झारखंड के संताली कवि व साहित्यकारों की हो रही उपेक्षा
दुमका : अखिल भारतीय संताली विश्व मातृभाषा परिषद से जुड़े झारखंड के संताली भाषा के कवि एवं साहित्यकारों ने संघ लोक सेवा आयोग पर संताली मातृभाषा शीर्ष पाठ्यक्रमों में हनन का आरोप लगाते हुए आयोग के संयुक्त सचिव को पत्र लिखकर इसमें सुधार करने की मांग की है।
दुमका : अखिल भारतीय संताली विश्व मातृभाषा परिषद से जुड़े झारखंड के संताली भाषा के कवि एवं साहित्यकारों ने संघ लोक सेवा आयोग पर संताली मातृभाषा शीर्ष पाठ्यक्रमों में हनन का आरोप लगाते हुए आयोग के संयुक्त सचिव को पत्र लिखकर इसमें सुधार करने की मांग की है। संताली भाषा के भैया हांसदा चासा, बिनसारी टुडू, सुभाषचंद्र सोरेन, रामचंद्र प्रसाद हांसदा समेत कई ने संयुक्त रूप से आयोग को भेजे गए पत्र में कहा है कि संघ लोक सेवा आयोग के पाठ्यक्रम प्राचीन साहित्य में खेरवार बोस धोरोम पुस्तक है। यह ¨हदी विद्यापति पुस्तक का अनुवाद है। इससे संताल की देवी-देवता का अपहरण हो रहा है। इसे अविलंब हटाया जाना चाहिए। अनतो बाहा माला पुस्तक तेज नारायण मुर्मू की है। पाठयक्रम में आदित्य मित्र संताली का नाम दर्ज है जिससे अभ्यर्थियों में भ्रम पैदा हो रहा है। संताली उपन्यास में हाड़मावाक आतो उपन्यास है। यह अंग्रेजी में है। इसको भारतीय संविधान की तरह संताल और अंग्रेजी भाषा में रहना उचित है। संताली साहित्य इतिहास में आदिकाल 1854 है और संताली भक्तिकाल पाठ्यक्रम में नहीं है। इससे पता चलता है कि संताल के ठाकुर-ठाकरान (राम-कृष्ण) ईश्वर एवं मरांग बुरू (शिव) देव नहीं हैं। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के विरुद्ध है। संताली साहित्यकार में केवल ओडिशा के साहित्यकार को ही विश्व कृति कहकर सदस्य रखा जाता है। जीवनी में शामिल किया जाता है तथा साहित्यक अकादमी पुरस्कार दिया जाता है लेकिन झारखंड के मामले में लगातार अनदेखी हो रही है। संताली भाषा में एक भी महाग्रंथ पाठ्यक्रम में नहीं है लेकिन ¨हदी विभाग में रामचरित मानस, कामायनी, कुरुक्षेत्र, सुर-सागर, पद्मावत महाकाव्य मौजूद हैं। साहित्यकारों ने आयोग से इस दिशा में समुचित पहल करने की मांग की है ताकि संताली भाषा को सम्मान मिल सके।