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चंचला मंदिर के विकास पर खर्च किया जाएगा 29 लाख रुपये

जरमुंडी प्रखंड मुख्यालय से करीब 12 किमी की दूरी पर मयूराक्षी तट पर स्थित माता चंचला के मंदिर के विकास के लिए 27 लाख्ख्ख रुपये खर्च होंगे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 09:52 PM (IST)Updated: Thu, 02 Dec 2021 09:52 PM (IST)
चंचला मंदिर के विकास पर खर्च किया जाएगा 29 लाख रुपये
चंचला मंदिर के विकास पर खर्च किया जाएगा 29 लाख रुपये

जरमुंडी प्रखंड मुख्यालय से करीब 12 किमी की दूरी पर मयूराक्षी तट पर स्थित माता चंचला के मंदिर में ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल दुमका के द्वारा यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी, मंदिर के जीर्णोद्धार एवं विकास को लेकर कई कार्य कराए जाएंगे। इसके लिए तकरीबन 28 लाख 42,400 रुपये की राशि का प्रविधान किया गया है। इसके लिए निविदा आमंत्रित किए जाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। चंचला मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए सुविधा में बढ़ोतरी किए जाने एवं मंदिर के विकास को लेकर कार्य योजना तैयार किए जाने से स्थानीय ग्रामीणों, धर्मावलंबियों व श्रद्धालुओं में खुशी है।

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बता दें कि मंदिर के विकास को लेकर स्थानीय जिला परिषद सदस्य सह सांसद प्रतिनिधि जयप्रकाश मंडल ने जिला प्रशासन को पत्र प्रेषित कर इस दिशा में सकारात्मक पहल करने की मांग की थी। चंचला मंदिर में विकास कार्यों को प्रारंभ किए जाने की सूचना से मिथलेश महतो, बलदेव तांती, सुमन कुमार, गंगाधर मांझी, धनपति चौधरी, चेतन कुमार, गुड्डू कुमार, बबलू कुमार, दिलीप कुमार, शिवाधन ओझा, शिव शंकर कामती, संतोष कामती सहित सैकड़ों अन्य स्थानीय ग्रामीणों, श्रद्धालुओं ने प्रसन्नता व्यक्त किया है।

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. काली पूजा व नवरात्र में चंचला मंदिर में माता की होती है भव्य पूजा

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बासुकीनाथ : जरमुंडी प्रखंड मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर नोनीहाट बाजार से सटे मयूराक्षी नदी के तट पर आद्य शक्ति भगवती महाकाली की एक प्राचीन प्रस्तर शिला विग्रह है। यहां दीपावली की संध्या पर कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, अमावस्या तिथि, नवरात्र के अवसर पर माता की भव्यतापूर्वक पूजा अर्चना की जाती है। मां चंचला के रूप में विख्यात पत्थर में उकेरी गई माता काली के दस भुजाओं की बनी आकृति के बारे में विशेष जानकारी का अभाव है तथापि अंडमान निकोबार के कुछ तांत्रिक हाल के वर्षों तक यहां तंत्र साधना हेतु आया करते थे।

देवघर जिला प्रशासन द्वारा प्रकाशित 'संताल परगना के ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक अवदान (धरोहर ) पृष्ठ - 36 में वर्णित है कि पूर्व का चौथई स्थान ही वर्तमान में चंचला स्थान के रूप में जाना जाता है। चौथई स्थान से मड़पा पहाड़ तक एक सुरंग था, इस सुरंग में वर्गी जाति के लोग लूटपाट के धन छिपाया करते थे। बाबा बासुकीनाथ के पूर्व प्रधान तीर्थ पुरोहित स्व. नैनालाल झा के पुत्र पंडित तारा कांत झा कृत ''बासुकीनाथ - नागेश ज्योतिर्लिंग' पृष्ठ संख्या सात में भी मां चंचला के महिमा का वर्णन मिलता है। शक्ति पीठों की संख्या दुर्गा सप्तशती एवं तंत्र चूड़ामणि में 52, शिव चरित्र में 51 कालिका पुराण में 26 तथा देवी भागवत पुराण के अनुसार 108 बताई गई है। चंचला स्थान की अवस्थिति प्रमुख शक्ति पीठों चिता भूमि देवघर, तारापीठ, वक्रेश्वर (दुबराजपुर), नंदीपुर, (सैंथिया), कांची (बीरभूम) के त्रिकोण में है। हाल के दिनों में यह पवित्र स्थान पिकनिक स्पॉट एवं नामचीन नेताओं के भोज डिप्लोमेसी के लिए भी चर्चित हुए है। दीपावली के अवसर व नवरात्र के समय यहां माता की पूजा अर्चना के लिए दूरदराज से भक्तों का भारी संख्या में जुटान होता है।


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