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बाजारवाद ने फलों के राजा आम को किया बदनाम

जागरण संवाददाता गोड्डा फलों का राजा आम ने शहर से लेकर गांवों तक दस्तक दे दी है। चौक चौराहों पर सबसे ज्यादा अभी आम की ही बिक्री हो रही है। स्वादिष्ट में लजीज आम को फलों का राजा भी कहा गया है लेकिन बाजारवाद ने फलों के इस राजा को बदनाम कर रखा है। प्राकृतिक रूप से पके आम अब बाजार में नहीं बिकते। बाजार में जो आम उपलब्ध है वह कार्बाइट से पका होता है जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक माना जा रहा है। कृषि बाजार समिति के सूत्रों की माने तो जिले में प्रति दिन तीन से चार ट्रक आम की खपत होती है। यहां की मंडी में बिहार और बंगाल से कच्चे आम की आवक होती है

By JagranEdited By: Published: Mon, 27 May 2019 07:00 AM (IST)Updated: Mon, 27 May 2019 07:00 AM (IST)
बाजारवाद ने फलों के राजा आम को किया बदनाम
बाजारवाद ने फलों के राजा आम को किया बदनाम

गोड्डा : फलों का राजा आम ने शहर से लेकर गांवों तक दस्तक दे दी है। चौक-चौराहों पर सबसे ज्यादा अभी आम की ही बिक्री हो रही है। स्वादिष्ट में लजीज आम को फलों का राजा भी कहा गया है लेकिन बाजारवाद ने फलों के इस राजा को बदनाम कर रखा है। प्राकृतिक रूप से पके आम अब बाजार में नहीं बिकते। बाजार में जो आम उपलब्ध है, वह कार्बाइट से पका होता है जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक माना जा रहा है। कृषि बाजार समिति के सूत्रों की मानें तो जिले में प्रतिदिन तीन से चार ट्रक आम की खपत होती है। यहां की मंडी में बिहार और बंगाल से कच्चे आम की आवक होती है, वहीं स्थानीय स्तर पर भी आम की आपूर्ति किसान मंडियों में करते हैं। आमतौर पर कच्चे आम ही व्यापारी मंगाते हैं जिसे कार्टन में पैक कर कार्बाइट नामक रसायन से पकाया जाता है। इस विधि से पकने वाला आम अधिक दिनों तक बाजार में टिकता है और इसकी मांग भी सर्वाधिक है।

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जिला परिषद परिसर के निकट आम बेचने वाले युवा व्यवसायी सौतन कुमार, सरयू शाह, मो जिबरैल, पिटू, गोल्डन आदि फुटकर विक्रेताओं ने बताया कि गोड्डा के हटिया चौक स्थित मंडी में वे लोग थोक कारोबारी से आम खरीद कर मार्केट में बेचते हैं। अभी आम के कई किस्म बाजार में आ गए हैं। इसमें बंबइया, मालदा, हेमसागर, बैगनफुली आदि शामिल हैं। लंगड़ा आम यहां यूपी से आता है। इस माह के अंत तक इसकी आवक संभावित है। अधिकांश विक्रेताओं का कहना था कि आम पकाने में अमूमन कार्बाइट का ही प्रयोग किया जाता है। वैसे लोकल स्तर पर जो आम आता है, उसे बिचाली से ढंककर भी पकाया जाता है। बाजार में 60 से 70 रुपए प्रति किलो की दर से बंबइया व मालदा आम उपलब्ध है।

क्या कहते विशेषज्ञ : सिविल सर्जन डॉ आरडी पासवान ने बताया कि कार्बाइट से पके आम को सेवन के पूर्व कम से कम तीन घंटे पानी में डूबे कर रखने की जरूरत है। इससे एसीटिलिन नामक खतरनाक गैस पानी में घुलकर क्षीण हो जाती है। तीन घंटे बाद पानी से निकाल कर उसे खाने से अधिक नुकसानदेह नहीं होगा। कहा कि कार्बाइट से पका आम सीधे खाने से गैस, पेट दर्द, डायरिया आदि की शिकायतें सामने आ रही हैं। डॉ प्रदीप कुमार सिन्हा ने बताया कि कार्बाइट से पकाए गए आम से मनुष्य का हाजमा खराब हो रहा है। यह किडनी व लीवर के लिए भी खतरनाक है।

उपभोक्ताओं की राय : शहर के प्रवीण कुमार, दीपक शर्मा व राहुल सिंह, उमेश कुमार आदि ने बताया कि सीजन में नया फल खाने की ललक में इसकी खरीदारी करते हैं लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो रहा है। गोड्डा के बक्सरा, अमलो आदि गांव के बगीचों से कच्चा आम मंगाकर यहां कैमिकल से पका कर खपाया जा रहा है। जानकारी के अनुसार एक टन कच्चे आम को पकाने के लिए एक किग्रा कार्बाइट का उपयोग किया जाता है। इस लिहाज से शहर में प्रतिदिन सैकड़ों किग्रा कार्बाइट लोग हजम कर रहे हैं। जाहिर है कि यह स्थिति खतरनाक है। इसके लिए जन जागरूकता के साथ-साथ सरकारी नियंत्रण भी जरूरी है।

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