पुत्रदाता मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है सरडीहा काली मंदिर
बासुकीनाथ मंदिर से महज दो किलोमीटर की दूरी पर दुमका-देवघर मुख्य मार्ग पर सरडीहा गांव के समीप स्थित लठियाजोर के मशान काली की महिमा निराली है। इस मार्ग से गुजरने वाले वाहन चालक एवं राहगीर माता का आशीर्वाद लेकर ही आगे की यात्रा करते हैं। मान्यता है कि लठियाजोर की मशान काली मंदिर में भक्तों की मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यह मंदिर पुत्र दाता मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है। भक्तों की मानें तो माता के आशीर्वाद से भक्तों के सभी बिगड़े काम पूरे होते हैं।
संवाद सहयोगी, बासुकीनाथ: बासुकीनाथ मंदिर से महज दो किलोमीटर की दूरी पर दुमका-देवघर मुख्य मार्ग पर सरडीहा गांव के समीप स्थित लठियाजोर के मशान काली की महिमा निराली है। इस मार्ग से गुजरने वाले वाहन चालक एवं राहगीर माता का आशीर्वाद लेकर ही आगे की यात्रा करते हैं। मान्यता है कि लठियाजोर की मशान काली मंदिर में भक्तों की मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यह मंदिर पुत्र दाता मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है। भक्तों की मानें तो माता के आशीर्वाद से भक्तों के सभी बिगड़े काम पूरे होते हैं। मां भक्तों का सदैव कल्याण करती हैं। काली पूजा के अवसर पर यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।
51 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि करीब 51 वर्ष पूर्व से दिवंगत महंत लक्ष्मीनाथ औघड़ यहां माता काली की पूजा अर्चना करते थे। माता की कृपा फलीभूत होने पर वर्ष 2002 में बिजली विभाग के जीएम रमेश नाथ महाराज ने माता की प्रेरणा से इस स्थल पर फूस की झोपड़ी को हटाकर मंदिर का जीर्णोद्धार कर भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
वैदिक रीति एवं तांत्रिक विधि से होती है काली पूजा
मशान काली के महंत बताते हैं कि लठियाजोर के मशान काली मंदिर में वैदिक रीति से एवं मंदिर से नीचे वाले घाट स्थित श्मशान काली में तांत्रिक विधि से काली पूजा का आयोजन किया जाता है। इस पूजा के दौरान साधक एवं तांत्रिकों की भीड़ उमड़ती है।
वर्जन
सरडीहा स्थित मशान काली की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है। माता के दरबार में काफी दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं। यहां मांगी गई भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। यहां के मंदिर में वैदिक रीति एवं तांत्रिक विधि से काली पूजा का आयोजन होता है।
दिनेश पंडा, पुजारी