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Weekly News Roundup Dhanbad: इस रेल की भी अजब कहानी... पार्सल भेजा चावल-दाल, मिली खिचड़ी

पार्सल दफ्तर में आटा बिखरा पड़ा है तो कहीं चावल-दाल मिल चुके हैं। जैसे-तैसे फटी बोरियां समेटनी पड़ी। अब अपने नुकसान की भरपाई के लिए पार्सल में बिखरे अनाज और फटी बोरियों की तस्वीरें और वीडियो ट्विटर पर शेयर कर दिया है।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 13 Dec 2020 07:29 AM (IST)Updated: Sun, 13 Dec 2020 09:30 PM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: इस रेल की भी अजब कहानी... पार्सल भेजा चावल-दाल, मिली खिचड़ी
धनबाद से गढ़वा रोड के लिए अनाज की बोरियां बुक करायी थी।

धनबाद [ तापस बनर्जी]। रेलवे के पार्सल से चावल-दाल भेजा था, पर जब पार्सल लेने आए तो मिली खिचड़ी। चौंक गए न। अब आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कैसे हो सकता है। कहानी कुछ यूं है। रामांकात राय ने एक दिसंबर को धनबाद से गढ़वा रोड के लिए अनाज की बोरियां बुक करायी थी। दो दिसंबर को धनबाद से पार्सल चला गया। पहले तो पार्सल नहीं पहुंचने को लेकर चक्कर लगाना पड़ा। फिर जब पार्सल पहुंचा और वह अपना सामान लेने पहुंचे तो देखा कि अनाज की बोरियां बुरी तरह फट चुकी हैं। पार्सल दफ्तर में आटा बिखरा पड़ा है तो कहीं चावल-दाल मिल चुके हैं। जैसे-तैसे फटी बोरियां समेटनी पड़ी। अब अपने नुकसान की भरपाई के लिए पार्सल में बिखरे अनाज और फटी बोरियों की तस्वीरें और वीडियो ट््िवटर पर शेयर कर दिया है। रेलवे ने बस इतना कहा कि आप क्षति पूर्ति का दावा करें।

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जो सीट खाली वही आपकी

आपके पास कंफर्म टिकट है। आप बेफिक्र हैं और यही सोच रहे हैं कि ट्रेन आएगी तो आराम से अपनी सीट पर बैठ जाएंगे। जरा सोचिए, ऐसा नहीं हुआ और पूरी ट्रेन में आपको सीट ढूंढऩी पड़े तो क्या करेंगे। यकीन मानिए, शशि शर्मा के साथ ऐसा ही हुआ। गोरखपुर से लौट रही मौर्य एक्सप्रेस की सेकेंड सीङ्क्षटग में उनका टिकट था। रात के तकरीबन पौने तीन बजे ट्रेन आई। ठंड से ठिठुरते ट्रेन पर सवार हो गए। टिकट निकाला और सीट ढूंढऩा शुरू किया। पूरे डब्बे को खंगाल दिया, पर कहीं सीट नंबर नहीं मिला। पहले से सवार यात्रियों से भी पूछा। उनका कहना था जो खाली है, उसे अपनी मान लीजिए और बैठ जाइए। शर्मा जी बैठ तो गए, मगर सवाल भी उठाया। पूछा, जब ऐसे ही सफर कराना है तो आरक्षण कैसा। रेलवे ने मामला दूसरे डिविजन के पाले में डाल दिया। 

यहां सब ऑनलाइन है

जैसा कहा जाता है, वैसा हरदम होता नहीं। नमूना देखिए। आपने काउंटर से टिकट बुक कराया है और सफर करना नहीं चाहते तो भाग-दौड़ की जरूरत नहीं। 139 पर कॉल करें और टिकट रद। व्यवस्था तो यही है। काउंटर टिकट को ऑनलाइन रद करा सकते हैं। रेलवे के ऐसे दावे लुभावने लगते हैं, लेकिन हकीकत मिजाज बिगाड़ देता है। ऐसा ही हुआ सीतु गुप्ता और उनकी फैमिली के साथ। छह दिसंबर को शक्तिपुंज एक्सप्रेस में धनबाद से डालटनगंज तक टिकट बुक कराया था। किसी कारण टिकट रद कराने की नौबत आ गई तो रेलवे का दावा याद आ गया। ऑनलाइन का सहारा लिया। चलो काम हो गया। जब रिफंड के पैसे लेने डालटनगंज आरक्षण काउंटर पहुंचे तो बुङ्क्षकग क्लर्क ने नियम बताकर नमस्ते कर दिया। रेल मंत्री से जीएम और डीआरएम तक फरियाद पहुंची। बावजूद पैसे नहीं लौटे। हां, रेल नियमों का पुङ्क्षलदा जरूर पहुंच गया।

चार बजे ट्रेन, 7.23 पर एसएमएस 

नया टाइम लागू किए बगैर ही रेलवे ने एक दिसंबर से ज्यादातर ट्रेनों के समय बदल दिए हैं। इस वजह से लगातार यात्रियों की ट्रेन छूटने की शिकायत मिल रही थी। परेशानी तो है ही। रेलवे ने इसके लिए यात्रियों को ही जिम्मेवार ठहराया। हल भी निकाला और आरक्षण फॉर्म में मोबाइल नंबर डालने की नसीहत दे डाली। दावा किया कि ट्रेन लेट होने या रद होने का अपडेट मोबाइल पर ससमय भेज दिया जाएगा। इतना होने के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात। ताजा उदाहरण 11 दिसंबर का है। पटना-हटिया एक्सप्रेस में टिकट बुक कराने वाले यात्री अभिनव कुमार की ट्रेन शाम चार बजे थी और रेलवे का एसएमएस उनके मोबाइल पर शाम 7.23 बजे आया। हजारीबाग से हटिया जानेवाले यात्री ने ट््िवटर पर हाल-ए-बयां कर डाला। लिखा- ऐसे में रेलवे में डिजिटल इंडिया कैसे सफल होगा? उन्हें जवाब मिला- नेटवर्क प्राब्लम।


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