कालम : शहरनामा : विकास कुमार
गायब हुए बुद्ध तो मिला ज्ञान बहोरनपुर में खुदाई में बुद्ध नजर आए। कई सौ साल प्राचीन मूíत के रूप में
गायब हुए बुद्ध तो मिला ज्ञान
बहोरनपुर में खुदाई में बुद्ध नजर आए। कई सौ साल प्राचीन मूíत के रूप में उपलब्धि देखकर भारतीय पुरातत्व वालों के चेहरे पर चमक आ गई थी। मगर यह चमक अगले ही दिन गायब हो गई जब पता चला कि भगवान बुद्ध की प्रतिमा लापता हैं। पुरातत्व प्रेमियों का ध्यान गया तो ख्याति सुन चोरों की भी निगाह पड़ी। उन्हें भी लगा कि लॉटरी निकल आई है। रातों रात हाथ साफ कर दिया। चूंकि मूíत की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी इसलिए गायब होते ही ऊपर से नीचे तक फोन घनघनाने लगे तो पुलिस वालों के हाथ-पाव फूल गए। बस क्या था, सवा सौ किलोमीटर दूर राची से इसे सुरक्षित बरामद कर लिया गया। जब खुद पर बन आती है तो पुलिस पहाड़ भी तोड़ लाती है, पाताल से भी अपराधी को पकड़ लाती है। नहीं तो, अपनी गाड़ी भी पुलिस नहीं ढूंढ पाती।
यहा बच जाना आपकी किस्मत
शहर की काग्रेस आफिस रोड सड़क पर चलना या फिर फिसल कर गिर जाना आपकी किस्मत पर निर्भर करता है। यह सड़क आपको पट्टी बंधवा सकती है और यहा किस्मत दगा दे गई तो अस्पताल तक पहुंचा सकती है। जी भाईसाहब.. आपको कम से कम चलने से पहले यह तो पता ही होना चाहिए कि आप हजारीबाग के सबसे जर्जर सड़क काग्रेस आफिस रोड पर हैैं। यहा गिरने पर दोष लोग सड़क को नहीं आपको देंगे। क्योंकि, इस सड़क की हैसियत ही यही है। तभी तो शहर की मेन रोड जो रेलवे स्टेशन से इंद्रपुरी चौक तक जाती है कि किस्मत भी बीते दिनों बदल गई। इसी रोड पर शहर की बदहाल लेपो रोड स्थित थी जिसपर से गुजरना मुहाल था, रातों रात चकाचक हो जाती है। मगर शहर की हृदस्थली में स्थित यह सड़क बदहाल है। अब इसमें सड़क का दोष तो नहीं है। चटकी लाठी तो भैया मेरे बीडीओ हैं
राज्य सरकार द्वारा जारी नई गाइडलाइन के तहत बंद शिक्षण व निजी कोचिंग संस्थान पर तो जैसे आफत ही आन पड़ी। दूसरे चक्र उन्हें और हलकान कर गया। फिर क्या था संचालक विद्याíथयों के साथ सड़कों पर उतर आए। मगर यह दाव भी उलटा पड़ गया। हालात उग्र हो गए और पुलिस को भी लाठिया भाजनी पड़ी। इसी क्रम में मची भगदड़ के दौरान जब एक बाइक सवार पर लाठी चमकी तो वह बोल पड़ा ऐ रुको, भैया मेरे बीडीओ है। मगर जवान की लाठी युवक की पीठ पर जाकर ही रुकी। बोला, भैया बीडीओ हैं समझ लो, इस दौरान दूसरी लाठी भी चटक पड़ी। अब इतनी लाठी के बाद तो भाई वहां से निकलने में ही भलाई, भैया जो हैं सो हैं मार कौन खाए। इधर, संस्थान संचालकों की अब हालत यह हो गई कि अब पुलिस उन्हें ढूंढती फिर रही है।
उप कप्तान पर भरोसा नहीं
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिले के एक विभाग के कप्तान साहब को अपने ही उप कप्तान पर भरोसा नहीं रहा। नतीजा यह हुआ कि वह अपने उपकप्तान से काम भी भरपूर लेते हैं मगर समय आने पर उनके विरुद्ध विभागीय दरबार में हटवाने की अनुशसा भी दर्ज करा देते हैं। इतना ही नहीं अपने स्तर से कप्तान साहब जाच भी करवाते हैं और उसके निष्कर्षो को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई भी करते हैं। इसकी जानकारी जब उप कप्तान साहब को मिलती है तो उनकी हालत के क्या कहने। वह ऊहापोह में पड़ जाते हैं कि अरे यह क्या हो गया, किसने साहब का कान भर दिया, खैर अब क्या किया जा सकता है। साहब उनके कप्तान जो ठहरे। किसी तरह मन मसोस कर उन्हें उनका हुकुम बजाना ही है। हा, अब वे साहब के खबरीलाल को टाइट करने में लगे पड़े हैं।