Weekly News Roundup Dhanbad: फोर्थ अंपायर... ये फुटबॉल के डॉक्टर
यहां तो मार्शल आर्ट का जलवा है। अजीबोगरीब नाम वाले। ये टा तो वो टा। साथ में अंतरराष्ट्रीय का टैग तो बच्चों में गौरव का भाव भर देता है और वे इन संस्थाओं से जुड़ जाते हैं।
धनबाद [ सुनील सिंह ]। पहले वे चिकित्सा जगत के खिलाड़ी थे। फर्जीवाड़े के भी आरोप। सिविल सर्जन ने तो छापेमारी कर उनका नर्सिंग होम सील कर दिया। एमबीबीएस डिग्री भले न हो, शान से नाम के साथ डॉक्टर लगाते हैं। जांच में डिग्री भी फर्जी पाई गई। अब जिला फुटबॉल के सिरमौर बने बैठे हैं। दरअसल झारखंड फुटबॉल संघ के गुलाम रब्बानी धनबाद फुटबॉल के अध्यक्ष एसएम हाशमी से खार खाए बैठे थे। लगभग दस वर्ष तक धनबाद का निबंधन लटका जिले में फुटबॉल की कब्र खोदने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉलर मो. फैयाज आए और डॉक्टर साहब को आगे करते हुए जिला संघ का निबंधन करा लिया। एडहॉक कमेटी बनी कि छह माह में चुनाव करा लिए जाएंगे लेकिन तीन साल से इसके लिए हिम्मत नहीं जुटा पाए। हाशमी से छुटकारा मिल गया लेकिन नया बॉस तो उनसे भी 52 हाथ आगे है।
खेल के साथ खेल
खेल के साथ खेल होता रहा है। कॉलेज-विश्वविद्यालयों में तो खेल यानि फ्री में घुमक्कड़ी ही है। दिसंबर में बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल यूनिवर्सिटी (बीबीएमकेयू) की लड़कियों की टीम ऑल इंडिया वॉलीबॉल टूर्नामेंट खेलने भुवनेश्वर गई थी। टीम लेकर गईं महिला प्रोफेसर ने पुरी घूमने की इजाजत नहीं दी तो लड़कियों के साथ विवाद हो गया। लोग इस मामले की चर्चा चटखारे लेकर करते रहे। नया मामला मेंगलुरु का है। दो जनवरी से वहां यूनिवर्सिटी एथलेटिक्स मीट थी। एक प्रोफेसर साहब मय पत्नी बीबीएमकेयू की टीम लेकर गए। टूर्नामेंट की चिंता छोड़ घूमने निकल गए। 800 मीटर दौड़ की स्पर्धा में एंट्री के वक्त मौजूद नहीं थे। इस कारण पदक के दावेदार एथलीट आसिफ अंसारी की एंट्री ही नहीं हो पाई। स्टेट में गोल्ड और ऑल इंडिया स्टील में सिल्वर ला चुके एथलीट तो मौका चूके ही, यूनिवर्सिटी भी एक संभावित पदक से महरूम हो गई।
माया की माया है
यहां तो मार्शल आर्ट का जलवा है। अजीबोगरीब नाम वाले। ये टा तो वो टा। साथ में अंतरराष्ट्रीय का टैग तो बच्चों में गौरव का भाव भर देता है और वे इन संस्थाओं से जुड़ जाते हैं। एक-दो साल के अभ्यास में ही किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता का हिस्सा बन जाते हैं और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी का तमगा। एक अंतरराष्ट्रीय मार्शल आर्ट संस्था का केंद्रीय कार्यालय नयाबाजार की कबाड़ी पट्टी में है। फुटबॉल-क्रिकेट जैसे खेलों में तो जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा है। इन खेलों में पूरे राज्य में अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों की संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है लेकिन मार्शल आर्ट में एक जिले से ही सैकड़ों निकल जाएंगे। ब्लैक बेल्ट वाले गली-गली में अटे पड़े हैं। स्कूलों में किसी अन्य खेलों के कोच भले ही न मिले लेकिन मार्शल आर्ट के कोच जरूर मिल जाएंगे। जानकार बताते हैं कि इसके पीछे माया की माया है। बच के रहें।
सब मिले हैं सर
युवा क्रिकेटरों की ख्वाहिश चिरयुवा बने रहने की होती है। भले ही आयु बढ़ती रहे, सर्टिफिकेट में नहीं बढ़ती। तभी तो बीस के होकर भी अंडर-16 क्रिकेट में अपना झंडा गाड़ सकेंगे। क्रिकेट की शीर्ष संचालन संस्था का इस मसले पर कड़ा रुख है। बोर्ड के मैचों के पूर्व अंडर-16 के खिलाडिय़ों की मेडिकल जांच होती है। एक्सरे से उम्र का आकलन भी। संबंधित खिलाडिय़ों की रिपोर्ट बीसीसीआइ को भेजी जाती है। बीसीसीआइ ने अपोलो को मेडिकल के लिए नामित कर रखा है। लेकिन, हो यह रहा है कि संबंधित खिलाडिय़ों के बदले कोई दूसरा ही मेडिकल दे रहा है। अब इस रिपोर्ट के आधार पर उसकी आयु तय कर दी जाती है जो अन्य किसी भी आयु वर्ग की प्रतियोगिता के लिए मान्य है। क्या यह संबंधित एसोसिएशन की मर्जी के बिना संभव है? यकीनन नहीं। बोले तो, सब मिले हुए हैं सर जी!