जीवन में मिठास घोल रहा झारखंडी किशमिश महुआ
जीवन में मिठास घोल रहा झारखंडी किशमिश महुआ
डुमरी : प्रखंड के दक्षिणाखंड में झारखंडी किशमिश जीवन में मिठास घोल रहा है। झारखंडी किशमिश महुआ स्थानीय लोगों के जीवन में रंग भर रहा है। डुमरी प्रखंड में सैकड़ों महुआ के पेड़ हैं। वहां के ग्रामीणों का क्षेत्र एवं जंगल के रास्ते से गुजरने पर महुआ की भीनी-भीनी खुशबू से मन तरोताजा हो जाता है। अन्य फसलों की खेती करने के साथ-साथ ग्रामीणों की आय बढ़ाने का साधन भी महुआ है। पेड़ से टपकते प्रकृति के इस उपहार को चुनने के लिए ग्रामीण रातजगा करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। महिलाओं की रहती अधिक सक्रियता : महुआ चुनने का कार्य पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अधिक करती हैं। महिलाएं सुबह महुआ चुनकर लाती हैं और सुखाने के लिए आंगन में बिछा देती हैं। दुधपनिया ग्राम के सुरेश महतो, पुनीत महतो, डालेशवर महतो, छक्कन महतो बताते हैं कि मार्च से अप्रैल माह तक ग्रामीणों को महुआ मिलता है। पेड़ के नीचे गिरा हुआ महुआ का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में होता है। साथ ही उसे बेच कर कमाई भी अच्छी खासी होती है। 25-30 हजार तक होती है आमदनी :
दुधपनिया , मध्यगोपाली, नावाटांड़, महुआटांड़, खेजवाली, चक्रब्रय, टेसाफुली, अतकी, बरियारपुर, मोहनपुर,चैनपुर आदि गांवों में ग्रामीण जंगल एवं निजी वृक्ष पर से गिरने वाले महुआ चुन का प्रत्येक सिजन में करीब 25-30 हजार रुपया तक की आमदनी कर लेते हैं। जिसके हिस्से अधिक महुआ पेड़ रहता है उसे और अधिक आमदनी होती है। सुरेश महतो, डालेशवर महतो, सोहन महतो, नारायण महतो ने कहा कि एक पेड़ से करीब डेढ़ कुंतल महुआ गिरता है, जो सूखने के बाद लगभग 50 किलो होता है। वर्तमान समय में इसकी कीमत प्रति किलो 60 रुपया है।
कई तरह से होता है उपयोग : महुआ का नाम आते ही उससे चुलाई गई अवैध शराब जेहन में आ जाती है, जबकि महुआ का उपयोग कई तरह से किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग महुआ को उबालकर सत्तू के साथ खाते हैं। महुआ के लड्डू भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा महुआ का पुआ भी लाजवाब होता है। इसका ग्रामीण क्षेत्र में कई रूपों से उपयोग होता है और कई लोगों को इससे रोजगार मिलता है।
कई बीमारियां होती हैं दूर : महुआ पौष्टिक गुण भी समाहित हैं। इसके सेवन से कई गंभीर बीमारियों से निजात मिलती है। दूध देने की क्षमता बढ़ाने के लिए लोग गाय को महुआ खिलाते हैं। महुआ के बीज को कोड़ी कहा जाता है, जिससे तेल निकाला जाता है। इस तेल से गांव में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। कोड़ी के तेल से बना भोजन सुपाच्य व स्वास्थ्य वर्धक होता है। ग्रामीणों का कहना है कि कोड़ी के तेल से बने भोजन खाने से सर्दी खांसी जुकाम जैसी बीमारी ठीक हो जाती है। कोड़ी का तेल लगाने से शरीर मजबूत रहता है। कोड़ी का तेल निकालने के बाद बचे अवशेष यानी खली को जलाने से मच्छर, सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़े आदि आसपास नहीं फटकते हैं। दांतों के लिए भी महुआ रामबाण माना जाता है।