Ayushman bharat yojana : जिंदगी ही नहीं, सिंगरी की किस्मत भी बदल गयी Jamshedpur news
सिंगरी समद का जीवन भी किसी मिशन से कम नहीं है। जिंदगी व मौत से जूझ रहे सिंगरी की किस्मत अब बदल गई है।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। जमशेदपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर घाटशिला प्रखंड के दीघा गांव का अंतिम घर सिंगरी समद (39) का पड़ता है। शनिवार को ही वह हैदराबाद से अपने घर पहुंचे हैं जिसे देखकर परिवारीजन के चेहरे खुशी से खिल उठे।
वह जैसे ही घर पहुंचे कि उनकी भाभी, भतीजे व गांव के लोग भी उन्हें घेर कर बैठ गए। जैसे कोई मिशन पूरा कर आए हों। हालांकि सिंगरी समद का जीवन भी किसी मिशन से कम नहीं है। जिंदगी व मौत से जूझ रहे सिंगरी की किस्मत अब बदल गई है। सिंगरी बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके लिए भगवान जैसे ही हैं। इलाज के बाद जब वे रांची आए थे तो मुझसे मिलकर मेरा हौसला भी बढ़ाया था।
तीन किलोग्राम का हो गया था ट्यूमर
आयुष्मान भारत योजना यदि शुरू नहीं हुई होती तो शायद ही मेरा इलाज संभव था। सिंगरी के गले में 23 साल से ट्यूमर था, जो बढ़कर तीन किलो का हो गया था। चेहरे से भी बड़े आकार के इस ट्यूमर (पैरोटिड ग्लैंड ट्यूमर) का इलाज करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन ब्रह्मानंद अस्पताल के कैंसर सर्जन डॉ. आशीष कुमार ने रिस्क लिया और उनकी जान बच गई।
देश के दूसरे सबसे बडे़ ट्यूमर से ग्रस्त थे सिंगरी
संगरी का ट्यूमर इतना बढ़ गया था कि वह कैंसर में तब्दील हो गया था। साथ ही उसका आकार 20 गुना 15 सेंटीमीटर था। यह ट्यूमर भारत का दूसरा सबसे बड़ा पैरोटिड ग्लैंड ट्यूमर था। देश के पहले सबसे बड़े पैरोटिड ग्लैंड ट्यूमर की सर्जरी कर्नाटक में हुई थी। उसका आकार 25 गुना 18 सेंटीमीटर था।
ट्यूमर की वजह से कुंवारे रह गए सिंगरी
संगरी ने बताया कि ट्यूमर की वजह से उनकी शादी नहीं हो सकी। ट्यूमर का आकार इतना बड़ा था कि हर कोई देखकर भाग जाता था। डर के मारे कोई पास नहीं आता था। कई बार लोग रिश्ता लेकर आए, लेकिन ट्यूमर देख कर भाग जाते थे।
15 साल के उम्र से ही था ट्यूमर
सिंगरी समद की उम्र जब 15 साल थी, तभी कान के नीचे एक छोटा सा ट्यूमर निकल आया। इसके बाद वह लगातार बढ़ते गया। इस दौरान वह कई अस्पतालों में इलाज कराने को पहुंचे, लेकिन हर जगह आर्थिक तंगी बाधा बनी। दैनिक जागरण से बातचीत में सिंगरी समद की आंखें भर आईं। कहा कि यदि प्रधानमंत्री का पत्र (गोल्डन कार्ड) नहीं मिलता व डॉ. देवदूत हमारे बीच नहीं पहुंचते तो शायद उनकी जान बच पाती।
हैदराबाद में करते अंडा पैकिंग का काम
मुझे 30 जनवरी 2019 को नई जिंदगी मिली। डॉक्टरों ने सर्जरी कर उनकी जान बचा ली। इसके चार माह के बाद मैं अपने भाई के साथ हैदराबाद चला गया। वहां पर एक कंपनी में अंडा पैकिंग का कार्य करता हूं। यह अंडा देशभर में सप्लाई होता है। पहले मेरी वजह से पूरा परिवार परेशान रहता था।
- सिंगरी समद, पीड़ित।
तीन डॉक्टरों की टीम ने की थी सर्जरी
सर्जरी के दौरान फेशियल नर्व को बचाना चुनौतीपूर्ण था। थोड़ी चूक होने से आंखों की रोशनी जा सकती थीं। मुंह टेढ़ा हो सकता था। भोजन की नली बंद हो सकती थी। तीन चिकित्सकों की टीम ने सर्जरी की थी। इसमें डॉ. देवदूत व डॉ. विजय कुमार शामिल हैं।
- डॉ. आशीष कुमार, कैंसर रोग विशेषज्ञ।