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पथरायी आंखों से परिजन करते रहे शहीद के पार्थिव शरीर का इंतजार

जम्मू कश्मीर में देश की सीमा पर सिग्नल कोर के भारतीय जवान और बसिया प्रखंड के टेंगरा गांव का सपूत संतोष गोप के शव आने का सोमवार को दिन भर परिजन सगे संबंधी ग्रामीण पथरायी आंखों से इंतजार करते रहे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 07:16 PM (IST)Updated: Mon, 14 Oct 2019 07:16 PM (IST)
पथरायी आंखों से परिजन करते रहे शहीद के पार्थिव शरीर का इंतजार
पथरायी आंखों से परिजन करते रहे शहीद के पार्थिव शरीर का इंतजार

जागरण संवाददाता,गुमला : जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए बसिया प्रखंड के टेंगरा गांव के सपूत संतोष गोप के पार्थिव शरीर के गांव पहुंचने का इंतजार सोमवार दिनभर परिजन व ग्रामीण करते रहे। कहीं से कोई सूचना नहीं मिल रही थी देर शाम शव के रांची पहुंचने के बाद स्पष्ट हुआ कि रात हो जाने के कारण अब मंगलवार को पार्थिव शरीर टेंगरा पहुंचेगा। सोमवार की सुबह में सेना के एक अधिकारी ने परिजनों को यह जानकारी दी कि जम्मू-कश्मीर से संतोष का पार्थिव शव दिन के ढाई बजे दिल्ली पहुंचेगा। उसके बाद शव शाम में पांच बजे या रात के आठ बजे रांची पहुंचने की संभावना है। संतोष की शहादत की जानकारी मिलने पर आस पड़ोस के क्षेत्र के लोग सोमवार को टेंगरा गांव पहुंचे थे। सभी शव के आने का लोग इंतजार कर रहे थे। परिवार के दो सदस्यों के रांची जाने की बात हो रही थी। परिवार के दो सदस्य दिन के तीन बजे रांची प्रस्थान कर गए। शहीद संतोष के परिजनों को सांत्वना देने के लिए जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रोशन बरवा, जिप सदस्य चैतु उरांव, उप प्रमुख शिवराज साहु, जिप सदस्य जसिता बारला, मुखिया चुमानी उरांव, सामाजिक कार्यकर्ता अनिता देवी, पतरस होरो, देवा साहु, गुडवीन लकड़ा, अनिल एक्का, परीमल मंडल आदि शहीद के घर पहुंचे थे। काफी देर तक परिजनों से इन लोगों ने बातचीत की। कांग्रेस के नेता घंटों डटे रहे।

