अब तक ध्वस्त है कठगांव का पुल, 8 हजार की आबादी है प्रभावित
उदय गुप्ताडुमरी पहाड़ और जंगल के बीच डुमरी प्रखंड के जुरमु पंचायत के कई गांव बसें हैं जो पहले नक्सलवाद से र्प्रभावित थे। दीना के जंगल और पहाड़ों में कभी नक्सलियों का प्रशिक्षण शिविर आयोजित होता था शहादत दिवस मना करता था। उस गांव में विकास का आगाज नक्सलियों की गतिविधियों के थमने के बाद हुआ था। उम्मीद जगी
उदय गुप्ता, डुमरी : पहाड़ और जंगल के बीच डुमरी प्रखंड के जुरमु पंचायत के कई गांव बसे हैं जो पहले नक्सलवाद से प्रभावित थे। दीना के जंगल और पहाड़ों के बीच ग्रामीणों को उम्मीद जगी थी कि बुनियादी सुविधाएं मिलेगी। यह उम्मीद तब जगी थी जब कठगांव के बगल से बहने वाली नदी पर एक करोड़ 15 लाख रुपये की लागत से उच्च स्तरीय पुल बना था। पुल बनने से सबसे ज्यादा लाभ पुलिस और सीआरपीएफ को हुआ था, क्योंकि नदी में पानी भरे रहने से पुलिस एलआरपी पर नहीं निकलती थी। नक्सलियों पर अंकुश लगाने में पुलिस को परेशानी और बदनामी होती थी। ग्रामीणों को इस बात से राहत मिली थी कि उन्हें बरसात के दिनों में भी जैरागी होते हुए प्रखंड मुख्यालय और जिला मुख्यालय आने में पूर्व की परेशानियां खत्म हो गई थी। दो साल बाद नदी में ऐसी बाढ़ आई जो पुल को बहाकर ही दम लिया। फिर से बरसात के दिनों में टापू बनने वाले गांवों में कठगांव, बसतपुर, गनीदारा, महुआटोली, सरईटोली, दीना एवं अन्य गांवों के नाम शामिल हैं। इस पुल के ध्वस्त होने से लगभग आठ हजार की आबादी प्रभावित हो रही है। इतना ही नहीं, बरसात के दिनों में बच्चे जान जोखिम में डाल कर स्कूल जाते हैं।
ध्वस्त पुल की जगह दूसरे नए पुल के निर्माण की अब तक न योजना बनी है और न ही बीते चुनाव में इस जगह पर नया पुल बनाने का किसी भी दल के प्रत्याशी ने आश्वासन ही दिया। ग्रामीण अपने भाग्य पर तरस खा रहे हैं। सिर्फ दीना गांव में तीन सौ परिवार रहते है जिनकी आबादी 1500 है। गांव में जाने के लिए पक्की सड़क बनाई गई थी और 2012-13 में पुल बनना आरंभ हुआ था। जहां पुल ध्वस्त है वहां से वाहनों का परिचालन भी जोखिम भरा है। हालांकि इस गांव में बुनियादी सुविधा बहाल कराने के लिए विधायक शिवशंकर उरांव के द्वारा प्रयास किया गया था। जल निकासी के लिए एक हजार फीट लंबी नाली का निर्माण कराया गया और सोलर आधारित जलमीनार भी लगाए गए। कुछ घरों में सरकारी शौचालय भी बनाए गए लेकिन ग्रामीणों के उस जज्बे को हर कोई सलाम करे हैं जिसके तहत श्रमदान कर लोगों ने एक डैम का निर्माण किया था। जिससे फसलों की सिचाई करना संभव हुआ था लेकिन वह डैम भी अब जर्जर हो चुका है। विद्यालय की भवन भी जर्जर है। दीना से रजावल तक और नटावल तक सड़क निर्माण का काम चल रहा है। दीना गांव की पहाड़ियां ही झारखंड व छत्तीसगढ़ की सीमा को बांटने का काम करती है।
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हमारी नियति यही है। कष्ट झेलो वोट डालो। सुदूरवर्ती गांव में रहते हैं स्वास्थ्य शिक्षा और रोजगार के लिए तरसते हैं। बाहर जाकर काम करना पड़ता है। हम नहीं चाहते हमारे गांव से पलायन हो। हम यह चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ लिखकर देश की सेवा करें।
राजेंद्र कुमार शाही, दीना गांव। हम गांव में रहते हैं खेती-बारी ही आजीविका का आधार है। हमारे गांव का गटी झरियाडैम में पानी रहता है। यदि इस डैम से सिचाई बेहतर सुविधा उपलब्ध करा दी जाती तो हम खुशहाल हो जाते। रोजगार के लिए पलायन करना नहीं होता। बच्चों के पढ़ाई के खर्च के लिए सोचना नहीं पड़ता। कठगांव के पुल बन जाता तो अपने उत्पाद को बाजार में ले जाते।
नागेंद्र सिंह, ग्रामीण।