आधुनिकता के दौर में भी सिलवट का क्रेज
भागमभाग जिदगी और आधुनिकता के इस दौर में एक ओर जहां रसोई में मसाला पीसने के लिए मिक्सर मशीन बुका हुआ मसाला आदि ने अपना कब्जा जमा रखा है वहीं दूसरी ओर इस दौर में आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पत्थर से निर्मित शिलवट्टा ओखली आदि का क्रेज कम नहीं हुआ है। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में उसकी काफी मांग है। ग्रामीण महिलाएं आज भी अपने अपने घरों में शिलवट्टा में ही मसाला पीस कर भोजन पकाने का काम करतीं हैं। शिलवट्टा को ग्रामीण भाषा में लोढ़ी-पाटी कहा जाता है। आज कई लोग लोढ़ी-पाटी को बेचकर इसे रोजगार का साधन बनाए हुए है। ग्रामीण क्षेत्र
मुजतबा अंसारी, गिरिडीह : आधुनिकता के इस दौर में एक ओर जहां रसोई में मसाला पीसने के लिए मिक्सर मशीन, पिसे हुए मसाले ने अपना कब्जा जमा रखा है वहीं दूसरी ग्रामीण क्षेत्रों में पत्थर से निर्मित सिलवट, ओखली आदि का क्रेज आज भी बरकरार है। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में उसकी काफी मांग है। महिलाएं आज भी अपने अपने घरों में सिलवट पर ही मसाला पीसकर भोजन पकाने का काम करतीं हैं। सिलवट को ग्रामीण भाषा में लोढ़ी-पाटी भी कहा जाता है। कई लोग लोढ़ी-पाटी बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में लगनेवाले मेला में लोढ़ी-पाटी की बिक्री जोरों पर देखा जा सकता है। मकर संक्रांति के मौके पर गिरिडीह के चंपानगर में लगे मेला में अन्य सामग्रियों के अलावा सिलवट की भी बिक्री काफी रही।
अहिल्यापुर गांव निवासी विक्रेता रिकू साव ने बताया कि पत्थर से निर्मित लोढ़ी-पाटी की मांग गांव में काफी है। शहर में इसकी बिक्री नहीं के बराबर होती है। बताया कि बाजार में लोढ़ी-पाटी को डेढ़ सौ से दो सौ रुपये, ओखली को दो सो रुपये में बेची जाती है।
अहिल्यापुर के खीरोधर गोस्वामी ने बताया कि वह लोग सिलवट को खरीद कर लाते हैं और मेला के अलावा गांव में घूम-घूमकर बेचते हैं। प्रतिदिन दो सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। इसके अलावा खेती पर आश्रित हैं। खेती और सिलवट की बिक्री कर परिजनों का भरण पोषण किया जाता है।
भलपहरी बोराडीह की सुनीता देवी का भी रोजगार का साधन खेती व सिलवट की बिक्री करना है। उसने बताया कि किसी भी ग्रामीण मेला में वह परिजनों के साथ लोढ़ी पाटी बिक्री की दुकान सजाती है। वह स्वयं पत्थर को तरास कर ओखली, खूट्टा बनाती और बेचती है।