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ढोल बाजे, मृदंग बाजे देख तमाशा टिकट का ...

सिसई थाना क्षेत्र के ओलमोन्डा पंचायत के कोड़ेकेरा बिल्हौर टोली गांव निवासी 55 वर्षिय सुकरू गोप ने सिसई थाना में लिखित आवेदन देकर गांव के ही अमर उराँव के खिलाफ डायन बिसाह और मार पीट किये जाने का मामला दर्ज कराया है। आवेदन मे सुकरू गोप ने बताया है कि गांव के ही अमर उरांव ने मुझ पर डायन बिसाही का आरोप लगाता है और इसी को लेकर शनिवार धान काट कर हम वापस अपने घर आये और हाथ पैर धोने बाड़ी का कुऑ मे गये कि इसी बीच अमर उरांव कुल्हाड़ी से मेरे उपर जानलेवा हमला कर दिया और मार पीट करने लगा जिससे मेरा गर्दन और आँख के पास काफी चोटे आयी है।मार पीट से मै बेहोश हो गया था जिसके बाद गांव वालो ने मुझे बचाया और अमर उराँव ने हमको एक माह के अंदर जान से मारने की धमकी देते हुए गाँव के एक और ब्यक्ति बन्धा उराँव को भी जान से मारने का धमकी दिया है। इस मामले मे सिसई पुलिस ने प्रथमिकी दर्ज कर आरोपी को तलाश कर रही है यह जानकारी सिसई थाना प्रभारी विष्णुदेव चौधरी ने दिया है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 08:15 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 08:15 PM (IST)
ढोल बाजे, मृदंग बाजे देख तमाशा टिकट का ...
ढोल बाजे, मृदंग बाजे देख तमाशा टिकट का ...

जागरण संवाददाता, गुमला : कचहरी परिसर में सोमवार को मतदाताओं और प्रत्याशियों का जमावड़ा उनके समर्थकों के साथ लगा हुआ था। चुनावी चर्चा हो रही थी। नेताजी बेधरक भाषण देते जा रहे थे। कह रहे थे कि पार्टी ही सब कुछ है। चुनाव लड़ते हैं कार्यकर्ता और चुनाव जीतते हैं कार्यकर्ता। प्रत्याशी तो निमित्त मात्र होते हैं। सुनने वालों की भीड़ भी जमा थी। बीच-बीच में ताली भी बज रही थी। जिदाबाद के नारे भी लग रहे थे। उधर ढ़ोल-नगाड़ा और मृदंग बज रहे थे। कुछ लोग नाच गा रहे थे। तभी एक बुजुर्ग ने नेताजी को टोकते हुए कहा कि अब गुजरे जमाने की बात न करें। कार्यकर्ता चुनाव लड़ते और जीतते हैं तो नेता भी उनका सम्मान करते थे। उनकी सलाह मानकर काम करते थे। कार्यकर्ताओं को ठुकराते नहीं थे। पार्टी को मां मानते थे। लेकिन आप नेता जी जानते ही हैं समय परिवर्तनशील है। समय के साथ विचार, सिद्धांत और निष्ठा बदलती जा रही है। अब न पार्टी का महत्व है न कार्यकर्ता की पूछ। चुनाव लड़ने के लिए टिकट की दरकार होती है। जहां से टिकट मिले वही सब कुछ है। देखिए दिन में दल बदलते हैं और रात में टिकट मिल जाता है। उस वृद्ध को देखिए , कई बार विधायक बने , पार्टी ने टिकट से कई बार वंचित कर दिया। इस बार ताल ठोकी चुनाव लड़ने का। नोमिनेशन पेपर खरीदा और भर लिया। अपने समर्थक के साथ कचहरी परिसर आए। निर्वाची पदाधिकारी के दरवाजे तक गए। अहसास हुआ कि जिस पार्टी को 49 साल से मां माना, उस पार्टी को छोड़कर चुनाव लड़ना उचित नहीं है। वह प्रत्याशी रोते हुए वापस आ गया और कहा कि पार्टी और कार्यकर्ता के खिलाफ नहीं जाउंगा। उस बूढ़े ने भाषण देने वाले नेताजी से सवाल कि आपकी पार्टी में एक बार जिसे टिकट दिया दुबारा उससे किनारा काट लिया, दूसरे दल से जो आया आपकी पार्टी में उसे ही टिकट थमा दिया, कार्यकर्ता झंडा बोहता रहे। नेता जी की बोलती बंद हो गयी और सभा समाप्त हो गयी।

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