कोयला में पिछड़े इंटक को अब किसानों की राजनीति में दिख रहा स्कोप
जेबीसीसीआइ-11 में मुंह की खाने के बाद इंटक कोयला छोड़ किसानों की राजनीति शुरू कर दी है। बिखरी इंटक अब यूनियन बचाने के लिए खेतोंं में पसीने बहाते दिखेगी। कोयला मजदूरों के हक को प्रमुखता से रखने वाली इंटक को जेबीसीसीआइ-11 में जगह नहीं मिलने से बड़ा झटका लगा है।
जागरण संवाददाता, धनबाद : जेबीसीसीआइ-11 में मुंह की खाने के बाद इंटक, कोयला छोड़ किसानों की राजनीति शुरू कर दी है। आपसी कलह व फूट से बिखरी इंटक अब यूनियन बचाने के लिए खेतोंं में पसीने बहाते दिखेगी। कोयला मजदूरों के हक को प्रमुखता से रखने वाली इंटक को जेबीसीसीआइ-11 में जगह नहीं मिलने से बड़ा झटका लगा है। इंटक को कही न कही इस बात का भान है कि गर इसके इतर स्कोप नहीं ढूंढा तो आस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा। इसी कारण समय रहते वे किसानों की राजनीति में पहल करने जा रही है। ऐसे भी देश भर में अभी किसान आंदोलन का माहौल बना हुआ है, मीडिया व लोगों की नजर में बने रहने के लिए बड़ा मूद्दा है। असली व नकली के खेल में खुद उलझे इंटक पर अभी ये गाना फिट बैठ रहा है- ये कहां आ गए हम, यूं ही चलते चलते।
राष्ट्रीय खान मजदूर फेडरेशन के उपाध्यक्ष एके झा ने कहा है कि भारत सरकार ने किसानों के लिए मंडी को मजबूत करने के नाम पर एक लाख करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है। यह राशि किसानों को नगद नहीं मिलने जा रही है। सरकार इस राशि को कर्ज के रूप में किसानों को देने के लिए इस योजना की घोषणा की।
झा ने कहा कि पिछले 8 महीने से हमारे देश के किसान तीन कृषि कानून को वापस लेने और एमएसपी को कानूनी दर्जा देने के लिए कानून बनाने की मांग पर संघर्ष कर रहे है।
सरकार ने मूंग का एमएसपी रेट साढे ₹7000 प्रति क्विंटल रखा है लेकिन दिल्ली जैसे शहर के बगल में जहां आंदोलन चल रहा है पंजाब और हरियाणा के किसान पूंजीपतियों के दबाव में मजबूरी में उसी मूंग को चार साढे ₹4000 प्रति क्विंटल बेचने के लिए विवश हैं। ऐसी स्थिति में किसानों को एक करोड़ कर्ज देने की बात करना ना तो देश हित में है ना किसान हित में। महंगाई बढ़ रही है। डीजल के दाम आसमान छू रहा है। बिजली के रेट बढ़ गए हैं। किसान त्राहिमाम कर रहा है। इसके बावजूद भी किसान का आत्मबल बना हुआ है। एफसीआई को समाप्त करने, उसके लगभग 35,000 कर्मचारियों को बेरोजगार करने का प्रयास हो रहा है।
देश के तमाम श्रमिक संगठनों ने एक होकर सरकार से यह मांग की है कि किसानों की आवाज सुने। उनसे संवाद करें जो देश के लिए जरूरी है ताकि समस्या का स्थाई समाधान हो सके। 19 जुलाई को देश के किसानों ने संसद भवन पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है। यह प्रदर्शन एतिहासिक होगा। इंटक सहित देश के 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने किसानों के इस प्रदर्शन का इस आंदोलन का जोरदार समर्थन करने का निर्णय लिया है।
राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक कार्यालय में डाक्टर संजीवा रेड्डी की अध्यक्षता में यह निर्णय लिया गया है कि किसान और मजदूर मजबूती से एक साथ एकजुट होकर प्रदर्शन को सफल करेंगे और 23 जुलाई को देश में किसान आंदोलन के समर्थन में सरकार के पूंजीवादी सोच के खिलाफ विरोध दिवस मनाया जाएगा।
19 जुलाई के प्रदर्शन में दिल्ली के आसपास 400 किलोमीटर में रहने वाले किसान और मजदूर के अलावा देश के मजदूर और किसान शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन को सफल करेंगे। ताकि किसानों की आवाज को ताकत मिल सके। किसानों की जायज मांगों पर सरकार बातचीत शुरू करे और तीनों कानून को जो देश हित में नहीं है, जो किसान हित में नहीं है, उसको वापस लेने का फैसला भारत की सरकार करें।
झा ने कहा भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल को तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो अपने को संस्कृतिक एवं पैटरनल संगठन कहता है देश हित में किसानों के सवाल पर सरकार को मजबूर करे कि सरकार किसानों के साथ बैठकर किसानों की जायज मांग को तुरंत मानने का काम करे। जिसके लिए किसान लगातार 8 महीने से सत्याग्रह कर रहे हैं और सरकार के नीति के सोच के खिलाफ विरोध कर रहे हैं।
झा ने कहा राष्ट्रीय खान मजदूर फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमार जय मंगल (अनूप सिंह) विधायक ने भी फेडरेशन के सभी प्रमुख लोगों से राय मशविरा करके इस दोनों राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम को सफल बनाने का फैसला लिया है। इसलिए हम आम मजदूरों से मजदूर प्रतिनिधियों से अपील करते हैं कि देश हित में किसानों का साथ देने के लिए किसानों के संघर्ष को ताकत देने के लिए किसानों की आवाज को मजबूत करने के लिए सरकार पर लोकतांत्रिक ढंग से अपना दबाव बनाने के लिए 19 तारीख के प्रस्तावित प्रदर्शन को और 23 तारीख के विरोध दिवस को शांतिपूर्ण जोरदार ढंग से किसान और मजदूर मिलकर राष्ट्रव्यापी स्तर पर सफल बनाने का काम करेंगे।