सर्कस मैदान बन गया डंपयार्ड
एक आंख में काजल और दूसरी में तिनका। यह कहावत जिला मुख्यालय स्थित प्लस टू उच्च विद्यालय के मैदान पर सटिक बैठती है। इसी के बगल में अवस्थित झंडा मैदान के रख रखाव में जिला प्रशासन कोई कमी नहीं रख रहा है वहीं स्कूल का यह मैदान बदहाल और उपेक्षित है जिसकी सुध न तो विभाग ले रहा है और न ही प्रशासन व जनप्रतिनिधि वहीं स्कूल प्रबंधन कोष और मैन पावर की कमी बताते हुए अपना पल्ला झाड़ ले रहा है। बता दें कि विज्ञान भवन के बगल में उ
गिरिडीह : एक आंख में काजल और दूसरे में तिनका। यह कहावत जिला मुख्यालय स्थित प्लस टू उच्च विद्यालय के मैदान पर सटीक बैठती है। इसी के बगल में अवस्थित झंडा मैदान के रखरखाव में जिला प्रशासन कोई कमी नहीं रख रहा है। स्कूल का यह मैदान बदहाल और उपेक्षित है जिसकी सुध न तो विभाग ले रहा है और न ही प्रशासन व जनप्रतिनिधि। स्कूल प्रबंधन कोष और मैन पावर की कमी बताते हुए अपना पल्ला झाड़ ले रहा है।
विज्ञान भवन के बगल में उक्त स्कूल का मैदान है, तो इसके सामने झंडा मैदान। दोनों ही सरकार की संपत्ति है, लेकिन एक का रखरखाव बेहतर तरीके से किया जा रहा है, जबकि दूसरे अर्थात स्कूल के मैदान को उपेक्षित छोड़ दिया गया है। सर्कस मैदान के नाम से विख्यात इस मैदान के रखरखाव की दिशा में कोई पहल नहीं की जा रही है।
मैदान बना वाहन पड़ाव : उक्त मैदान का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। मैदान में ऑटो, ट्रक, बाइक सहित अन्य वाहनों का हमेशा जमावड़ा लगा रहता है। मैदान के एक ओर मोटे-मोटे पाइप भी काफी संख्या में रख दिए गए हैं। आसपास के घरों का कूड़ा-कचरा भी इस मैदान में फेंका जाता है। कुल मिलाकर यह मैदान डंपयार्ड और वाहन पड़ाव के रूप में तब्दील हो गया है।
टूट रही चारदीवारी : स्कूल की ओर से कालांतर में मैदान के चारों ओर ईंट से घेराबंदी भी की गई थी, जो कई जगहों पर टूट गई है। चहारदीवारी टूटने के कारण मैदान का आम रास्ता के रूप में भी उपयोग किया जा रहा है, साथ ही वाहनों को भी वहीं खड़ा कर दिया जाता है। मैदान अपनी उपयोगिता खो रहा है। स्कूल के बच्चों को कम और दूसरे लोगों को इसका अधिक लाभ मिल रहा है।
मिट रही मैदान की पहचान : उक्त मैदान में स्कूल की ओर से खेल एवं अन्य गतिविधियों का बहुत कम आयोजन किया जाता है। कभी कभार ही इस तरह के आयोजन स्कूल के बच्चों के लिए होता है। इससे इतर यहां राजनीतिक पार्टियों, सामाजिक व कर्मचारी संगठनों की सभाएं आए दिन होती रहती हैं। हमेशा यहां मीना बाजार, डिज्नीलैंड आदि लगाकर मैदान का व्यवसायिक उपयोग भी खूब किया जा रहा है। हालांकि इससे स्कूल को कुछ राजस्व की प्राप्ति हो जाती है, लेकिन इससे न केवल मैदान की उपयोगिता खत्म हो गई है, बल्कि इसकी पहचान भी मिटने लगी है।
खिलाड़ियों को नहीं मिल रहा लाभ : मैदान में वाहनों का जमावड़ा रहने और इसमें पाइप आदि रख दिए जाने के कारण शहर के खिलाड़ी भी इसका समुचित लाभ नहीं ले पा रहे हैं। इससे खिलाड़ियों में काफी रोष है। साथ ही मैदान की उपेक्षा से भी वे मर्माहत हैं। खिलाड़ियों का कहना है कि जिस तरह झंडा मैदान का बेहतर तरीके से रखरखाव किया जा रहा है, उसी तरह इस मैदान पर भी विभाग और प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। जनप्रतिनिधियों ने भी मैदान की दुर्दशा देख अपनी आंखें मूंद ली हैं।
स्कूल के पास फंड नहीं, विभाग भी बेखबर : मैदान की देखरेख और जीर्णोद्धार के लिए स्कूल के पास फंड नहीं है। विभाग की पहल से ही इस दिशा में कुछ हो सकता है, लेकिन विभाग इसकी सुध ही नहीं ले रहा है। प्रधानाध्यापक सुशील कुमार ने बताया कि मैदान की चहारदीवारी कराने के लिए स्कूल के पास फंड नहीं है। फंड और मैन पावर के अभाव में मैदान का समुचित रखरखाव नहीं हो पा रहा है। प्रशासन, विभाग और विधायक को कई बार इसकी जानकारी दी गई है, लेकिन कहीं से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। सबसे पहले मैदान की चहारदीवारी जरूरी है, जिसमें लाखों रुपये खर्च होंगे, पर वह स्कूल के पास नहीं है।