आंगनबाड़ी केंद्रों पर ताला, बंद हुआ बच्चों का निवाला, सेविका-सहायिका की हड़ताल है वजह
सेविका व सहायिका की हड़ताल की वजह से आंगनबाड़ी केंद्रों में ताले लटक रहे हैं और बच्चों को पोषाहार नहीं मिल रहा है।
चाकुलिया (पूर्वी सिंहभूम), पंकज मिश्रा। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाए कि झारखंड में एक तरफ कुपोषण दूर करने के लिए सरकार पोषण माह मना रही है, वहीं दूसरी तरफ आंगनबाड़ी कर्मियों की हड़ताल के कारण बच्चों को पोषाहार के लाले पड़ गए हैं।
बीते 22 अगस्त से आंगनबाड़ी के नौनिहालों को खिचड़ी नहीं मिली है। विगत एक पखवाड़े से राज्य के अन्य हिस्सों की तरह चाकुलिया प्रखंड की भी तमाम सेविका- सहायिकाएं हड़ताल पर हैं। जिसके चलते प्रखंड के 152 आंगनबाड़ी केंद्रों पर ताला लगा हुआ है। आंगनबाड़ी कर्मियों की हड़ताल के कारण प्रखंड के कुल 8961 बच्चों, 1113 गर्भवती एवं 955 धातृ महिलाओं को पोषाहार से वंचित रहना पड़ रहा है।
जनकल्याणकारी योजनाएं भी प्रभावित
इसके अलावा बाल विकास परियोजना से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जनकल्याणकारी योजनाएं प्रभावित हुई हैं। इनमें मुख्यरूप से सुकन्या योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, कन्यादान योजना, दिव्यांग पेंशन योजना आदि शामिल हैं। चाकुलिया में सीडीपीओ का पद लंबे समय से अतिरिक्त प्रभार पर चलने के कारण पहले से ही योजनाओं की प्रगति धीमी है। सुकन्या योजना के सैकड़ों आवेदन बीते कई महीने से स्वीकृति की बाट जोह रहे हैं। यह मामला पिछली पंचायत समिति सदस्यों की बैठक में भी जोर-शोर से उठा था। जिसमें यह बात सामने आई थी कि तत्कालीन सीडीपीओ जीरामनी हेंब्रम की लापरवाही के कारण आवेदनों का निष्पादन समय से नहीं हो सका था। इस बीच आंगनबाड़ी कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से पूरी व्यवस्था चरमरा गई है।
योजनाओं का लक्ष्य पूरा करना चुनौती
सबसे अहम बात यह है कि राज्य में आगामी नवंबर दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पूर्व सरकार ने विभिन्न विभागों को योजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। समाज कल्याण विभाग के समक्ष भी लक्ष्य को पूरा करने की चुनौती है। ऐसे समय में हड़ताल के कारण कामकाज प्रभावित होने से लक्ष्य दूर होता जा रहा है। इसके अलावा मतदाता सूची पुनरीक्षण हेतु बीएलओ का काम भी सेविकाओं से ही लिया जाता है। कुपोषण के मामले में राज्य की हालत पहले से ही पतली है। विदित हो कि आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से 6 माह से 3 वर्ष के बच्चों को टीएचआर तथा 3 वर्ष से 6 वर्ष के बच्चों को पोषाहार के रूप में खिचड़ी दिया जाता है।