माल जनवरी में आया

चीन से सामान मंगवाने में 90 दिन का समय लगता है। पिछले साल दीवाली से पहले भारतीय व्यापारियों ने आर्डर किया था लेकिन कोविड 19 के कारण अंतराष्ट्रीय बार्डर सील थे। इसके कारण चार मालवाहक जहाज में भरा सामान इस वर्ष हिंदुस्तान पहुंचा है। जो इन दिनों भारतीय बाजाराें में बिक रहा है।

तैयार हो रहे हैं स्वदेशी लाइट, तीन देशों से चिप आयात

देश के कोलकाता, अहमदाबाद, चंडीगढ़ और दिल्ली में इन दिनों स्वदेशी लाइट बन रही है। इसके लिए जापान, ताइवान और कोरिया से लाइट में लगने वाले चिप आयात किए जा रहे हैं। इसके अलावा एलईडी बल्ब, उसमें लगने वाला प्लास्टिकख् प्लग व स्विच स्वदेशी स्तर पर तैयार किए जा रहे हैं। इसके कारण भी स्वदेशी सामानों से भारतीय लाइट 30 से 50 प्रतिशत तक महंगी है।


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