Air India Sale : एयर इंडिया को चलाने में भारतीयों ने दस साल में 1,57,339 करोड़ रुपये चुकाए, चकरा गए ना...
Air India Sale पिछले दस साल में हम भारतीयों ने एयर इंडिया को चलाने के लिए 1573390000000 रुपये का बिल चुकाया। सुनकर आप चकरा गए ना। यूं ही केंद्र सरकार ने कर्ज से कराह रही इस सरकारी उपक्रम से पीछा नहीं छुड़ाया है। जानिए इसके पीछे की कहानी...
जमशेदपुर, जासं। टाटा समूह के पास एयर इंडिया बस जाने ही वाली है। शायद दिसंबर तक टाटा को इसका नियंत्रण मिल जाएगा, लेकिन इसके लिए टाटा को काफी रुपये खर्च करने होंगे, जबकि पिछले 10 साल में भारतीय करदाताओं की जेब से एयर इंडिया के पीछे करीब 1 करोड़ 57 लाख 339 हजार रुपये लग चुके होंगे।
यह आकलन दिसंबर 2009-10 के बाद से एयर इंडिया को चलाने में हुए तमाम खर्चों के आधार पर किया गया। इस राशि में इस एयरलाइंस के कर्ज, ठेकेदारों या संवेदकों को किए गए भुगतान, टाटा से सरकार को मिलने वाली राशि और बिक्री के बाद एयर इंडिया की सरकार के पास बचने वाली संपत्ति आदि पहलुओं को शामिल किया गया है। टाटा समूह ने 18 हजार करोड़ रुपये की बोली लगाकर एयर इंडिया को जीता है। इस अधिग्रहण समझौते के मुताबिक टाटा समूह की एयर इंडिया समेत उसकी सभी सहायक इकाइयों में शत प्रतिशत हिस्सेदारी होगी। वहीं एयर इंडिया एसएटीएस वाले संयुक्त उपक्रम में टाटा समूह की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी। टाटा समूह के पास जाने के बाद भी केंद्र सरकार को लगभग 46,262 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना होगा।
एआइएएचएल में समाहित हो जाएंगी चार अनुषंगी इकाई
टाटा समूह के पास एयर इंडिया व एयर इंडिया एक्सप्रेस जाने के बाद भी सरकार के पास एयर इंडिया की चार अनुषंगी इकाई रह जाएगी। योजना के मुताबिक इन चारों कंपनियों को एयर इंडिया एयर ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड, एयरलाइन एलाइड सर्विसेज लिमिटेड, एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड व होटल कारपोरेशन ऑफ इंडिया को एआइएएचएल में समाहित कर दिया जाएगा। एयर इंडिया की अनुषंगी इकाइयों में समाहित करने के बावजूद एआइएएचएल को एयर इंडिया की परिसंपत्ति का अलग से अधिग्रहण करार किया जा सकता है। एआइएएचएल नामक उपक्रम को एयर इंडिया की पेंटिंग्स एयरक्राफ्ट्स व दूसरी निष्क्रिय परिसंपत्तियों से धन संग्रह करने की नीति बनाने की चर्चा है। हालांकि बाद में सरकार क्या निर्णय लेगी, यह भविष्य ही बताएगा।
सरकार को हो सकती मुश्किल
एक उड़ान विशेषज्ञ के मुताबिक केंद्र सरकार को उपरोक्त अनुषंगी इकाइयें को बेचने में मुश्किल हो सकती है, क्योंकि ये इकाइयां बहुत मुनाफे में नहीं चल रही हैं। ये अमूमन छोटे रास्तों पर अपनी सेवा देती हैं। निजी कंपनियां आमतौर पर कम मुनाफा या घाटा देने वाली कंपनियों में रुचि नहीं दिखाती हैं, इसलिए इनका बिक पाना और उम्मीद के मुताबिक इनकी कीमत मिल पाना संदेह के घेरे में है। ज्ञात हो कि उड़ान योजना आम आदमी को आसमान की सैर कराने की दिशा में लिया गया निर्णय है।