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Jharkhand Assembly Election 2019 : गुरुजी के धनुष से राजनीति का निशाना साध रहे शिष्य, लेकिन अर्जुन जैसा कोई नहीं

Jharkhand Assembly Election 2019. कुणाल षाड़ंगी व जय प्रकाश के पहले भी कई नेता झामुमो को छोड़ चुके हैं । इनमें अर्जुन मुंडा ने बड़ी उड़ान भरी तो दुलाल को लौटना पड़ा।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 25 Oct 2019 01:09 PM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2019 08:57 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : गुरुजी के धनुष से राजनीति का निशाना साध रहे शिष्य, लेकिन अर्जुन जैसा कोई नहीं
Jharkhand Assembly Election 2019 : गुरुजी के धनुष से राजनीति का निशाना साध रहे शिष्य, लेकिन अर्जुन जैसा कोई नहीं

जमशेदपुर, द‍िलीप कुमार।  Jharkhand Assembly Election 2019 विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही राज्य की सियासत में कई रोचक पन्ने जुडऩे लगे हैं। इस क्रम में कोल्हान में सबसे ज्यादा चर्चा झामुमो की है क्योंकि बहरागोड़ा से पार्टी विधायक कुणाल षाडंगी ने भाजपा का दामन थाम लिया है। इस बात की पूरी संभावना है कि वे अब झामुमो पर उसी सियासी धनुष से हमला करेंगे जिसे लेकर 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा को परास्त किया था।

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तब कुणाल ने अपनी चुनावी सियासत की शुरुआत गुरुजी यानी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के धनुष से की थी। कुणाल के साथ  मांडू से झामुमो विधायक जयप्रकाश भाई पटेल ने भी भाजपा में शामिल हुए हैं। अब ये भी अपने राजनीतिक गुरु शिबू सोरेन व उनकी पार्टी पर उसी धनुष से सियाली वाण छोड़ेंगे। वैसे कुणाल या जय प्रकाश पहले नेता नहीं हैं जो गुरुजी के धनुष से सियासी लक्ष्य पर निशाना साधना सीखे। ऐसे नेताओं की सूची लंबी है। पहले भी झामुमो के कई विधायक व सांसद पार्टी से अलग होकर भाजपा का अंग बन चुके हैं। इनमें मुख्य रूप से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, सांसद विद्युत वरण महतो, पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो, पूर्व सांसद आभा महतो, ईचागढ़ के विधायक साधु चरण महतो आदि प्रमुख हैैं।

अर्जुन ने साधा अचूक निशाना

गुरुजी के धनुष से राजनीति का ककहरा सीखने वाले अर्जुन मुंडा ने लंबी छलांग लगाई है। झामुमो के टिकट पर 1995 में पहली बार खरसावां सीट से विधायक बनने वाले अर्जुन मुंडा भाजपा में शामिल होने के बाद 2000, 2005 और 2011 में विधायक चुने गए। वे वर्ष 2003 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। तीन बार मुख्यमंत्री बनने वाले मुंडा 2006 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। वे 2009 में जमशेदपुर और 2019 खूंटी के लोकसभा सदस्य बने। अब पहली बार केंद्र में मंत्री बने हैं। उधर जमशेदपुर से दूसरी बार लोकसभा पहुंचे विद्युत वरण महतो ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत गुरुजी के आशीर्वाद से ही की थी। वे बहरागोड़ा से झामुमो टिकट पर विधायक भी बने थे। 2014 के लोकसभा चुनाव के समय भाजपा में शामिल हो गए। दुमका से भाजपा टिकट पर सांसद बने सुनील सोरेन भी कभी झामुमो के ही सिपाही हुआ करते थे।

कभी शैलेंद्र महतो ने भी बदला था पाला

शैलेंद्र महतो झामुमो टिकट पर 1989 और 1991 में लोकसभा पहुंचे थे। लेकिन वे 1998 में पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा में जाने के बाद उनकी पत्नी आभा महतो जमशेदपुर से 1998 और 1999 में लगातार दो बार सांसद चुनी गई।

साधु भी झामुमो की उपज

साधु चरण महतो

ईचागढ़ के भाजपा विधायक साधु चरण महतो भी कभी झामुमो के सिपाही हुआ करते थे। झामुमो की सियासी उपज साधु ने पार्टी छोडऩे के बाद कांग्रेस का दामन थामा था। फिर भाजपा में संभावना नजर आने के बाद वे इस पार्टी के साथ हो गए। भाजपा टिकट पर 2014 में ईचागढ़ से चुनाव जीतकर विधायक बने।

कई दूसरे दलों का अनुभव बटोर फिर लौट आए झामुमो में

 दुलाल भुईयां!

वैसे सियासत के अखाड़े में कई दिग्गज ऐसे भी हैं जिन्होंने अलग-अलग कारणों से झामुमो को अलविदा कह दिया। लेकिन जिन दलों में ये दिग्गज गए वहां अपेक्षित सफलता नहीं मिली। नतीजतन फिर लौटकर झामुमो में आए। ऐसे नेताओं में साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी और दुलाल भुईयां जैसे नेता शामिल हैं।

अगले विधानसभा चुनाव पर सबकी नजरें

अगले विधानसभा चुनाव पर सबकी नजरें टिकी हैं। गुरुजी की पार्टी के खिलाफ उनसे ही सियासत सीख चुके कई नेता अपने या अपनी पार्टी के प्रत्याशी को विजयी बनाने के लिए सियासी जंग लड़ेंगे। देखनेवाली बात यह होगी इनमें से कौन लक्ष्य हासिल में सफल होगा और किसके सामने आगे चलकर फिर झामुमो में लौटने की बाध्यता होगी।  


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