कर्म चक्र ही मनुष्य के जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का कारण Jamshedpur News
वस्तु की अवस्थान्तर प्राप्ति या उसके आपेक्षिक स्थान परिवर्तन को कर्म कहते हैं। कर्म दो तरह का होता है दैहिक कर्म और मानसिक कर्म।
जमशेदपुर (जासं)। आनंदमार्ग के साधक-साधिकों के लिए आयोजित वेबिनार में आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने कहा कि सृष्टि लीला कर्म द्वारा ही विधृत है। वस्तु की अवस्थान्तर प्राप्ति या उसके आपेक्षिक स्थान परिवर्तन को कर्म कहते हैं। कर्म दो तरह का होता है, दैहिक कर्म और मानसिक कर्म। मूल कर्म को प्रत्ययमुलक कर्म कहते हैं एवं कर्मफल का भोग जिस कर्म के द्वारा होता है उसे संस्कारमुलक कर्म कहते हैं। कर्म चक्र ही मनुष्य के जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का कारण है। इस सेमिनार में जमशेदपुर एवं उसके आसपास लगभग 3 हजार आनंदमार्ग के साधक-साधिका जुड़े थे। सेमिनार साधकों के जीवन रक्षा को ध्यान में रखते हुए एवं साधकों के मानसाध्यात्मिक प्रगति को ध्यान में रखते हुए आयोजित की गई थी।
आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने कहा कि अभुक्त संस्कार के भोग के लिए मनुष्य विभिन्न योनियों में जन्म लेता है। संस्कार भोग से बचने के लिए कर्म योग ही समाधान है। संस्कारों से मुक्ति या कर्म बंधन से छुटकारा के लिए तीन उपाय बतलाए गए हैं:- फलाकांक्षा त्याग , कर्तृत्वाभिमान ,त्याग एवं सर्वकर्म ब्रह्म में समर्पण। एक साथ इनका अनुशीलन करना आवश्यक है। अकर्म ,विकर्म एवं निष्काम कर्म में निष्काम कर्म को ही प्रश्नय देना चाहिए। संस्कार क्षय करने के व्यावहारिक उपायों की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा कि इष्ट मंत्र, गुरु मंत्र ,सद्गुरु संपर्क ,साधना, सेवा, त्याग, स्वाध्याय, सत्संग एवं संपूर्ण समर्पण ही साधक को मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर देगा।