Jharkhand Assembly Election 2019 : 24 वर्ष सुधीर व अरविंद ही रहे ईचागढ़ के केंद्र बिंदु
ईचागढ़ की चुनावी पृष्ठभूमि भी काफी दिलचस्प है। यहां वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में साधुचरण महतो की एंट्री होने के पहले 24 साल तक दो नेताओं के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती रही है।
जमशेदपुर (दिलीप कुमार)। ईचागढ़ की राजनीति पृष्ठभूमि भी काफी दिलचस्प है। यहां वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में साधुचरण महतो की एंट्री होने के पहले 24 साल तक दो नेताओं के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती रही है।
इनमें एक अरविंद कुमार सिंह उर्फ मलखान सिंह हैं, जो तीन बार विधायक रहे, तो दूसरे थे सुधीर महतो, जिन्होंने दो बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसके पूर्व 23 साल तक यहां की राजनीति राज परिवार व घनश्याम महतो के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती रही। झारखंड अलग राज्य आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले निर्मल महतो की हत्या के बाद उनके भाई सुधीर महतो का प्रवेश वर्ष 1990 के चुनाव में ईचागढ़ की राजनीति में हुई। वर्ष 1990 में विधानसभा चुनाव में झामुमो उम्मीदवार सुधीर महतो की जीत हुई थी।
इसके बाद ईचागढ़ की राजनीति में अरविंद कुमार सिंह उर्फ मलखान सिंह का प्रवेश हुआ। उन्होंने वर्ष 1995 में हुए विधानसभा का चुनाव जीता। इसके साथ ही ईचागढ़ की राजनीति सुधीर महतो और अरविंद कुमार सिंह के इर्द-गिर्द घूमने लगी। यह सिलसिला सुधीर महतो की मृत्यु तक चलता रहा। उनके निधन के बाद वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में साधुचरण महतो ने चुनाव जीता।
1985 के बाद जीतनेवाले प्रत्याशी नहीं रहे इचागढ़ के वोटर
यह भी एक अजीब संयोग रहा कि 1985 के बाद जिस प्रत्याशी ने भी विधानसभा चुनाव जीता वह अपने ही विधानसभा क्षेत्र का मतदाता नहीं रहा। यानि खुद भी वो अपना वोट नहीं डाल सका। 1990 व इसके बाद 2005 में विधानसभा चुनाव में जीते झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुधीर महतो, 1995 में निर्दलीय व वर्ष 2000 में भाजपा और उसके बाद 2009 में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर जीते अरविंद कुमार सिंह उर्फ मलखान सिंह सहित 2014 में हुए चुनाव में जीते प्रत्याशी साधु चरण महतो ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र के वोटर नहीं रहे हैं।
इस बार मतदाताओं का मूड अभी तक किसी की समझ में नहीं आ रहा है। बातचीत में ज्यादातर लोग यही कहते हुए नजर आ रहे हैं कि झारखंड राज्य बने 19 वर्ष बीत गए।
अब ईचागढ़ की समस्याएं बदली हैं। नई पीढ़ी के वोटर अब जनप्रतिनिधि की घोषणा और उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि को भी परख रहे हैं। बहरहाल, देखना यह है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में वोटर क्या ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय निवासी को अपना जनप्रतिनिधि बनाएगी या फिर पूर्व की परंपरा को जारी रखेगी।