नतिया बड़ भे गेलो, हमरा नाय मिललो वृद्धापेंशन
बगोदर विधानसभा क्षेत्र में आज भी ऐसे गांव हैं जो आजादी के बाद से मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। वहां बिजली है लेकिन जाने के लिए लिए रास्ता नहीं है।
सोहन महतो, बगोदर (गिरिडीह): बगोदर विधानसभा क्षेत्र में आज भी ऐसे गांव हैं जो आजादी के बाद से मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। वहां बिजली है लेकिन जाने के लिए लिए रास्ता नहीं है। इससे लोगों को आने-जाने में काफी परेशानी होती है लेकिन किसी ने आज तक इसकी सुध नहीं ली है। हम बात कर रहे हैं बगोदर विधानसभा क्षेत्र के बगोदर प्रखंड मुख्यालय से 20 किमी दूर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र चौधरीबांध पंचायत के जमुनियासिघा गांव की। इस गांव में लगभग 200 लोग रहते हैं। दो तीन लोगों का गांव में पक्का मकान है बाकी कच्चे मकान हैं, जो कई मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस गांव में स्कूल तो हैं पर बिजली की आंखमिचौनी से लोग परेशान हैं। यह एक शोभा की वस्तु बनकर रह गई है। इस गांव के लोग कोलहा गोलगो से होकर कच्चे रास्ते से जाते हैं, जिसमें पैदल चलना नामुमकिन है। इस रास्ते की स्थिति जर्जर व उबड़ खाबड़ है। रास्ते में निकला पत्थर हाथी के दांत के समान है जिससे आने-जाने में गांववालों को काफी परेशानी होती है। हद तो तब हो जाती है जब कोई बीमार पड़ जाता है। तब यहां कोई वाहन आना नहीं चाहता। रास्ते की स्थिति काफी जर्जर है। जब दैनिक जागरण की टीम जायजा लेने गांव में पहुंची तो बूढ़ी दादी पूसनी देवी ने अपनी व्यथा में सुनाया कि कि कहियो बेटा हमर नाती नतियां बड़ भे गलै और कमायल चेल गेलो लेकिन हमरा अभी तक विधवा ना वृद्धा पेंशन मिललो। रोड की स्थिति जसन देखल हियो वेसने हौ। वही गोलगो के 70 वर्षीय वृद्ध मधु यादव ने कहा कि वे एक गरीब किसान है और खेती बारी करते हैं। उनके पास राशन कार्ड है लेकिन रहने के लिए बढि़या घर नहीं है। आज तक वह प्रधानमंत्री आवास की आस में है। उन्होंने रास्ते को लेकर कहा कि 20 साल पूर्व मिट्टी मोरम का काम हुआ था। उसके बाद से आज तक कुछ भी नहीं हुआ। छात्र मनोज कुमार सिंह ने कहा कि उनलोगों के रास्ते की स्थिति काफी जर्जर है। यह रास्ता कब बना है इसकी जानकारी उसे नहीं है। यहां के लोग अधिकतर बाहर मजदूरी करते हैं। गांव के ही मोहन जो बाहर रहकर मजदूरी करते हैं, ने कहा कि वोट के समय सारे नेता कहते हैं कि रोड बनेगा, पुल बनेगा लेकिन जीतने के बाद कोई इसकी सुधि नहीं लेता है। प्रमेश्वर विश्वकर्मा बताते हैं कि गांव में पक्की सड़क नहीं रहने के कारण यहां से बीमार लोगों को अस्पताल ले जाने में काफी कठिनाई होती है। गांव में बिजली तो है लेकिन उसमें वोल्टेज नहीं रहता है।