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शहर की प्यास बुझाता कर्णपुरा, लेकिन खुद बूंद-बूंद को तरसा

रामविजय ¨सह, बेंगाबाद, गिरिडीह: जिला मुख्यालय से लगभग नौ किलोमीटर और प्रखंड मुख्यालय से भ

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 06:08 PM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 06:08 PM (IST)
शहर की प्यास बुझाता कर्णपुरा, लेकिन खुद बूंद-बूंद को तरसा
शहर की प्यास बुझाता कर्णपुरा, लेकिन खुद बूंद-बूंद को तरसा

रामविजय ¨सह, बेंगाबाद, गिरिडीह: जिला मुख्यालय से लगभग नौ किलोमीटर और प्रखंड मुख्यालय से भी लगभग इतनी ही दूरी पर बसी कर्णपुरा पंचायत की सूरत आज भी कमोबेश वही है, जो देश की आजादी के पहले थी। पेयजल, ¨सचाई, पेंशन, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली सहित अन्य समस्याएं आज भी यथावत हैं। इसे पंचायत का दुर्भाग्य कहा जाए या विभागीय उदासीनता, लेकिन जहां इस पंचायत में स्थित खंडोली जलाशय से गिरिडीह शहर की प्यास बुझती है, वहीं इस पंचायत के लोग शुद्ध पानी के लिए तरसते हैं।

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सात माह पूर्व जब बीडीओ कुमार अभिषेक ¨सह (अभी भी क्षेत्र में पदस्थापित) ने इस पंचायत को गोद लेकर आदर्श बनाने का सपना दिखाया तो लोगों में विकास की आस जगी थी। घोषणा के बाद बीडीओ ने ग्रामीणों और विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक कर क्षेत्र की समस्याओं को चिह्नित किया था और जल्द ही योजनाओं को धरातल पर उतारने का अश्वासन दिया, लेकिन विकास का कारवां यहीं थम गया।

बीमार पड़ने पर गांव में इलाज मुश्किल: यहां के लोग छोटी-मोटी बीमारी में भी प्रखंड और जिला मुख्यालय की दौड़ लगाने को विवश हैं। वर्षो पूर्व बना स्वास्थ्य उपकेंद्र धराशायी होने की स्थिति में पहुंच गया है। बीडीओ के निर्देश पर केंद्र को पंचायत सचिवालय में शिफ्ट कर दिया गया है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं नगण्य हैं। मात्र एक स्वास्थ्यकर्मी के भरोसे केंद्र का कामकाज होता है।

सड़कों का हाल बदतर: गलियों और पंचायतों को जोड़नेवाली सड़कों का हाल बदतर है। कर्णपुरा मुख्य मार्ग से खुटाबांध करमाटांड़ तक सड़क जर्जर है। लोगों ने चंदा कर मोरम-मिट्टी डालकर पथ को चलनेलायक बनाया था, लेकिन हल्की बारिश के बाद भी इस रास्ते से गुजरना जंग जीतने के बराबर है। बिजली समस्या से भी लोग तंग आ चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि 24 में पांच घंटे भी बिजली ढंग से नहीं मिलती।

रोजगार के अभाव में पलायन को मजबूर: बड़े पैमाने पर खेती योग्य भूमि सिंचाई के अभाव में या तो परती रह जाती है या मानसून की दगाबाजी से फसल पकने से पहले नष्ट हो जाती है। दूसरी ओर बारिश के दिनों में डैम का जलस्तर काफी बढ़ जाता है। जिसके कारण आसपास के इलाके में लगी फसल सड़ जाती है। इस त्रासदियों के कारण यहां के लोग पलायन को विवश हैं। पेट पालने के लिए इलाके के लोग दिल्ली, सूरत, हैदराबाद मुंबई आदि महानगरों में जाकर रह रहे हैं।

पशुपालन और खेती को बढ़ावा देकर बदली जा सकती है तस्वीर: क्षेत्र कृषि और पशुपालन की दृष्टि से उपयुक्त माना जाता है। यदि पंचायत को दुग्ध उत्पादन क्षेत्र के लिए चिह्नित कर और पाइप से हर खेत तक पानी पहुंचाया जाए बड़े पैमाने पर लोगों की समस्या दूर हो सकेगी। गिरिडीह शहर नजदीक होने के कारण उत्पादित साग, सब्जी और दूध के लिए बाजार तलाशने की जरूरत नहीं होगी। ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत को गोद लेने के बाद क्षेत्र के विकास के लिए कोई पहल नहीं की गई है।

ग्रामीणों की पीड़ा:

ग्रामीण गुलाम रसूल ने कहा कि यहां खंडोली जलाशय होने के बावजूद लोग शुद्ध पेयजल और खेतों की ¨सचाई के लिए तरसते हैं। मो. नसीम ने कहा कि यहां के लोगों को पाइप से घर-घर पानी पहुंचाने का आश्वासन मिला था, लेकिन अबतक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई।

बालेश्वर शर्मा ने कहा कि बरसात में खंडोली डैम के आसपास के खेतों में लगी फसल बर्बाद हो जाती है। किसानों को इसका मुआवजा मिलना चाहिए। साथ ही डैम से होनेवाली आमद का कुछ हिस्सा इस पंचायत के विकास में खर्च हो।

कुर्बान अंसारी ने कहा कि बिजली की स्थिति दयनीय है। महज 5 घंटे बिजली देकर विभाग खानापूर्ति कर रहा है।

जमीर हुसैन ने कहा कि शिक्षा की स्थिति बदतर है। पंचायत में मात्र एक उत्क्रमित उर्दू उच्च विद्यालय है। लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है।

खुर्शीद अनवर हादी ने कहा कि पंचायत को गोद लेकर इसे विकसित करने पर ध्यान नहीं दिया गया। पंचायत में पशुपालन को बढ़ावा देकर क्षेत्र को खुशहाल बनाया जा सकता था।

उपमुखिया भुनेश्वर रविदास ने कहा कि स्वास्थ्य सुविधा नगण्य है। केंद्र में कभी चिकित्सक नहीं बैठते हैं।

स्थानीय मुखिया खातून बीबी ने कहा कि पंचायत को गोद लेने के बाद स्थानीय स्तर पर बैठक कर समस्याओं को चिह्नित किया गया था, लेकिन अब तक कोई कार्य धरातल पर नहीं उतरा है।


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