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Weekly News Roundup Dhanbad: धनबाद स्टेशन पर इच्छाधारी सीसीटीवी कैमरा, जानें इसकी खासियत

Weekly News Roundup Dhanbad धनबाद रेल मंडल का विस्तार बिहार उप्र और मप्र तक है। इन जगहों के मरीजों को मुख्यालय के अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा तो है मगर इलाज की गारंटी नहीं।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 10:57 AM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 10:57 AM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: धनबाद स्टेशन पर इच्छाधारी सीसीटीवी कैमरा, जानें इसकी खासियत
Weekly News Roundup Dhanbad: धनबाद स्टेशन पर इच्छाधारी सीसीटीवी कैमरा, जानें इसकी खासियत

धनबाद [ तापस बनर्जी ]। धनबाद रेलवे स्टेशन पर 30 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, मगर इन्हें हैंडल करने वाली आरपीएफ का कमाल कुछ ऐसा है कि ये देखते वही हैं जो वह चाहती है। बानगी देखिए। चलती ट्रेन पर सवार होने में पैर फिसलने से कोई गिर जाए और ऑन ड्यूटी आरपीएफ उसे बचा ले तो कैमरा पूरी घटना कैद कर लेता है। वाह-वाह भी होती है। मगर, कोई बुजुर्ग प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर सुबह से शाम तक ट्रेन के इंतजार में बैठा रहे, उसकी तबीयत बिगड़ जाए और समय पर इलाज न होने से उसकी मौत हो जाए तो ये बात कैमरे पकड़ नहीं पाते। या यूं कहें कि नजरें फेर लेते हैं। वाकया बुधवार का है। हावड़ा-जोधपुर एक्सप्रेस से एक बुजुर्ग उतरे, दिनभर प्लेटफॉर्म पर बैठे रहे। मगर, कब उनकी तबीयत बिगड़ी और कब मौत हो गई, किसी ने नहीं देखा। तो किस काम के हैं कैमरे?

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ट्रेनों से आगे भाग रहा कोरोना

जुलाई की विदाई के साथ अगर आप रेलगाड़ी की सवारी का शौक रखते हैं और सोच रहे कि बस 12 दिन और, तो इसे जेहन से निकाल दीजिए क्योंकि फिलहाल ये हसरत पूरी नहीं होनेवाली। नियमित ट्रेनों के रद होने का सिलसिला अभी और बढऩे वाला है। एक तो अनलॉक 3 में ट्रेनों को लेकर कोई जिक्र नहीं है, उस पर रेलवे ने ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी वाली गेंद राज्य सरकार के पाले में डाल दी है। रेल जीएम साफ तौर पर कह चुके हैं कि रेलवे ज्यादा से ज्यादा यात्री ट्रेनें चलाने ले लिए तैयार है, बस राज्य सरकार की हरी झंडी मिल जाए। कोरोना की बात करें तो धनबाद ही क्या, पूरे झारखंड में संक्रमण की रफ्तार तेज है। पहले ही ट्रेनों के फेरे हटाए गए हैं। वायरस की तेज गति ट्रेनों को आगे निकलने का मौका ही नहीं दे रही है।

आवासों में कब्जा, महकमा चुप

रेलवे कॉलोनियों के क्वार्टर पर अवैध कब्जा नई बात नहीं है। अफसरों को पता है और कब्जा करनेवाले भी जानते हैं कि कार्रवाई बस चार दिन की चांदनी है। एक बार उन्हें हटाने आएंगे और दूसरी बार झांकने की भी किसी के पास फुरसत नहीं होगी। बात रांगाटांड़ रेलवे कॉलोनी की है। इसे पूरे तामझाम से खाली कराया गया, मगर फिर से कितने लौट गए, कोई नहीं जानता। पाथरडीह रेल कॉलोनी में 600 क्वार्टरों पर कब्जा खाली कराने आरपीएफ के आला अफसरान तक पहुंच गए। कई दिनों की मुनादी के बाद एक खास घराने की एंट्री होते ही रेलवे ने कदम खींच लिए। अब रेल मंत्री की सख्ती पर दिल्ली दरबार ने एक बार फिर संदेश भेजा है। अवैध कब्जे की रिपोर्ट मांगी गई है। जनवरी में भी मांगी गई थी। सब जानते हैं कि हिस्सेदारी बाबुओं की भी रहती है। देखिए क्या होता है।

मरीजों की जान नहीं, बचा रहे बिजली

अपने धनबाद रेल मंडल का विस्तार बिहार, उप्र और मप्र तक है। इन जगहों के मरीजों को मुख्यालय के अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा तो है, मगर इलाज की गारंटी नहीं। जब मुख्यालय के अस्पताल की सूरत ऐसी है तो दूसरे रेलवे अस्पतालों की क्या कहें। यहां बिजली बचाने के लिए सोलर पैनल तो लगे हैं, मगर मरीजों की जान बचाने का इंतजाम नहीं है। हालात ये हैं कि रोगी थोड़े सीरियस हुए नहीं कि डॉक्टर ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। तुरंत रेफर ऑर्डर निकल जाता है। कोरोना काल में तो अस्पताल अलर्ट मोड में ज्यादा ही है। मरीज के एडमिट होने से पहले ही उसे रेफर करने की तैयारी शुरू हो जाती है। दो दिन पहले की बात है। सीनियर सेक्शन इंजीनियर एडमिट हुए थे। रातोरात पीएमसीएच रेफर कर दिया गया। इलाज शुरू होते ही मौत हो गई। क्या व्यवस्था है।


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