Weekly News Roundup Dhanbad: अभी सिर्फ कोयले की बात, एकता की गांरटी मत पूछो
कुस्तौर बीएनआर साइडिंग का मामला भी यूनियनों के वर्चस्व की लड़ाई का सबब बनता दिख रहा है। तकरीबन छह माह से वेतन भुगतान न होने से परेशान मजदूरों ने विरोध स्वरूप ट्रासपोर्टिंग रोकी।
धनबाद [ रोहित कर्ण ]। भारतीय मजदूर संघ एक बार फिर संयुक्त मोर्चा में शामिल हो गया है। बोले तो कॉमर्शियल माइनिंग के खिलाफ देश के मजदूर एक हो गए हैं। दो से चार जुलाई तक एक साथ हल्ला बोल का एलान कर दिया गया है। इस एकता से संघर्ष में नया मोड़ आया है। मगर, क्या वाकई ये एक हुए हैं। इनमें ऐसा क्या हुआ कि अलग हुए थे। और, अब क्या नहीं होगा। मजदूर संघ के एक दिग्गज नेता की मानें तो अब सिर्फ कोयले पर बात होगी। राजनीति, 370, हिंदू राष्ट्र पर नहीं। मगर, क्या ऐसा मुमकिन है? एक अन्य नेता की मानें तो उन्हेंं कुछ नहीं पता। सबकुछ अभी अखबार में ही है। उनकी आपस में कोई चर्चा नहीं हुई। संगठन में भी विचार विमर्श नहीं हुआ है। अच्छा है एक हुए तो। हम तो संघर्ष करते रहे, और करेंगे। अपनी बात कहेंगे। मजदूर एकता जिंदाबाद।
भला हो भूली वालों का
भूली टाउनशिप। हमेशा अपनी सुविधाओं के लिए संघर्षरत। दूसरी तरफ बीसीसीएल प्रबंधन। सुविधाओं में कटौती के लिए उतना ही प्रयासरत। इस स्थिति का फायदा उठाकर कई होशियार नेता बन गए। भूली वालों को हक दिलाने के नाम पर अच्छा नाम व दाम कमाया। हाल के दिनों में अपने अध्यक्ष जी ने भी भूली वालों का दर्द प्रबंधन को सुनाया। यूं वे खुद भी भूली के ही हैं। बाहर आए तो बताया कि साहब द्रवित हो गए। भूली अस्पताल में सुधार लाने और बिजली आपूॢत सुधारने की हमारी मांग मान ली है। शायद वो ठीक कह रहे थे। अस्पताल चकाचक हो गया है। बस, एक छोटी सी कसर रह गई है। यहां भूली वासियों का इलाज नहीं होगा। दरअसल पहली जुलाई से केंद्रीय अस्पताल अपने पुराने स्वरूप में लौट रहा है। कोविड-19 से प्रभावित भूली क्षेत्रीय अस्पताल में रखे जाएंगे। और भूली वालों का? राम जाने।
खनन की सुगबुगाहट, आंदोलन की भी
बस्ताकोला खदान को आउटसोॄसग पैच बनाया जाना है। कौन कंपनी खनन करेगी, तय हो चुका है। वर्क ऑर्डर नहीं निकला है। आसार है कि जल्द ही निकल जाएगा। इसकी भनक लगते ही विभिन्न स्तर पर लोगों ने तैयारी शुरू कर दी है। कहीं स्थानीय लोग जिन्हेंं रोजगार दिलाना है, उनकी खोज हो रही है तो कहीं आदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है। कोयलांचल की परंपरा के मुताबिक रोजगार पर किनकी कितनी हिस्सेदारी बनती है इसका आधार भी तैयार किया जा रहा है। चाचा तो लॉकडाउन के जमाने से ही उक्त कंपनी के खिलाफ ताल ठोके हुए हैं। दरअसल कंपनी वाले अब भी नहीं मान रहे कि झरिया में उनका राज है। और, अभी तक जिनकी बादशाहत मान रहे, उनका तो शेयर होगा ही। इसके अलावा पार्षद पति, पूर्व पार्षद पति समेत आधा दर्जन से अधिक हितैषी भी उभर चुके हैं। कमाल है।
जमसं बनाम जमसं
कुस्तौर बीएनआर साइडिंग का मामला भी यूनियनों के वर्चस्व की लड़ाई का सबब बनता दिख रहा है। तकरीबन छह माह से वेतन भुगतान न होने से परेशान मजदूरों ने विरोध स्वरूप ट्रासपोर्टिंग रोकी। प्रबंधन ने कुछ पर कार्रवाई की। जवाब में प्रबंधन पर महिला ने गलत व्यवहार का मुकदमा किया। तत्काल उन्हेंं जनता मजदूर संघ बच्चा गुट का समर्थन भी मिल गया। जीटीएस में अब तक जमसं कुंती गुट का यूनियन रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद से ही कुंती गुट के प्रभाव वाले इलाकों में बच्चा गुट दबदबा कायम रखने को प्रयासरत है। इसी के तहत धनसार विश्वकर्मा प्रोजेक्ट में भी बेमियादी धरना दे रहे कुंती गुट के खिलाफ झारखंड मुक्ति मोर्चा गुट को समर्थन देने का काम किया जा रहा है। ऐना का मामला पहले से गरमाया हुआ है। अभी चुनाव हुए साल भी नहीं बीता। अगले वर्षों में इसके और बढऩे की संभावना है।