रक्षाबंधन में भी बाजार की रौनक फीकी
डुमरी प्रखंड में वैश्विक महामारी कोरोना के चलते रक्षाबंधन के अवसर पर इस बार बाजारों में रौनक फीकी पड़ी हुई है। इस कारण बाजारों में राखी एवं मिठाइयों की दुकान पर हर साल की तरह आपाधापी नहीं देखी जा रही। इससे बाजारों की रौनक फीकी है। हालांकि बहनें भाई के राखी बांधने के लिए खरीददारी करती भी नजर आ रही हैं
निमियाघाट (गिरिडीह) : डुमरी प्रखंड में वैश्विक महामारी कोरोना के कारण रक्षाबंधन पर भी बाजार की रौनक फीकी है। इस कारण राखी एवं मिठाइयों की दुकान पर हर साल की तरह आपाधापी नहीं देखी जा रही है। इससे बाजार की रौनक फीकी पड़ गई है। हालांकि बहनें भाई के हाथों में राखी बांधने के लिए खरीदारी करती नजर आ रही हैं, लेकिन पहले की तरह कोई भीड़ नहीं देखी जा रही है। बात जब देश की हो तो हर हिदुस्तानी मर-मिटने को तैयार रहता है। चीन ने गलवान घाटी में धोखे से हमारे वीर सैनिकों पर वार किया तो पूरे देश ने स्वदेशी राखी बांधने की प्रतिज्ञा के साथ चीन पर आर्थिक वार किया। इसका उदाहरण है कि शहर के कई घरों में तैयार हो रहीं राखियां। इस बार बाजार भी देसी राखियों से गुलजार है। चीन की बनी राखियां स्वदेशी राखियों के आगे बाजार से गायब हो चुकी हैं। इसरी बाजार के दुकानदार रामकुमार ने बताया कि भारत और चीन के बीच रिश्तों में खटास आने पर इस बार चीनी राखी दिखाई ही नहीं दे रही हैं। लोगों ने स्वदेशी राखी ही मांगी है। कोरोना के कारण बाजार में स्टॉक कम आया तो उन्होंने भी स्थानीय स्तर पर राखी तैयार कराई। लोगों को यह राखी खूब पसंद आ रही है। आचार्य उमाशंकर पांडेय ने बताया कि सोमवार की सुबह 9:28 तक भद्रा रहेगा। इसके बाद पूरे दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा सकेगा।
महत्व : राखी पर्व से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार एक बार देवताओं और असुरों में युद्ध शुरू हो गया था। इसमें देवताओं को हार की स्थिति समझ आ रही थी। तब इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने देवताओं के हाथों में रक्षा कवच बांधा जिससे देवताओं की विजय हुई। माना जाता है कि यह रक्षाविधान श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर ही शुरू किया गया था। कहा जाता है कि महाभारत काल में जब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था तो उस समय उनकी ऊंगली कट गई थी। यह देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्ला फाड़कर उनकी ऊंगली पर बांध दिया था। इसे एक रक्षासूत्र की तरह देखा गया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को सदैव उनकी रक्षा करने का वचन दिया। इसके बाद जब भरी सभा में दुशासन द्रौपदी का चीरहरण कर रहा था तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखकर अपना वचन पूरा किया था।