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हौसले को डाउन न कर सका यह सिंड्रोम, पैरालंपिक में नाम कमा रही ये बेटियां

जीवन ज्योति की प्राचार्या अपर्णा दास कहती हैं कि डाउन सिंड्रोम ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चों का शारीरिक विकास आम बच्चों की तरह नहीं हो पाता।

By Edited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 07:11 AM (IST)Updated: Thu, 21 Mar 2019 09:07 AM (IST)
हौसले को डाउन न कर सका यह सिंड्रोम, पैरालंपिक में नाम कमा रही ये बेटियां
हौसले को डाउन न कर सका यह सिंड्रोम, पैरालंपिक में नाम कमा रही ये बेटियां
धनबाद, आशीष सिंह। इनमें भी वही बचपना है, वैसी ही समझ-बूझ और संवेदना होती है। कुछ चीजें समझने में उन्हें थोड़ा अधिक वक्त लगे, लेकिन इन्हें कमतर नहीं आंका जा सकता। बस फर्क इतना है कि ये बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं। देखने में सामान्य बच्चों से बस थोड़े से अलग। कई देशों में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों के लिए अलग स्कूल होते हैं। आम स्कूलों में यह धारणा होती है कि ऐसे बच्चे यदि उनके यहां पढ़ेंगे, तो बाकी पर बुरा असर पड़ सकता है, लेकिन सच्चाई यह नहीं है। इन्हें अगर आपका प्यार मिले तो ये हर क्षेत्र में सफलता की इबारत लिखेंगे।
बेकारबांध के पास स्थित दिव्यांग बच्चों के विशेष स्कूल में डाउन सिंड्रोम से पीड़ित 15 लड़के-लड़कियां अध्ययनरत हैं। इनमें से कई बच्चे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पैरालंपिक प्रतियोगिताओं में स्वर्ण और रजत पदक तक जीत चुके हैं। इन्हीं में से एक है मोसाबा परवीन, वासेपुर की यह छात्रा यहां पिछले आठ वर्षो से पढ़ाई कर रही है। मोसाबा ने बेंगलुरु में 100 और 200 मीटर रेस में झारखंड का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीता था। इसके अलावा मुसावा चंडीगढ़, जयपुर, रांची आदि शहरों में आयोजित पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लेकर आठ स्वर्ण और रजत पदक अपने नाम कर चुकी है।
क्या है डाउन सिंड्रोमः जीवन ज्योति की प्राचार्या अपर्णा दास कहती हैं कि डाउन सिंड्रोम ऐसी बीमारी है, जिसमें बच्चों का शारीरिक विकास आम बच्चों की तरह नहीं हो पाता। उनका दिमाग भी सामान्य बच्चों की तरह काम नहीं करता। कई बार उनके व्यक्तित्व में कुछ विकृतिया दिखाई देती हैं, लेकिन प्यार और अच्छी देखभाल से ऐसे बच्चों को सामान्य जीवन दिया जा सकता है। डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक समस्या है, जो क्रोमोजोम की वजह से होती है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो सामान्यत: गर्भावस्था में भ्रूण को 46 क्रोमोजोम मिलते हैं, जिनमें 23 माता व 23 पिता के होते हैं। लेकिन डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चे में 21वें क्रोमोजोम की एक प्रति अधिक होती है, यानी उसमें 47 क्रोमोजोम पाए जाते हैं। इससे उसका मानसिक व शारीरिक विकास धीमा हो जाता है और कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक तालपात्रा के अनुसार प्रत्येक 700 महिलाओं की डिलीवरी में एक बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होता है। अक्सर लोग इसे वंशानुगत समस्या मान लेते हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं होता। अंडों की कोशिकाओं या कई बार शुक्राणुओं की कोशिकाओं में विषमता होने से क्रोमोजोम 21 की दो प्रतिया बनने की बजाए तीन प्रतिया बन जाती हैं, जिन्हें ट्रायसोमी 21 कहते हैं। डाउन सिंड्रोम का यह टाइप 95 प्रतिशत बच्चों में पाया जाता है। विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस डाउन सिंड्रोम के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है।  
डाउन सिंड्रोम की ऐसे करें पहचान
-ऐसे बच्चों की मासपेशिया सामान्य बच्चों के मुकाबले कम ताकतवर होती हैं।
- सामान्य बच्चों की तुलना में बैठना, चलना या उठना सीखने में अधिक समय लेते हैं।
- इससे पीड़ित बच्चों को दिल संबंधी बीमारी होने की आशका अधिक रहती है। इनका बौद्धिक, मानसिक व शारीरिक विकास धीमा होता है। - कई बच्चों के चेहरों पर विशिष्ट लक्षण देखने को मिलते हैं। जैसे कान छोटे होना, चेहरा सपाट होना, आखों के ऊपर तिरछापन होना, जीभ बड़ी होना आदि।
- डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चों की रीढ़ की हड्डी में भी विकृति हो सकती है।
- कुछ बच्चों को पाचन की समस्या भी हो सकती है तो कई बच्चों को किडनी संबंधित परेशानी हो सकती है।
- इनकी सुनने-देखने की क्षमता भी कम होती है।
देखभाल व प्यार है इलाज
- शिशु के जन्म के बाद इसका पूर्ण इलाज संभव नहीं है। प्यार ही उसका इलाज है।
- बच्चे को ऐसा वातावरण देना चाहिए, जिसमें वह सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश कर सके।
- मानसिक व बौद्धिक विकास के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जा सकती है।
- बच्चे के प्रति सकारात्मक रवैया रखें। पोषक तत्वों पर भी ध्यान दें। बच्चे को विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ दें, जिससे उसे संपूर्ण पोषण मिल सके।
- बच्चे को बहुत ज्यादा सुरक्षित घेरे में न रखें। इससे उसके मानसिक व शारीरिक विकास पर असर पड़ सकता है।
- कोशिश करें कि वह भी सामान्य बच्चों की तरह शारीरिक क्रियाकलाप में भाग ले और उनके साथ घुलेमिले।
- अगर दोबारा गर्भधारण करने की सोचें तो डॉक्टर से मिलकर क्रोमोजोम टेस्ट कराएं।
- न तो बच्चे को अपराधबोध कराएं और न ही इस समस्या की वजह से खुद को कुंठित महसूस करें।

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