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सड़क मरम्मत का चल रहा था काम शहीद संतोष के पैतृक गांव में जाने के लिए दो तरफ से सड़क हैं। एक सड़क ममरला से बोंगालो होते हुए टेंगरा गांव तक जाती है। यह सड़क काफी जर्जर है। सड़क में रोड़े बिखरे पड़े हैं। जगह-जगह गड्ढे बने हुए हैं। उन गड्ढों को जेसीबी से तत्काल भरने का काम किया जा रहा है। अंचलाधिकारी संतोष बैठा सड़क की मरम्मती कराने पहुंचे थे। मुखिया द्वारा डीजल उपलब्ध कराए जाने पर सड़क का मरम्मत काम आरंभ किया गया। इस गांव में एक दूसरी सड़क भी जाती है जो पक्की है लेकिन सड़क सकरी है। उस सड़क से छह चक्का वाले वाहन गांव में नहीं पहुंच सकता है। वैसे प्रशासन ने विकल्प के तौर पर गांव के एक खेल मैदान को हैलीपैड के रूप में आरक्षित कर लिया है। सेना के निर्देशानुसार हैलीपैड का उपयोग किया जाना है। ऊहापोह में दिखे अधिकारी सोमवार के दोपहर बाद भी प्रशासनिक अधिकारी ऊहापोह में दिखे। उन्हें राज्य मुख्यालय से निर्देश का इंतजार था। राज्य मुख्यालय से शहीद संतोष के शव लाए जाने के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई थी। अधिकारी सिर्फ इतना बता रहे थे कि शाम पांच बजे तक रांची एयरपोर्ट पर संतोष के शव के आने की संभावित सूचना है। यदि बताए गए समय के अनुसार शव रांची पहुंच भी जाएगा तब वहां सलामी देने और अन्य रस्मों को निभाने में कम से कम एक घंटा का समय लग ही जाएगा। उसके बाद हेलीकाप्टर का उड़ना शायद ही संभव हो सकेगा। वैसी स्थिति में शहीद के शव को सड़क मार्ग से लाया जा सकता है। वैसे स्थिति में ममरला से टेंगरा जाने वाली सड़क का उपयोग एक मात्र विकल्प नजर आ रहा है। हो चुकी है तैयारी शहीद संतोष के आवासीय परिसर में दो शमियाना लगाए गए हैं। एक शमियाना में कुर्सियां रखी हुई थी। दूसरा शमियाना ठीक दरवाजा के सामने लगाया गया है। आने वाले विशिष्ट लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां भी मंगवायी जा चुकी है। घर के पीछे वाली पक्की सड़क से शहीद संतोष के घर तक तत्काल प्रकाश की व्यवस्था की गई है। जेनरेटर से प्रकाश का इंतजाम किया गया है ताकि रात में वाहन से शव लाने के दौरान किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो सके। संतोष बहुत सीधा व अनुशासित जवान था :मनोहर शहीद संतोष के साथ सेना में बहाल होने वाले सिसई के रोशनपुर गांव का रहने वाला भारतीय सेना का जवान मनोहर कुमार साहु उसके उन दोस्तों में से है जिसने संतोष के साथ बहाली के बाद गोवा में होने वाले बेसिक प्रशिक्षण में छह माह तक साथ-साथ रहा था। मनोहर ही उसके बैच का नेतृत्व करता था। मनोहर बताते हैं कि दोनों इंटर विज्ञान उत्तीर्ण थे। दोनों का चयन ईएफएस ट्रेड में हुआ था। संतोष विद्युत संबंधित कार्य करता था। मनोहर के अनुसार संतोष बहुत ही सीधा साधा लड़का था। बहुत बोलता नहीं था। अपने काम के प्रति ईमानदार था। वह हमेशा अनुशासन में रहना पंसद करता था। उसने मेरी बात की कभी अनसुनी नहीं की। प्रतिदिन तीन सत्रों में चलने वाले प्रशिक्षण में वह भाग लेता था। उसमें सीखने की ललक थी। फिलहाल संतोष सिग्नल कोर का जवान था। उसका आईडी 15736132 था। शहीद के पिता का बैंक में खुला खाता शहीद संतोष गोप के पिता जीतू गोप के नाम का खाता सोमवार को बैंक आफ इंडिया की ममरला शाखा में खोला गया। जीतू गोप ने बताया कि सेना के अधिकारी ने उन्हें खाता खुलवाने का निर्देश दिया है। उस अधिकारी ने बताया कि संतोष के शहादत के बाद मिलने वाली सरकारी आर्थिक सहायता उसके पिता को ही दी जाएगी क्योंकि संतोष अविवाहित था। सामाजिक कार्यकर्ता ईश्वर गोप ने खाता खुलवाने में शहीद के पिता की मदद की। छलका पिता का दर्द संतोष के पिता जीतू गोप का दर्द छलक गया। वे कहते हैं कि पढ़े लिखे नहीं थे। इस कारण उन्हें धंगरई करना पड़ता था। मजदूरी करके पैसा कमाते थे और अपने बच्चों को पढ़ाते थे। बड़ा बेटा नीलांबर ठीक से नहीं पड़ सका था इसलिए छोटा बेटा संतोष को पढ़ाने के लिए वे मजदूरी भी कर लिया करते थे। उससे होने वाले आय से बच्चे की किताब कॉपी और पढ़ाई का खर्च निकाला करते थे। जमीन भी कोई ज्यादा नहीं है। पन्द्रह काठ धान होता है। यही आय का साधन है। इसलिए बरटोली, अंबाटोली चट्टी, चामा और गांव में मजदूरी करने में उन्हें गुरेज नहीं था। मजदूरी कर के ही अपने बच्चे को पाले थे। पढ़ाए लिखाए थे। उन्हें अपना खर्च काटना पड़ता था। सरकार से राशन कार्ड मिला हुआ है। उससे 15 किलो अनाज महीना में मिलता है जिससे परिवार का गुजारा होता है। संतोष के नौकरी होने के बाद अपने मां के खाते में कुछ पैसा डाल देता था उससे मदद मिल जाती थी। संतोष के पिता का कहना है कि बीपीएल कार्ड होने के बाद भी उन्हें या उनके पति को न वृद्धा पेंशन मिल रहा है और न ही आवास मिला है। संतोष की मां सारो देवी कहती है कि उज्ज्वला गैस योजना के लिए कई बार प्रयास किया लेकिन लाभ नहीं मिला। जीतू गोप कहते हैं कि बिना सरकारी सहायता का जीवन निर्वहन मुश्किल है। कमाने वाला बेटा देश की सेवा में शहीद हो गया। अब सरकार उन्हें और उनके परिवार को देखे या न देखे यह सरकार की मर्जी है। बसिया में बने पुत्र की प्रतिमा जीतु गोप की दिली इच्छा है कि उनका बेटा देश की सरहद की रखवाली में शहीद हुआ है। उसकी स्मृति को बनाए रखने के लिए बसिया प्रखंड मुख्यालय या थाना चौक पर प्रतिमा की स्थापना होनी चाहिए जिससे शहीद को सम्मान मिल सके। लोग याद कर सके। युवा उससे प्रेरणा लेकर देश सेवा के लिए आगे आएं। गांव में भी स्मारक बनना चाहिए।


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