Kolhan Jharkhand Election Result 2019 : जल-जंगल व जमीन के मुद्दे पर आदिवासियों का भरोसा नहीं जीत पाई भाजपा
Jharkhand Election Result 2019.जमीन लुटने के डर ने आदिवासी वोटरों को कमल से किया दूर विपक्ष ने हर गांव तक इस डर को पहुंचाने के लिए ताकत झोंकी!
जमशेदपुर (भादो माझी)। Kolhan Jharkhand Election Result 2019 जल-जंगल व जमीन के मुद्दे पर आदिवासियों का भरोसा जीत पाने में भाजपा की असफलता के कारण ही कोल्हान के आदिवासी बहुल इलाकों में कमल नहीं खिल सका।
रघुवर दास सरकार ने जब छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) में संशोधन लाने को ताकत लगा दी थी। उस समय पूरे राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में बड़ी तेजी से यह डर घर कर गया था कि अब आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है। विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम का सियासी लाभ लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा और हर गांव तक इस डर को पहुंचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। इस कारण,आदिवासी वोटरों को सीधे-सीधे अपनी जमीन जाने का डर और अधिक सताने लगा। यह डर इस चुनाव तक जारी रहा और मतों के रूप में विपक्षी दलों की झोली में जा गिरा। आदिवासी बहुल इलाकों में कमल नहीं खिलने का एक बहुत बड़ा कारण विपक्ष के द्वारा पैदा किया गया यह डर भी रहा।
कोल्हान के आदिवासी बहुल विधानसभा सीटों में यह मुद्दा पूरे चुनाव के दौरान तैरता रहा। ऐसा भी नहीं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को इसका भान नहीं था। बिल्कुल था। खुद भाजपा के कुछ विधायकों ने बकायदा चिट्ठी लिख कर मुख्यमंत्री को इस नाराजगी को लेकर अवगत कराया था,
आदिवासी स्वशासन व्यवस्था चलाने वाली परंपरागत माझी परगना महाल के तोरोप परगना दशमत हांसदा कहते हैं-'रघुवर दास सरकार ने आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को हल्के में लिया। रघुवर सरकार ने आदिवासियों के डर को समझने का प्रयास ही नहीं किया, उल्टे सीएनटी एक्ट संशोधित कर उनकी जमीन व्यापारियों को सौंपने की नीति बनाने लगी। दशमत कहते हैं-'मुझे उम्मीद तो थी कि आदिवासी वोटर रिएक्ट करेंगे, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब आदिवासी वोटरों में ऐसी राजनीतिक चेतना दिखी।
परसुडीह के निदिर टोला माझी बाबा (ग्र्राम प्रधान) फातु सोरेन कहते हैं-'भाजपा से आदिवासी वोटरों की नाराजगी सीएनटी के अलावा कई अन्य मसलों पर भी थी। जिस तरह एक्ट में संशोधन के बाद सरकार ने प्रदर्शन के लिए जाने वाले कार्यकर्ताओं तक को रास्ते में ही गिरफ्तार करवाया। पत्थलगढ़ी के नाम पर पूरे आदिवासी जनसमुदाय को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। इसका भी आक्रोश था। माझी बाबा कहते हैं-'पिछले पांच वर्षों में भाजपा सरकार ने आदिवासियों से संवाद नहीं किया। वह मान कर चली कि गैस चूल्हा और शौचालय दे देने से सब ठीक हो जाएगा। इस बार आदिवासियों में भीतर ही भीतर जो संदेश था वह यह था कि भाजपा वापस आई तो अहंकार दोगुना हो जाएगा और तब आदिवासियों का सस्टेन कर पाना मुश्किल होगा।
पोटका विधानसभा क्षेत्र के धिरोल गांव निवासी व स्थानीय प्राइवेट स्कूल के शिक्षक रामराय टुडू कहते हैं-'भाजपा ने आदिवासियों को कभी गिनती में रखा ही नहीं। वोटबैंक के लिहाज से पिछले पांच वर्षों में आदिवासियों के लिए कोई जतन हुए ही नहीं। पिछली सरकार गठन के साथ भाजपा नेतृत्व ने गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया। सरकार गठन के पहले दिन से ही आदिवासी इस बात को लेकर सशंकित थे कि अब आदिवासियों की बात होगी भी या भाजपा सिर्फ अपने पारंपरिक वोट बैंक यानी गैर आदिवासियों पर केंद्रित रहेगी।
चूंकि कोल्हान में अधिकतर विधानसभा सीट आदिवासी बहुल हैं, इसलिए भी इस इलाके में आदिवासियों के इस डर का असर हुआ। बात चाहे पोटका की हो, बहरागोड़ा की, घाटशिला, मझगांव, चाईबासा, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, घाटशिला या फिर मनोहरपुर की।