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बिहार विस के पूर्व उपाध्यक्ष बोले, सत्ता की सुंदरता के लिए विचारों का आदर जरूरी

बिहार विधान सभा के पूर्व उपाध्यक्ष अमरेन्द्र प्रताप सिंह का मानना है कि सत्ता की सुंदरता के लिए विचारों का आदर जरूरी है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 12:56 PM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 12:56 PM (IST)
बिहार विस के पूर्व उपाध्यक्ष बोले, सत्ता की सुंदरता के लिए विचारों का आदर जरूरी
बिहार विस के पूर्व उपाध्यक्ष बोले, सत्ता की सुंदरता के लिए विचारों का आदर जरूरी

जमशेदपुर, जेएनएन। राजनीति जब लड़खड़ाती है तो साहित्य को सहारा देना चाहिए, दूर बैठकर गाली नहीं। भटके को राह दिखाइए। यही साहित्य, मीडिया और बुद्धिजीवी का असल कर्तव्य है। सत्ता की सुंदरता के लिए विचारों का आदर जरूरी है। यह मामना है बिहार विधान सभा के पूर्व उपाध्यक्ष अमरेन्द्र प्रताप सिंह (अमर बाबू ) का।

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बिष्टुपुर स्थित तुलसी भवन में भोजपुरिया बेयार के द्वारा आयोजित देश की वर्तमान स्थिति और बुद्धिजीवी विषयक संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि विचारों का जब आदर नहीं होगा तो सत्ता की सुंदरता नहीं बनी रह सकती है। जरूरी है कि हर उन विचारों पर गौर किया जाए। अंग्रेज चले गए लेकिन उनका कानून आज भी चल रहा है। हम आजाद हैं। आजाद भारत में ऐसे गैर जरूरी कानूनों के औचित्य पर भी विचार होना चाहिए। बुद्धिजीवी अपने तर्क की कसौटी पर ऐसे विचारों को परखें। उन्होंने विचारों की विभिन्नता के बीच एकता बनाए रखने की नसीहत दी। इतिहासकारों ने किया छल

आगे उन्होंने कहा कि आजादी के बाद इतिहासकारों ने देश के साथ छल किया। जो था इतिहास है। परंतु जो इतिहास प्रस्तुत किया गया वो कितना सत्य प्रस्तुत किया गया है, यह शोध का विषय है। आज  नोटा आया। यह कितना औचित्य है ? इसपर चिंतन के साथ यह भी विचार होना चाहिए कि नोटा आया तो क्‍यों आया ? उन्होंने कहा कि इस देश पर कौन राज्य करेगा? इसपर गंभीरता से विचार होना चाहिए। राजा विक्रमादित जैसा और राज्य रामराज जैसा हो, यह सबकी इच्छा है। परंतु कसौटी पर कौन खरा उतरेगा ? यह महत्वपूर्ण चिंतन होना चाहिए। सत्ताधीशों को नसीहत देते हुए उन्‍होंने कहा कि बुद्धिजीवियों के साथ भेदभाव हुआ तो यह वर्ग भी नकार देगा। जो संकट खड़ा कर सकता है। 

संघीय ढांचा बचनी चाहिए

यमुना तिवारी व्यथित ने कहा कि संघीय ढ़ांचा बचनी चाहिए। बुद्धिजीवी मार्गदर्शन कर सही राह दिखाएं यही समय की मांग है। हरिबल्लभ सिंह आरसी ने कहा कि जो सोये हैं उन्‍हें जगाने और सही सोच के साथ लाने की जरूरत है। संतोष सिंह ने कहा कि दूध का दूध और पानी का पानी लिखा जाए परंतु छोटी - मोटी अंगड़ाई को जवानी नहीं लिखा जाए। तुलसी भवन के मानद सचिव डॉ नर्मदेश्वर पांडेय ने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि यही के लोगों ने मुगल से लेकर अन्य विदेशी शासकों की मदद की। समाज में दो तरह के लोग हैं। दोनों की सोच में विभिन्नता है। इसपर भी विचार करने की जरूरत है। 

देश की बात आने पर सोच बदले

एके श्रीवास्तव ने कहा कि प्रबुद्ध लोग भी आज बंटे हैं। परंतु राष्ट्र की जब बात आए तो उन्हें अपनी सोच बदलनी चाहिए। टिस्को यूनियन के पूर्व अध्यक्ष पीएन सिंह ने कहा कि राष्ट्र के निर्माण में हर वर्ग का योगदान है। परंतु योगदान की महत्ता अलग -अलग है। लेकिन राजनीति में अधिकार सबका बराबर है। नंदजी पांडेय ने कहा कि शिक्षा में बदलाव समय की मांग है। वेद, उपनिषद की पढ़ाई चालू कर भारत की प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित कर सकते हैं। जातिगत भेदभाव भूलाकर वन नेशन का नारा बुलंद होना चाहिए। उन्होंने भ्रष्टाचार को बड़ी समस्या करार दिया। पत्रकार जय प्रकाश राय ने कहा कि सत्ता मिलने के बाद परिभाषाएं बदल गयी है। उन्होंने रोटी पकने की उपमा देकर सत्ता के बदलाव को समझाने की कोशिश की। 

ये रहे शामिल

भोजपुरिया बेयार के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश कुमार ने स्वागत भाषण और विषय परिचय कराते हुये कहा कि 70 सालों में पहली बार कोई शख्स उम्मीद की ज्योत चलाने के लिए प्रयासरत है। ऐसे में सबको मिलकर उस ज्योत को प्रज्वलित करने में मदद करनी चाहिए।  डीडी त्रिपाठी, श्रीराम पांडेय भार्गव, एसके सिंह, अधिवक्ता एसबी सिंह, धर्मचंद्र पोद्दार आदि ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया। संचालन भोजपुरिया बेयार के प्रवक्ता दीपक कुमार ने किया। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी के बाद रिपोर्ट पीएमओ को प्रेषित किया जाना चाहिए ताकि आमजन मानस, बुद्धिजीवी वर्ग की सोच को बल मिल सके। धन्यवाद ज्ञापन शिक्षक मोतिलाल सिंह ने किया।


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