आधार कार्ड, पासबुक नंबर पूछते ही चुप्पी साध लेते मजदूर
झारखंड का गिरिडीह जिला साइबर क्राइम का गढ़ रहा है। यहां के दर्जनों साइबर अपराधी पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं जो देश के विभिन्न राज्यों के सैकड़ों लोगों को अपने जाल में फांसकर उन्हें ठग चुके हैं। इसी के साथ साइबर अपराध के मामले में गिरिडीह जिला पूरे देश में बदनाम भी हुआ है। कोरोना और लॉकडाउन के कारण बाहर से आए प्रवासी मजदूरों में भी इन साइबर अपराधियों का खूब खौफ है।
गिरिडीह : झारखंड का गिरिडीह जिला साइबर क्राइम का गढ़ रहा है। यहां के दर्जनों साइबर अपराधी पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं, जो देश के विभिन्न राज्यों के सैकड़ों लोगों को अपने जाल में फांसकर उन्हें ठग चुके हैं। इसी के साथ साइबर अपराध के मामले में गिरिडीह जिला पूरे देश में बदनाम हुआ है। कोरोना और लॉकडाउन के कारण बाहर से आए प्रवासी मजदूरों में भी इन साइबर अपराधियों का खौफ है। परदेसी बाबुओं को साइबर अपराधियों का इस कदर भय है कि वे जिला प्रशासन द्वारा गठित नियंत्रण कक्ष से फोन पर मांगी जानेवाली जानकारी देने में भी हिचक रहे हैं। इससे वापस लौटे प्रवासियों के बारे जानकारी जुटाने में नियंत्रण कक्ष में प्रतिनियुक्त कर्मियों को परेशानी हो रही है।
प्रवासियों के बारे में जुटाई जा रही जानकारी
विभिन्न प्रदेशों से वापस लौटे मजदूरों को लेकर जिला प्रशासन डाटा तैयार कर रहा है। इसके लिए उनसे कई जानकारियां मांगी जा रही है। जिला नियंत्रण कक्ष में प्रतिनियुक्त कर्मी फोन कर उनसे वे कहां और क्या काम करते थे, वे कुशल या अकुशल मजदूर हैं, उनका आधार कार्ड व बैंक खाता संख्या तथा आइएफएस कोड पूछते हैं। कर्मियों ने बताया कि मजदूर पहले 2-3 सवालों का सही-सही जवाब दे देते हैं, लेकिन जैसे ही आधार कार्ड व बैंक खाता संख्या और आइएफएस कोड के बारे में पूछा जाता है, तो वे चुप्पी साध लेते हैं। इन सवालों को सुनते ही उन्हें साइबर क्राइम का शिकार होने का भय सताने लगता है। उनके मन में यह खयाल आ जाता है कि ठगी करने के लिए कहीं किसी साइबर अपराधी ने तो फोन नहीं किया है। हालांकि किसी प्रवासी मजदूर के साइबर ठगी के शिकार होने का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन साइबर क्राइम के बढ़ते ग्राफ को देख उनमें खौफ अवश्य है।
समझाने में करनी पड़ती काफी मशक्कत
नियंत्रण कक्ष में प्रतिनियुक्त एक शिक्षक ने बताया कि मजदूरों से उक्त जानकारी लेने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। बैंक खाता और आधार कार्ड के बारे में बताना नहीं चाहते हैं, जबकि डाटा तैयार करने के लिए ये सब जानकारी का होना आवश्यक है। यह बताने के बाद कि यह जानकारी जिला प्रशासन की ओर से मांगी जा रही है और वह सरकारी कर्मी हैं, तो मजदूर किसी तरह जानकारी देने के लिए तैयार होते हैं। फिर भी काफी मजदूर आनाकानी करते हुए जवाब देने से इंकार कर देते हैं।
मजदूरों के हित में हो रहा काम :
मजदूरों को लाभ पहुंचाने के लिए ही उक्त जानकारी लेकर डाटा तैयार किया जा रहा है, ताकि भविष्य में उन्हें उनके लायक रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। इसके अलावा भविष्य में यदि सरकार की ओर से मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता या फिर कोई अन्य लाभ देने की बात हो, तो उन्हें आसानी से ये सब लाभ मिल सके।
ट्रू कॉलर से चल सकता पता :
एडीपीओ अभिनव सिन्हा ने बताया कि मजदूरों के पास जिला नियंत्रण कक्ष से फोन किया जा रहा है। ट्रू कॉलर में देखने से पता चल जाएगा कि जिस नंबर से फोन किया गया है, वह जिला नियंत्रण कक्ष का नंबर है। करीब 10 फीसद प्रवासी मजदूर ही जानकारी दे रहे हैं।
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- मजदूरों के बारे में डाटा तैयार कर विभाग को सौंपा जाएगा। सारी जानकारी जिला के वेबसाइट पर भी डाली जाएगी। सरकार की गाइडलाइन के अनुसार मजदूरों को लाभ भी दिया जा सकता है, इसलिए मजदूर नियंत्रण कक्ष से मांगी जाने वाली जानकारी देने से इंकार नहीं करें।
मनीष मोहन, डीआइओ, गिरिडीह।