अबूझ पहेली बन गया टाटा-रांची राजमार्ग
ैनिक जागरण जमशेदपुर की स्थापना के 16 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस अवधि में दैनिक जागरण के साथ इसके पाठकों ने भी राज्य और जमशेदपुर से जुडे़ उतार-चढ़ाव को ना केवल महसूस किया, बल्कि बेहतरी के लिए प्रयास भी किए।
जासं, जमशेदपुर : दैनिक जागरण जमशेदपुर की स्थापना के 16 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस अवधि में दैनिक जागरण के साथ इसके पाठकों ने भी राज्य और जमशेदपुर से जुडे़ उतार-चढ़ाव को ना केवल महसूस किया, बल्कि बेहतरी के लिए प्रयास भी किए। इसमें झारखंड की लाइफलाइन मानी जाने वाली टाटा-रांची राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-33) भी है, जिसके बनने का इंतजार शहर के लोग 16 वर्ष से कर रहे हैं।
दैनिक जागरण के स्थापना दिवस पर चल रहे अभियान '16 साल-16 सवाल' की कड़ी में शुक्रवार को डिमना रोड स्थित कार्यालय में परिचर्चा हुई। इसमें अधिकांश पाठकों ने कहा कि एनएच-33 तो उनके लिए पहेली बन गया है। बीच-बीच में सांसद-विधायक, मंत्री आदि से सुनते हैं कि बहुत जल्द बन जाएगा। यह सुनते-सुनते उनके कान पक गए हैं। पता ही नहीं चलता कि यह सड़क क्यों नहीं बन पा रही है। इसके पीछे वास्तविक कठिनाई क्या है। अखबार या टीवी से भी इतनी और अलग-अलग जानकारी मिलती है कि समझना मुश्किल हो जाता है कि असली कारण क्या है। हम तो बस इस इंतजार में हैं कि यह सड़क जल्दी से जल्दी बन जाए, ताकि ना केवल जमशेदपुर बल्कि पूरे राज्य की स्थिति बेहतर हो जाए। यह सड़क बन जाएगी तो विकास खुद ब खुद हो जाएगा।
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एनएच-33 सफेद हाथी बनकर रह गया है। कोई सांसद यह नहीं कहता कि यह सड़क नहीं बनेगी, लेकिन नहीं बनती। जमशेदपुर और आसपास के अधिकांश लोगों की मौत इसी सड़क पर दुर्घटना में हुई है। यह क्यों नहीं बन रही है, पता करने पर कई कारण सुनने को मिलते हैं। - विकास सिंह
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इस सड़क की हालत बहुत ही खराब है। शाम के बाद तो जाने में डर लगता है। हमलोग बराबर सुनते हैं कि अब बनेगी, लेकिन नहीं बनती। इस बार भी सांसद ने कहा कि इसी महीने काम शुरू हो जाएगा। - अशोक सिंह
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एनएच-33 से पहले या कहें उसी समय गोल्डेन ट्राएंगल बनने की घोषणा हुई थी, लेकिन दोनों में से कोई नहीं बना। सड़क खराब रहने से गाड़ियां खराब हो रही हैं, जिससे खर्च बढ़ता है। - कुलविंदर सिंह पन्नू
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इस सड़क को बनाने में सांसद-विधायक लगे हुए हैं, इसके बावजूद यह नहीं बन पा रही है। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। यदि ठेकेदार नहीं बना रहा तो सरकार को खुद बनाना चाहिए। - अनिमेष सिन्हा
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एनएच-33 की हाल में मरम्मत हुई है। अब दो-तीन जगह ही ज्यादा खराब है। सांसद ने कहा है कि इसी माह इसका काम शुरू हो जाएगा। - संतोष भगत
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एनएच-33 पर बहरागोड़ा से रांची तक खाली मुरुम बिछाया गया है। कई स्थान पर सड़क जानलेवा है। उन्हें लगता है कि केंद्र सरकार का इस पर ध्यान नहीं है, इसलिए नहीं बन रही। - राम सिंह कुशवाहा
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एनएच-33 बनने से पहले नाली बननी चाहिए। इसकी वजह से यह सड़क बार-बार खराब होती है। मरम्मत के बाद अभी थोड़ा ठीक है, लेकिन स्थायी रूप से बनना चाहिए। - मनोज गुप्ता
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इन 16 वर्षो में एनएच-33 का सिर्फ बेस तैयार हुआ है। जहां तक उनकी जानकारी है, सरकार ने जमीन का अधिग्रहण नहीं किया, इसलिए यह सड़क नहीं बन पा रही है। - राजीव सिंह
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कोल्हान हमेशा से झारखंड की राजनीति का पावर हाउस रहा है। यहां से तीन-तीन मुख्यमंत्री हुए, इसके बावजूद पता नहीं कौन सी समस्या है कि सड़क नहीं बन पा रही है। - संजय कुमार सिंह
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एनएच-33 का मामला पता नहीं कितने संगठनों-राजनीतिक दलों ने उठाया। आंदोलन-धरना हुआ, फिर भी नहीं बना, समझ में नहीं आता कि कौन दोषी है। - सुनील सिंह
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मानगो में आए हुए मुझे छह साल हो गए। तब से सुन रहा हूं कि इस साल बन जाएगा। मेरे तीन दोस्तों की जान इसी सड़क की वजह से चली गई। पता नहीं कब बनेगी। - मनोज भगत
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एनएच-33 सबसे ज्यादा जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र में ही खराब है। मुझे लगता है कि सांसद ने इस पर पहले ध्यान नहीं दिया, वरना बन गया होता। - सुशील शर्मा
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यह सड़क रांची से चौका तक बन चुकी है। गालूडीह से बहरागोड़ा तक भी बन गई है, लेकिन पारडीह चौक तक ज्यादा खराब है। इससे जल्दी बनना चाहिए। - अजय गोराई
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लंबे समय से इस सड़क को देख रहा हूं। आए दिन दुर्घटना होती रहती है, जिसमें कई लोगों की जान चली गई। सुनकर बहुत दुख होता है, लेकिन क्या करें। -संजीव पांडा
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पहले की तुलना में सड़क ठीक है। भले ही बनने में देर हो रही है, लेकिन पहले की सिंगल रोड से तो ठीक ही है। सिर्फ सरकार को दोष देना ठीक नहीं है, जो सड़क है उस पर पार्किंग हम लोग ही करते हैं। - उमाशंकर मंडल
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बहरागोड़ा से पारडीह काली मंदिर तक यह मौत की सड़क बनी हुई है। इसके लिए मशाल जुलूस निकला, रोड जाम हुआ, लेकिन नहीं बनी। पता नहीं क्यों। - डॉ. जयशंकर सिंह
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एनएच-33 में इधर तीन साल में कुछ काम हुआ है, पर जितनी तेजी से होना चाहिए, नहीं हो रहा है। इसके लिए तो सांसद और मंत्री सरयू राय पर केस भी हुआ। - प्रवीण सिंर्ह