बिना परमिट जमशेदपुर की सड़कों पर दौड़ रहे 40 हजार ऑटो
बिना परमिट के ही जमशेदपुर की सड़कों पर 40 हजार ऑटो बेधड़क दौड़ रहे हैं। इनमें से पांच हजार के पास ही परमिट है। वह भी वर्ष 2010 से पूर्व का।
जमशेदपुर, [विश्वजीत भट्ट]। बिना परमिट के ही जमशेदपुर की सड़कों पर 40 हजार ऑटो बेधड़क दौड़ रहे हैं। इनमें से पांच हजार के पास ही परमिट है। वह भी वर्ष 2010 से पूर्व का। शेष के पास जो परमिट है वह शहर से बाहर का है। हाईकोर्ट और मुख्य सचिव के आदेश के बाद भी राज्य सरकार वर्षों से इन्हें परमिट नहीं मुहैया करा रही है।
गत वर्ष इस समस्या को लेकर दो दिनों की हड़ताल कर चुके टेंपो-मिनी बस चालक आठ साल से परमिट के लिए एड़ी रगड़ रहे हैं। कोई सुनने को तैयार ही नहीं है। सिटी बसें चलाने का सपना दिखाकर परमिट रोकने वाला जिला प्रशासन सिटी बसें भी ठीक से नहीं चला पाया। ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि परमिट नहीं देने के पीछे का खेल क्या है? दरअसल, 2010 में जवाहरलाल नेहरू शहरी पुनरुत्थान मिशन के तहत केंद्र सरकार ने नगर बस सेवा के लिए राज्य सरकार को 16 करोड़ रुपये दिए। इससे 50 बसें खरीदी गईं। इनके मुनाफे के साथ निर्बाध परिचालन के लिए परिवहन आयुक्त रांची ने जमशेदपुर में मिनी बसों व ऑटो को परमिट देने पर रोक लगा दी। उधर, महज दो-चार सिटी बसें कहीं सड़क पर नजर आती हैं, बाकी सड़ गईं।
हाईकोर्ट व मुख्य सचिव दरबार गया मिनी बस एसोसिएशन
वर्ष 2010 में ही मिनी बस एसोसिएशन परिवहन आयुक्त के फरमान के खिलाफ हाईकोर्ट और तत्कालीन मुख्य सचिव के यहां पहुंचा। हाईकोर्ट व मुख्य सचिव ने आदेश दिया कि किसी भी शहर में केवल एक ही एजेंसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का संचालन नहीं कर सकती। परमिट के लिए जरूरी कागजात के साथ जो भी आवेदन करे, उसे परमिट दिया जाए। इस आदेश के बाद कुछ मिनी बसों को 2015 तक के लिए परमिट मिला। इसके बाद से परमिट मिलना बंद है। आलम यह है कि सड़क पर दौड़ रही 90 मिनी बसों में सिर्फ 25 के पास ही परमिट है।
ऐसे करता है विभाग खेल
परिवहन विभाग निश्चित मार्ग पर चलने वाली बसों के लिए दो तरह का परमिट देता है। एक चार माह के लिए। दूसरा पांच साल के लिए। 2010 में जिन मिनी बसों को परमिट मिला, 2015 में अवधि समाप्त हो गई। नियम है कि नवीनीकरण के आवेदन पर परिवहन प्राधिकार की बैठक में विचार होगा। उधर, तीन साल में केवल एकबार बैठक हुई। चंद को परमिट देने की अनुशंसा हुई, पर किसी को परमिट निर्गत नहीं हुआ।
मिलता है दो तरह का परमिट
परिवहन प्राधिकार दो तरह का परमिट निर्गत करता है। एक बसों के लिए जिसे स्टेट कैरियर परमिट कहते हैं। दूसरा ऑटो के लिए जिसे कांट्रैक्ट कैरियर परमिट कहा जाता है। बसों को मिलने वाले परमिट में प्रावधान होता है कि बसें जगह-जगह से यात्री बैठाती और उतारती हैं। ऑटो परमिट में प्रावधान है कि वह निश्चित स्थान से यात्री बैठाए और गंतव्य तक पहुंचाए। देश में झारखंड व बिहार ऐसे राज्य हैं, जहां इन दोनों नियमों का खुला उल्लंघन हो रहा है।
सड़ गईं 16 करोड़ की बसें
केंद्र सरकार से नगर बस सेवा के लिए 16 करोड़ मिले। स्वराज माजदा की 50 बसें खरीदी गईं। शहर में नगर बस सेवा के जरिए ट्रैफिक कंट्रोल, प्रदूषण नियंत्रण के साथ ही बसों के परिचालन से होने वाले लाभांश म्यूनिसिपल फंड में जमा करना था। सरकार को कोई लाभ नहीं हुआ। सिटी बसें सड़ गईं।
सरकार को लिखा जाएगा पत्र
परमिट की विसंगतियों को लेकर सरकार को पत्र लिखा जाएगा। इस मुद्दे पर सरकार को ही निर्णय लेना है। हां, परमिट न होने के कारण होने वाली परेशानियों से सरकार को अवगत कराया जाएगा।
-अमित कुमार, उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम
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