फुरकान के बहाने बाबूलाल के लिए तैयार हो रहा चक्रव्यूह
झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी महागठबंधन प्रत्याशी के तौर पर कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से चुनावी जंग में कूद चुके हैं।
दिलीप सिन्हा, गिरिडीह: झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी महागठबंधन प्रत्याशी के तौर पर कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से चुनावी जंग में कूद चुके हैं। 2006 के उप चुनाव की तरह इस चुनाव को वे अपने राजनीतिक जीवन का टर्निग प्वाइंट मान रहे हैं। बाबूलाल को इस जंग के चक्रव्यूह में फंसाने के लिए भाजपा के साथ-साथ वामपंथी पार्टी भाकपा माले भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। गोड्डा लोकसभा सीट को लेकर कांग्रेस एवं झाविमो के बीच जो कुछ सियासत हुई, उसका ठीकरा कोडरमा में बाबूलाल पर फोड़ने के लिए विरोधी विशेषकर माले फिल्डिग बिछा रही है। गोड्डा का मुद्दा कोडरमा में उठाकर माले अल्पसंख्यकों को बाबूलाल की ओर जाने से रोक रही है।
वहीं बाबूलाल इस फील्डिग को भेदने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। माले एवं बाबूलाल के बीच यहां लड़ाई विशेषकर अल्पसंख्यक समुदाय के समर्थन को लेकर है। दोनों को मालूम है कि अल्पसंख्यक समुदाय दोनों में से जिसके साथ बहुमत में जाएगा, वही कोडरमा में भाजपा को जवाब दे सकेगा। यही कारण है कि कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में माले एवं झाविमो दोनों पार्टियां पूरी ताकत झोंक रही है।
गांडेय में बाबूलाल ने शुरू किया दौरा: बाबूलाल ने गांडेय विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार से तीन दिनों तक दौरा शुरू किया है। गांडेय में अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या काफी अधिक है। इधर माले नौ अप्रैल को गांडेय के ही अल्पसंख्यक बहुल तेलोडीह में बड़ी रैली करेगी। इस रैली को पार्टी महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा प्रत्याशी राजकुमार यादव एवं पूर्व विधायक विनोद सिंह मुख्य रूप से संबोधित करेंगे।
बाबूलाल पूर्व सांसद डॉ. सरफराज अहमद समेत कांग्रेस एवं अपनी पार्टी के अल्पसंख्यक नेताओं को पूरे लोकसभा क्षेत्र में उतारकर अल्पसंख्यकों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। महागठबंधन का उम्मीदवार होने के कारण उन्हें अल्पसंख्यकों के एक-एक वोट पर भरोसा है। इधर माले के नेता क्षेत्र में यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि फुरकान अंसारी की सीट गोड्डा से अपने विधायक प्रदीप यादव को उतारकर बाबूलाल ने अल्पसंख्यकों के विरोध में काम किया है। इसे मुद्दा बनाकर माले के नेता क्षेत्र में फुरकान पर अपना प्यार उड़ेल रहे हैं।
इधर, झाविमो के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधायक सालखन सोरेन का मानना है कि कोडरमा में बाबूलाल के आगे न तो भाजपा टिकेगी और न ही माले। जहां तक अल्पसंख्यक वोटरों का सवाल है तो वह पूरी तरह से बाबूलाल के साथ है। वहीं माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह कहते हैं कि कोडरमा में भाजपा को हराने की ताकत सिर्फ माले में है। जो भी भाजपा को हराना चाहता है, उसे माले को समर्थन करना होगा। झाविमो को समर्थन का सीधा मतलब है भाजपा को मदद पहुंचाना।
बहरहाल अल्पसंख्यक समाज दोनों की बातों को सुन रहा है। यह समाज अभी अपनी बंद मुट्ठी खोलने के मूड में नहीं है। जैसे-जैसे चुनाव की उलटी गिनती शुरू होगी, इस समाज की मुट्ठी भी धीरे-धीरे खुलती जाएगी। इसके बाद ही सही स्थिति का पता चल सकेगा।
विदित हो कि कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के छह में से चार विधानसभा क्षेत्र गांडेय, राजधनवार, बगोदर एवं जमुआ गिरिडीह जिले में हैं। माले एवं बाबूलाल दोनों का ही व्यापक प्रभाव चारों विधानसभा क्षेत्रों में है। कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के कोडरमा एवं बरकट्ठा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की ताकत सबसे मजबूत है। पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ इन्हीं दो विधानसभा क्षेत्रों के बलबूते भाजपा के डॉ. रवींद्र कुमार राय चुनाव जीतने में सफल रहे थे।
2004 से ही लड़ाई के केंद्र में हैं बाबूलाल व राजकुमार: कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में जब भी बाबूलाल चुनाव लड़े हैं, जीते हैं। भाजपा से हो या फिर निर्दलीय, उनकी जीत हुई है। 2004 में वे भाजपा से, 2006 उपचुनाव में निर्दलीय एवं 2009 में झाविमो से चुनाव जीता थे।
पिछले बार उन्होंने कोडरमा छोड़ा तो उनकी पार्टी के प्रत्याशी प्रणव वर्मा तीसरे नंबर पर आ गए थे। इधर, माले भी 2004 से लगातार बाबूलाल एवं भाजपा को चुनौती देते आ रही है। पिछले चुनाव में तो वह भाजपा की निकटतम प्रतिद्वंद्वी थी। वहीं मोदी लहर में इस सीट पर वापसी करने वाली भाजपा इससे पहले बाबूलाल के भाजपा छोड़ने के बाद यहां तीसरे नंबर की पार्टी हो गई थी।