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14 महीने की दंडवत यात्रा कर हरिद्वार से बाबा बासुकीद्वार पहुंचे जर्नादन

पेश झा लाली बासुकीनाथ(दुमका) शिव के अनन्य भक्तों में एक जर्नादन पासवान उम्र साठ साल। उनपर भक्ति की जुनून ऐसी कि वे हरिद्वार के हर की पौड़ी से एक साल 55 दिन की दंडवत यात्रा तय कर रविवार को दुमका के

By JagranEdited By: Published: Sun, 12 Jul 2020 07:04 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 06:15 AM (IST)
14 महीने की दंडवत यात्रा कर हरिद्वार से बाबा बासुकीद्वार पहुंचे जर्नादन
14 महीने की दंडवत यात्रा कर हरिद्वार से बाबा बासुकीद्वार पहुंचे जर्नादन

रूपेश झा लाली, बासुकीनाथ(दुमका)

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शिव के अनन्य भक्तों में एक जर्नादन पासवान, उम्र साठ साल। उनपर भक्ति की जुनून ऐसी कि वे हरिद्वार के हर की पौड़ी से एक साल 55 दिन की दंडवत यात्रा तय कर रविवार को दुमका के बाबा बासुकीनाथ मंदिर पहुंचे। पर कोरोना संक्रमण काल की वजह से बाबा दर बंद मिला। जर्नादन अपने साथ लाए गंगाजल के पात्र के आधे जल को मंदिर के मुख्य द्वार पर अर्पित कर आधे जल को मंदिर के पुजारी को सौंप दिया ताकि वे बाबा को अर्पित कर दें। बाद वे मंदिर में लगे पंचशूल को दर्शन कर वापस बिहार के जमुई माधोपुर बेलाडीह गांव लौट गए।

जागरण से बातचीत के दौरान जर्नादन ने बतया कि उन्होंने अपनी यात्रा 18 मई 2019 को शुरू की थी। उन्होंने यह यात्रा विश्व में शांति की कामना, समाज में सद्भाव और भाईचारे बनी रहे इसलिए की थी। उनका कहना है कि हरिद्वार से बासुकीनाथ की दूरी करीबन 1500 किलोमीटर की यात्रा उन्होंने दंडवत पूरी की है। इस दौरान उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले गोरखपुर मंदिर, अयोध्या मंदिर, पटना स्थित पटन देवी मंदिर सहित दर्जनों अन्य धाíमक स्थलों का भ्रमण व दर्शन करते यहां पहुंचे। दंडवत यात्रा करते हुए जब वे गांव पहुंचे तो उनका बेटा नरेश पासवान, दामाद कारू पासवान सहित अन्य मौजूद थे। हालांकि उन्होंने पूरी यात्रा अकेले पूरी की है। जर्नादन ने नहीं टूटने दिया दंडवत यात्रा का नियम : दंडवत यात्रा किसी तपस्या से कम नहीं होती है। जर्नादन के अनुसार पहले दंडवत यात्रा के दौरान शरीर के पहुंच तक जमीन में निशान लगाए जाते हैं। इसके बाद निशान लगाए गए जगह पर वापस खड़े होकर दंड दिया जाता है। साथ लाए गंगाजल को भी शुद्ध स्थल पर रखना होता है। जनार्दन बताते हैं कि दंडवत यात्रा का उसने अक्षरश: पालन किया। वह प्रतिदिन तीन से पांच किलोमीटर तक ही दंडवत यात्रा पूरी कर पाते थे। इस दौरान उन्होंने पूरी तरह फलाहार रहे और जहां भी रात्रि विश्राम किया। वहां के लोगों काफी सहयोग किया।


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