ठंढ़े पानी से बहती है परंपरा की धार
भारत विविधताओं का देश है। यहां सभी धर्मो के लोग परंपरा के अनुसार अपने पर्व त्योहार को मनाते हैं। कई त्योहार में आज भी अनोखी परंपरा कायम है। आदिवासी समाज में भी ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है। इसमें फाल्गुन में वाहा पर्व मनाया जाता है।
संवाद सहयोगी, पथरगामा :
भारत विविधताओं का देश है। यहां सभी धर्मो के लोग परंपरा के अनुसार अपने पर्व त्योहार को मनाते हैं। कई त्योहार में आज भी अनोखी परंपरा कायम है। आदिवासी समाज में भी ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है। इसमें फाल्गुन में वाहा पर्व मनाया जाता है। वाहा में पकवान तो होली की तरह ही बनते हैं लेकिन रंग नहीं खेला जाता है। इसमें देवर भाभी, पोता, दादा, दादी, नाना और नानी के साथ ही पानी देकर खेला जाता है। इसमें सभी एक दूसरे को ठंढ़ा पानी देकर अपनी परंपरा का निर्वहण करते हैं।
इसको लेकर हरकठा ग्राम के कुडोम नायके मानवेल मुर्मू ने बताया कि जात्रा पूजा एवं माघ पूजा में वाहा में आदिवासी समाज के लोग कीचड़, रंग गुलाल से नहीं खेलते हैं। सिर्फ ठंडा पानी रिश्ते के अनुसार दिया जाता है। वाहा पर्व में देवर भाभी, पोता, दादा, दादी, नाना और नानी के साथ ही पानी देकर खेला जाता है। वाहा पर्व में समाज के लोग खाने के लिए पुआ व विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बनाते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग परिवार व समाज के साथ मिलकर इस पर्व में लजीज भोजन का लुप्त उठाते हैं। माघ पूजा व जात्रा पूजा के बाद होता है वाहा
प्रखंड की माल निस्तारा पंचायत अंतर्गत हरकठा आदिवासी टोला में इन दिनों जात्रा पूजा की धूम है। आदिवासी समुदाय को विधि-विधान से नायके पुजारी जात्रा पूजा करवा रहे हैं। माघ माह में जात्रा पूजा करने की परंपरा रही है। हरकठा गांव के नायके पुजारी सुबोध मुर्मू, रसीक मुर्मू व मानवेल मुर्मू गांव के लोगों को पूजा करा रहे हैं। पूजा में महिलाएं भाग नहीं लेती हैं।
यह पूजा सिर्फ पुरुषों की ओर से ही की जाती है। इस पूजा में शरीक होकर प्रसाद तैयार करने से लेकर वितरण और ग्रहण करने में पुरुष ही रहते हैं। पूजा स्थल पर ही सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा है। घर पर प्रसाद ले जाना भी वर्जित होता है। जात्रा पूजा में समाज के सभी पुरुष उपवास रखकर पूजा विधान को संपन्न करते हैं। पूजा जिस गांव में होती है उस गांव में घर घर घूम कर चावल एवं मुर्गा सहित अन्य सामान एकत्रित किया जाता है। कुडोम नायके मानवेल बताते हैं कि पुजारी अरवा चावल को ओखली में कूट कर उससे प्रसाद तैयार करते हैं फिर ग्राम देवता के समक्ष मुर्गे की बलि चढ़ा कर चावल की रोटी बनाई जाती है। पूजा समाप्त होने के बाद तीन दिन तक वाहा पर्व भी मनाया जाता है। प्रथम दिवस जाहेर थान में पूजा होती है। जाहेरथान में सखुआ के फूल से पूजा करने की परंपरा है। उसी फूल को पूजा के बाद समाज के सभी घरों में वितरित किया जाता है।