अबतक कंबल वितरण का नहीं मिला आर्डर, हर साल 10 हजार कंबल खरीदता था प्रशासन
खादी एवं ग्रामोद्योग संघ की छाप पहले हर सरकारी कार्यालय में हुआ करती थी। टेबल क्लॉथ पर्दा अस्पतालों में बेडशीट खादी भंडार से ही खरीदे जाते थे। यहां तक कि एक समान वर्दी भी अस्पताल के नर्सों वार्ड ब्वॉय पुलिसकर्मियों के लिए खादी भंडार से ही खरीद की जाती थी।
धनबाद, जेएनएन: खादी एवं ग्रामोद्योग संघ की छाप पहले हर सरकारी कार्यालय में हुआ करती थी। टेबल क्लॉथ, पर्दा, अस्पतालों में बेडशीट खादी भंडार से ही खरीदे जाते थे। यहां तक कि एक समान वर्दी भी अस्पताल के नर्सों, वार्ड ब्वॉय, चतुर्थवर्गीय कर्मचारी, पुलिसकर्मियों के लिए खादी भंडार से ही खरीद की जाती थी। ठंड का मौसम आते ही बांटने के लिए कंबल व गर्म कपड़े स्कूलों, विशेषकर आवासीय स्कूलों के लिए दरी, तकिया, रजाई, कंबल की खरीदारी व्यापक पैमाने पर होती थी। अब यह नहीं हो रही। वजह सरकार ने न्यूनतम कीमत पर खरीद की नीति पर लागू कर रखी है। संरक्षण वादी नीति समाप्त होते ही खादी भंडार पिछड़ गया है। इससे सिर्फ धनबाद खादी एवं ग्रामोद्योग संघ को सालाना एक करोड़ की चपत लगी है।
रणधीर वर्मा चौक स्थित खादी एवं ग्रामोद्योग संघ के शोरूम के प्रबंधक सत्येंद्र शर्मा की मानें तो 2 वर्ष पूर्व अंतिम आर्डर कंबल का ठंड में वितरण के लिए मिला था। उस वर्ष साल भर में 55 लाख रुपए के लगभग कंबल की खरीद धनबाद व बोकारो जिला प्रशासन ने की थी। केंद्रीय विद्यालयों, कस्तूरबा विद्यालय एवं अन्य आवासीय विद्यालयों के लिए, बेडशीट, तकिया व रजाई लगभग 1500000 रुपये के खरीदे गए थे। लगभग 2200000 रुपये की आमद सरकारी स्कूलों एवं विभागों में दरी की आपूर्ति करने से खादी एवं ग्राम उद्योग संघ को हुई थी। अब यह सब बंद है। इसकी वजह निजी क्षेत्र से कम दर की होड़ में हम शामिल नहीं हो सकते।
शर्मा के मुताबिक खादी की सामग्री गुणवत्ता अच्छी होने की वजह से महंगी होती है। दूसरी बात कि सरकार ने वर्दी के लिए कर्मचारियों को नकद धनराशि उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है। इसलिए अब वर्दी के कपड़े भी यहां से नहीं लिए जाते। इसे अगर मिला दें तो खादी भंडार को पिछले चार-पांच वर्षों में दो करोड़ रुपये सालाना की चपत लगी है।
गया के कंबल से लेकर कश्मीर की शाल तक है उपलब्ध
ठंड शुरू होते ही खादी भंडार की रंगत ही बदल गई है। अभी हां जाड़े में पहने जाने वाले कपड़ों की भरमार है। इनमें डेहरी-आन-सोन व गया में निर्मित खालिस भेड़ के रोएं से बने कंबल से लेकर कश्मीर की मशहूर मेरीनो व पटोरा शाल तक उपलब्ध है। गया व डेहरी-आन-सोन का काला कंबल जहां ₹1200 में उपलब्ध है, वहीं पानीपत से मंगाया गया नरम कंबल ₹2200 तक में आता है। इसके अलावा यहां चादर, टोपी, मफलर, गाउन, जैकेट (हाफ एवं फुल) बंडी (दो रुखाई एवं सिंगल), शॉल, चादर, पटोरा इत्यादि उपलब्ध हैं। सर्वाधिक महंगा आइटम कश्मीर का पटोरा है। यह 3700 रुपये व ₹38000 में मौजूद है। जबकि मेरीनो शाल ₹1600 से ₹3500 तक में उपलब्ध है।
20 फीसद छूट
प्रबंधक सत्येंद्र शर्मा के मुताबिक यहां पाए जाने वाले सूती, ऊनी, रेशमी व कंबल सभी तरह के खादी वस्तुओं पर 20 फीसद की छूट दी जा रही है। यह छूट 31 मार्च तक रहेगी।