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मंदिरों में परंपरा का होगा निर्वहन, मेला में होगी पुलिस का पहरा

संवाद सूत्रगुमला प्रकृतिक सौंदर्य और धार्मिक आस्था का केंद्र नागफेनी के ऐतिहासिक जगन्नाथ मं

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Jan 2022 09:33 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jan 2022 09:33 PM (IST)
मंदिरों में परंपरा का होगा निर्वहन, मेला में होगी पुलिस का पहरा
मंदिरों में परंपरा का होगा निर्वहन, मेला में होगी पुलिस का पहरा

संवाद सूत्र,गुमला : प्रकृतिक सौंदर्य और धार्मिक आस्था का केंद्र नागफेनी के ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर में शुक्रवार को मंदिरों में पूजन दर्शन की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा वहीं मंदिर के बाहर लगने वाले मकर सक्रांति मेला में पुलिस का पहरा होगा। एसपी डा.ऐहतेशाम वकारीब ने कहा कि अभी कोरोना का संकट टला नहीं है। इसलिए लोगों को कोविड गाइडलाइन का पालन करना चाहिए। सिसई के नागफेनी और रायडीह के हीरादह में लगने वाले मकर सक्रांति मेला के संदर्भ में एसपी ने कहा कि मेला में पुलिस का पहरा होगा। एक ही स्थान पर भीड भाड़ नहीं होने दिया जाएगा। मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए भी कोविड गाइडलाइन का अनुपालन के लिए लोगों को निर्देशित किया जाएगा।

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नागफेनी में भगवान मकरध्वज की निकाली जाती है रथयात्रा

गुमला : नागफेनी में मकर सक्रांति मेला का इतिहास लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना है। मकर सक्रांति के अवसर पर नागफेनी के ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर में भगवान मकरध्वज की विशेष पूजा होती है और उन्हीं की रथ यात्रा निकाली जाती है। कहा जाता है कि दक्षिण कोयल नदी में भगवान मकरध्वज की मूर्ति बहते हुए नागफेनी के अम्बा घाघ में फंस गए थे। नागफेनी मंदिर के तत्कालीन पुजारी को स्वप्न हुआ और वे भगवान मकरध्वज को ऐतिहासक जगन्नाथ मंदिर में ले आए और मकर सक्रांति के दिन विशेष पूजा अर्चना आरंभ की शुरुआत की गई। मेला की ख्याति दूर-दूर तक बढ़ गई लेकिन दो वर्षों से कोरोना के कारण मेला में भीड़ नहीं हो रहा है।

मकर सक्रांति के दिन स्नान दान पूजन व दही चूड़ा का है विशेष महत्व

गुमला : मकर सक्रांति के दिन पवित्र नदियों सरोवरों में स्नान, मंदिरों में पूजा अर्चना, गरीबों को दान और दही गुड़ चूड़ा आदि के पारण का विशेष महत्व है। यही कारण है कि मकर सक्रांति के दिन गुमला और सिसई अंचल सीमा पर अवस्थित नागफेनी दक्षिण कोयल नदी तट पर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और दक्षिण कोयल नदी पर स्नान कर ऐतहासिक जगन्नाथ मंदिर में पूजा करते हैं। मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुकों के बीच दान पुण्य करते हैं और प्रकृति के गोद में कोयल नदी तट पर दही चूड़ा गुड़ तिलकूट, लड्डृ सहित घर से बने व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं। कहा जाता है कि मकर सक्रांति के दिन सूर्य मकर रेखा पार करता है। इसी दिन से सूर्य की ऊष्मा तिल-तिल बढ़ता और दिन प्रतिदिन ठंड का अहसास कम होता है।

बाजार में सजी तिलकुट की दुकानें

गुमला के बाजार में तिलकूट की दुकानें सज गई है। तिलकुट के साथ तिल के बने लड्डू, गुड़, चूड़ा, लाई आदि क दुकानें सज गई है। तिलकुट दो सौ रुपये से तीन सौ रुपये लिए, गुड़ 40 रुपये और चूड़ा 50 रुपये किलो बिक रहे है। दुकानदारों के अनुसार कोरोना के कारण बाजार में जान नहीं है। तिलकुट के दुकानों में ग्राहक नजर नहीं आए।

जनजातीय बहुल क्षेत्र होने के बावजूद मकर सक्रांति मेला को गुमला और आस पास क्षेत्र में त्योहार के तरह मनाया जाता है। गुमला का नागफेनी में मकर सक्रांति का मेला लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले से लगते आ रहा है। कोयल में स्नान कर पूजा के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं लेकिन कोरोना के कारण दो वर्षों से मेला का उत्साह कम हो गया है। पुजारी सुशील पंडा कहते हैं कि मंदिर में पूजा की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। पूजा की मंदिर में तैयारी पूरी कर ली गई है। नागफेनी के ही महावीर साहु और शिक्षक माड़वारी साहु कहते हैं कि कोविड के कारण मेला का उत्साह कम हो गया है। पूजा की परंपरा का निर्वहन होगा। मेला में प्रशासन के साथ कोविड गाइडलाइन का पालन की अपील की जाएगी।


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