काले हीरे की कालिख में भविष्य खो रहा अनमोल हीरा
ललमटिया गोड्डा का ललमटिया इलाका काले हीरे के खनन के लिए विश्व में मशहूर है।
संवाद सूत्र, ललमटिया : गोड्डा का ललमटिया इलाका काले हीरे के खनन के लिए विश्व में मशहूर है। यहां के लोगों की भूख भी काफी हद तक यही कोयला मिटाता है। इस भूख को मिटाने में माता पिता अपने अनमोल हीरे बच्चों को भी कोयले के धंधे में लगा देते हैं। अब इसे अशिक्षा की कमी कहा जाए या फिर पेट की मजबूरी। जो भी हो कोयले के अवैध धंधों में माता पिता अपने बच्चों को भी ढकेल रहे हैं। मीलों में फैले राजमहल परियोजना के कोयले के खदान से कोयला चुरा कर, साइकिल में लादना और उसे आसपास के इलाकों में बेचना यहां के हजारों लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है। थोड़ा ज्यादा कमाने के लिए ऐसे लोग अपने बच्चों को भी कोयला चुराने, उसे साइकिल पर लादने और आसपास के इलाकों में बेचने की जिम्मेदारी थोप देते हैं। जबकि इन बच्चों की यह उम्र शिक्षा की जिम्मेदारी निभाने की है। एक बात यह भी है कि ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं जो ऐसे काम में लगे हैं, लेकिन इन्हें आज तक रोकने वाला भी कोई नहीं रहा। इनके माता पिता को शायद जागरूक कर बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने वाला भी कोई नहीं। अंजाम यह है कि हजारों बच्चों का भविष्य कोयले की कालिख में बर्बाद हो रहा। पूछने पर पता चला कि ऐसे बच्चे कोयले के इस धंधे में रोजाना 400 से 500 रुपये कमा लेते हैं और अपने अभिभावक को मदद करते हैं। शिक्षा का अधिकार कानून पर यह गहरा तमाचा है। ऐसे बच्चों को इस कानून के तहत न तो स्कूलों से जोड़ा जा सका, न छात्रवृत्ति मिलती है न ही पुस्तकें। थोड़ा भी प्रोत्साहन मिले तो शायद इस कालिख में इनका भविष्य अंधकारमय होने से बच जाए। राजमहल परियोजना क्षेत्र के ललमटिया, बसडिहा, पहाड़पुर, केंदुआ, नीमा कला, चितरकोठी आदि गांवों में ऐसे बच्चे कोयले के इस धंधे से जुड़े हुए हैं।