एक ऐसे देवता जहां मन्नत पूरी होने पर चढ़ाई जाती देसी दारू, अलौकिक होती यहां की पूजा, अंगारों व कांटों पर चलते हैं भक्त
यहां ब्राह्मण नहीं घटवाल समुदाय है पुजारी बलि समर्पित करने के बाद मयूराक्षी नदी के तट पर भक्त प्रसाद बनाकर ग्रहण करते है क्योंकि घर नहीं ले जा सकते साल में केवल एक बार पूजा होती है।
दुमका, राजीव। दुमका के पहाड़ी बाबा चूटो नाथ। झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल से हजारों लोग यहां आते हैं मन्नत मांगने। पहाड़ी पर बसे हैं तो पहाड़ी बाबा हो गए। मंदिर में ब्राह्मण पुजारी नहीं। घटवाल समुदाय के लोग पुजारी बनकर इनकी पूजा कराते हैं। मन्नत पूरी होने पर बाबा को महुआ से तैयार देसी दारू और पाठा बलि भी समर्पित होती है। मगर यह प्रसाद आप घर नहीं ले जा सकते। बगल में मयूराक्षी नदी है। उसी के तट पर लोग प्रसाद पकाते हैं, खाते हैं।
जो बलि नहीं चढ़ाते और वैष्णव हैं, वे यहां दर्शन करते हैं। अरवा चावल, बताशा, मिष्ठान व लड्डू चढ़ाते हैं। समीप ही शिव पार्वती, मां काली और बजरंग बली के मंदिर में शीश नवाते हैं। यहां चड़क पूजा भी होती है। अलौकिक। भक्त कांटों पर चलते हैं, आग के अंगारों पर गुजरते हैं। जब चड़क पूजा होती है तब यहां बलि नहीं दी जाती। अदभूत है ये अनोखा मंदिर।
जामा के बेदिया निवासी भक्त रामेश्वर राय बताते हैं कि पहाड़ी बाबा की प्राचीन काल से पूजा हो रही है। मंदिर की सबसे अनूठी परंपरा यह है कि देसी शराब अर्पित करें और नदी किनारे प्रसाद बनाकर यहीं ग्रहण करें। उसे अपने साथ लेकर नहीं जाएं। चड़क पूजा के दौरान बाबा की भक्ति में यहां के भक्त डूबे रहते हैं। यह ऐसी कठिन साधना है जिसमें भक्त अंगारों पर चलते है। शरीर में मोटी कीलें चुभा लेते हैं।
प्रतिदिन मंदिर में समर्पित की जाती बाबा को बलि :
निश्चितपुर गांव के निवासी और बाबा के अनन्य भक्त संजय भंडारी बताते हैं कि चूटोनाथ में साल भर पाठा (बकरे) बलि देने की प्रथा है। हालांकि चड़क पूजा से 14 दिन पहले से यहां बलि पर रोक लगा दी जाती है। हर वर्ष 14 अप्रैल को चड़क पूजा का आयोजन होता है। चड़क पूजा के उपरांत पुन: आठ दिनों तक बलि देने पर रोक रहती है। उस दौरान केवल फुलाइश पूजन होता है। चड़क पूजा पर भव्य मेला लगता है। रात भर यहां धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। इसी दिन चूटो पहाड़ी की चोटी पर स्थापित पांच-बहनी माता मंदिर में भी पूजा की जाती है। इस मंदिर में साल में केवल एक बार चड़क पूजा के दिन ही पूजा होती है।
फुलाइश पूजा की अनूठी परंपरा :
इस मंदिर के पुजारी घटवाल समुदाय के मनोज राय बताते हैं कि उनके पूर्वज भी यहां पूजन कराते थे। अब वर्तमान पीढ़ी परंपरा को निभा रही है। श्रद्धालु यहां विशेष फुलाइश पूजन कराते हैं। यह ऐसी परंपरा है जिसके माध्यम श्रद्धालु अपने मन की इच्छा के पूरी होने या न होने के बारे में पता लगाने की कोशिश करते हैं। पुजारी अरवा चावल व अन्य पूजन सामग्रियों से यह पूजा कराते हैं।