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पेड़-पौधों से यारी, तो परिवार में आई खुशहाली

पेड़-पौधे न केवल पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित रखते हैं बल्कि ये हमारे जीने के आधार और कमाई का जरिया भी हैं । ये उस सच्चे दोस्त की तरह हैं जो संकट के समय हमारा हर तरह से साथ देता है। हमें आर्थिक तंगी से उबारने में भी इनका अहम योगदान रहता है। हमारे आसपास कई ऐसे उदाहरण हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि पेड़-पौधे आर्थिक उपार्जन के अच्छा माध्यम भी हैं

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 09:00 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 09:00 AM (IST)
पेड़-पौधों से यारी, तो परिवार में आई खुशहाली

ज्ञान ज्योति, गिरिडीह

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पेड़-पौधे न केवल पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित रखते हैं, बल्कि ये हमारे जीने के आधार और कमाई का जरिया भी हैं। ये उस सच्चे दोस्त की तरह हैं जो संकट के समय हमारा हर तरह से साथ देता है। हमें आर्थिक तंगी से उबारने में भी इनका अहम योगदान रहता है। हमारे आसपास कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि पेड़-पौधे आर्थिक ऊपार्जन के अच्छा माध्यम भी हैं। दैनिक जागरण के इस अभियान की अंतिम कड़ी में प्रस्तुत है पेड़-पौधों से यारी कर घर-परिवार की आर्थिक तंगी दूर करने वाले लोगों की कहानी ।

केस स्टडी एक :

सदर प्रखंड के बिरनगड्डा गांव में रहते हैं किसान रामेश्वर सोरेन। वर्ष 2015 में उन्होंने टीडीपी नाबार्ड बाड़ी परियोजना के तहत अपनी बेकार पड़ी एक एकड़ जमीन पर बागवानी की थी। आम, अमरूद जैसे फलदार पौधों के साथ-साथ गम्हार, सागवान आदि के पौधे लगाए थे। तीन साल बाद इससे कमाई होने लगी। हर साल आम व अमरूद बेचकर वह एक लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं।

लॉकडाउन में मिली राहत :

रामेश्वर ने बताया कि उनकी बंजर जमीन बेकार पड़ी थी। उसी पर नाबार्ड के सहयोग से बागवानी की। तीन साल तक पौधों की देखभाल करने के बाद इससे आमदनी होने लगी। इस बार लॉकडाउन में जब सभी काम धंधा बंद हो गया। कहीं कोई काम नहीं मिल रहा था तो इसी बागवानी ने सहारा दिया। आम-अमरूद बेचने से करीब एक लाख रुपये की आमदनी हुई। इसके अलावा वह बाड़ी में खाली पड़ी जमीन पर सब्जी की खेती करते हैं। इस मौसम में 40-50 हजार रुपये की सब्जी भी बेची है। इस तरह कोरोना संकट में बागवानी से बहुत राहत मिली है।

केस स्टडी दो :

नाबार्ड की उक्त परियोजना के तहत ही कोवाड़ में पंकज कुमार वर्मा, राजेश कुमार वर्मा, यदु महतो, देवचंद महतो सहित 14 किसानों ने एक-एक एकड़ जमीन पर बागवानी की है और सब्जी की खेती कर रहे हैं। ये लोग भी फल और सब्जी बेचकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। इससे इनकी आय में वृद्धि हुई है। पंकज कुमार वर्मा, यदु महतो आदि ने बताया कि बागवानी से सालाना 70-80 हजार रुपये की अतिरिक्त आय हो रही है। सब्जी बेचने से भी अच्छी आय हो जाती है। इससे परिवार में आर्थिक समृद्धि आई है। बाएफ के परियोजना पदाधिकारी बीके पाठक ने कहा कि बागवानी करने से न केवल किसानों की आय बढ़ी है, बल्कि बेकार पड़ी बंजर भूमि भी उपजाऊ हो गई है। जमीन बेकार रहने से मिट्टी का कटाव तेजी से हो रहा था, उस पर भी रोक लगी है।

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किसानों की आय वृद्धि के लिए नाबार्ड ने उक्त परियोजना की शुरुआत की थी। सदर प्रखंड के विभिन्न गांवों में 83 एकड़ जमीन पर बागवानी की गई है, जिससे 83 किसान जुड़े हैं। इससे किसानों की आय में वृद्धि हुई है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।

एके गौतम, तत्कालीन डीडीएम नाबार्ड, गिरिडीह ।


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