Weekly News Roundup Dhanbad: इस मदद को क्या नाम दें..., दर्द सुन आप गमजदा हो जाएंगे
Prime Minister Gramin Awaas Yojana गोविंदपुर की मैडम की परेशानी इन दिनों पीछा नहीं छोड़ रही। एक समय था जब वहीं की जनता उनसे परेशान थी। जब समय का चक्र घूमा तो मैडम की परेशानी बढऩे लगी। पहले तो एक के बाद एक जांच से परेशान रहीं।
धनबाद [ आशीष झा ]। Prime Minister Gramin Awaas Yojana सरकारी चक्कर क्या होता है, यह प्रधानमंत्री आवास के किसी लाभुक से पूछ लीजिए। उनका दर्द सुन आप गमजदा हो जाएंगे, लेकिन सरकार है कि उसकी कानों तक आवाज पहुंचती ही नहीं। माजरा यह है कि बालू घाटों की नीलामी हो नहीं रही। सरकार चालान जारी ही नहीं कर रही। जो चोरी-छिपे बालू निकालकर बेच लिया करते थे, वो भी बंद है। चलिए, गिट्टी और ईंट का जुगाड़ तो हो जा रहा, मगर बालू कहां से लाएं। बिना इसके घर तो बन नहीं सकता। इतनी आसान बात क्यों समझ में नहीं आ रही, पता नहीं। हो ये रहा है कि अधिकारी गाड़ी से लाभुक के घर-घर घूम रहे हैं। मकान पूरा नहीं होने पर किस्त वसूली की धमकी दी जा रही है। अब बेचारे लाभुकों को समझ में नहीं आ रहा कि मदद उनकी परेशानी दूर करने के लिए थी या फंसाने के लिए।
बुरा वक्त बोलकर नहीं आता
गोविंदपुर की मैडम की परेशानी इन दिनों पीछा नहीं छोड़ रही। एक समय था जब वहीं की जनता उनसे परेशान थी। जब समय का चक्र घूमा तो मैडम की परेशानी बढऩे लगी। पहले तो एक के बाद एक जांच से परेशान रहीं। इससे फौरी राहत मिली तो वायरस ने दबोच लिया। दूसरों को जागरूक करते-करते खुद ही महामारी की चपेट में आ गईं। अभी उनका इलाज रांची के एक अस्पताल में चल रहा है। जाहिर है, प्रखंड कार्यालय में उनकी गैरमौजूदगी में लोग खुलकर बातें भी कर रहे हैं। या यूं कहें कि भड़ास निकाल रहे हैं। किस-किस को रोकेंगे। कभी न कभी लावा फूटता ही है। भाई, बुरा वक्त किसी का बोलकर थोड़े न आता है। इस बात का ध्यान सभी को रखना चाहिए। पद पर जाते ही जो लोग इसे भूल जाते हैं, वो परेशान ही होते हैं। ईश्वर उन्हेंं जल्द ठीक करे।
पौधे तो लग गए, मगर पानी...
यह बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है। बड़े जोर-शोर से बागवानी की मुहिम चली। व्यापक प्रचार-प्रसार भी हुआ। मगर, एक सच्चाई यह भी है कि अक्सर बड़ी योजनाओं का हश्र वैसा नहीं होता जैसा दावा किया जाता है। इसमें भी वही हुआ। आम बागवानी की सिंचाई के लिए छोटे-छोटे गड्ढे खोदने की बात थी। सबने खोदा भी, लेकिन असल बात भूल गए। गड्ढे के नीचे प्लास्टिक बिछानी थी ताकि उसमें बारिश का पानी जमा रहे। ऐसा हो नहीं सका। किसी गड्ढे में प्लास्टिक नहीं बिछाई गई। नतीजा क्या हुआ- किसी गड्ढे में पानी नहीं बचा। अब पौधे की सिंचाई हो तो सके? अफसरान ने तो पौधा रोप वाहवाही लूट ली, अपनी पीठ भी थपथपा ली, किसान परेशान हैं कि आसपास पानी का इंतजाम ही नहीं तो पौधों को सींचें कैसे। होगा यही कि पौधे तो दम तोड़ ही देंगे, योजना की भी इतिश्री हो जाएगी।
खराब बिजली मीटर या टेंशन
बिजली विभाग की कार्यप्रणाली की क्या कहें। पोल के तारों सी उलझी है। डिजिटल युग है, लोग फटाफट काम करवाना चाहते हैं, मगर विभाग में सब कुछ अब भी पुराने ढर्रे पर ही हो रहा है। सीधे मुद्दे पर आते हैं। धनबाद प्रखंड का कोला कुसमा क्षेत्र। एसएनएमएमसीएच फीडर के उपभोक्ता मीटर जल जाने से परेशान हैं। मिस्त्री से संपर्क किया तो लंबा-चौड़ा बजट बता दिया। बिजली बिल भी कई महीनों से मनुहार करने के बाद भी नहीं दिया जा रहा। एक तरफ बकाया रहने पर कनेक्शन काटने की धमकी दी जाती है, वहीं बार-बार मांगने के बाद भी बिल नहीं भेजा जाता। अब बेचारे कामकाजी अपनी दुकान देखें या बिजली कार्यालय के चक्कर लगाएं। दर्द बेजा भी नहीं है। कहते हैं- सब ऑनलाइन हो चुका है, मीटर बदलवाने की व्यवस्था भी ऑनलाइन हो जाती तो बेहतर होता। लोगों को चक्कर तो नहीं काटने पड़ते।