मैं नही, जगानी होगी हम की भावना
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि -जीता वही व्यक्ति है जो दूसरों के लिए जीता है। भारत को एक शक्तिशा
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि -जीता वही व्यक्ति है जो दूसरों के लिए जीता है। भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए और यहां के युवक-युवतियों में निस्वार्थ की भावना जगाने के लिए उनमें हम की भावना मजबूत बनानी होगी। जब सभी युवा अपने जीवन की समस्त इच्छाओं पर सुख-सुविधाओं को त्याग कर अपने आप को देशवासियों की सेवा में समर्पित कर दें तभी हमारा भारत विश्व मानचित्र पर एक मंगलमय पृष्ठभूमि दर्ज कराने में सफल होगा। मैं शब्द का इस्तेमाल जहां अपने आप को स्वार्थी दिखाता है वहीं हम शब्द का इस्तेमाल करके व्यक्ति स्वार्थ से ऊपर उठ जाता है। उसी प्रकार व्यक्तिगत ¨जदगी में भी मैं कहने की आदत से रिश्तों में कड़वाहट खुलती है, जबकि हम कह कर अपनी सफलता और असफलता की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हैं तो रिश्ते की मजबूती बनते जाती है। सच्चाई तो यह है कि रिश्ते हमेशा हम से ही बनते हैं। मैं से कोई रिश्ता नहीं बन सकता, और इस मैं शब्द के चक्कर में अक्सर लोग पीछे छूट जाते हैं, जबकि हम की बात करने वाले कामयाब होते हैं। यहां तक कि सार्वजनिक मंच पर भी यदि भाषण करता बातचीत में हम का प्रयोग करता है तो बेहतर प्रभाव श्रोताओं पर बनता है। वर्तमान समय में देश के विकास के लिए और सभी कार्यकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए हम सभी को मैं और तुम जैसे शब्द को हम की भावना में बदलना होगा। साथ ही देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, आतंकवाद, ¨हसा, भेदभाव आदि जैसी गंभीर मुद्दों व समस्याओं का अंत सिर्फ हम की भावना से ही हो सकता है। मौमिता मल्लिक, शिक्षक, यदुनाथ बालिका विद्यालय हजारीबाग