डीलर रजिस्ट्रेशन के लिए जमानंत बांड की अनिवार्यता से पेट्रोल-डीजल और शराब व्यापारी परेशान, ICAI ने झारखंड के वित्त मंत्री से साझा किया दर्द
डीलर पंजीकर की शर्तों से झारखंड के पेट्रोल डीजल और शराब व्यवसायी परेशान हैं। इनकी परेशानियों से आइसीएआइ ने राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव को अवगत कराया है। डीलर रजिस्ट्रेशन के लिए जमानत बांड की अनिवार्यता समाप्त करने की मांग की है।
जागरण संवाददाता, धनबाद। पेट्रोल, डीजल और शराब डीलर के पंजीकरण के लिए आवेदन करते समय मौजूदा डीलरों से जमानत बांड प्रस्तुत करना आवश्यक किया गया है। जीएसटी लागू होने के बाद ऐसी जमानत मिलना बहुत मुश्किल है। इस आवश्यकता को समाप्त किया जाना चाहिए। यह दर्द द इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स आफ इंडिया की धनबाद, रांची और जमशेदपुर शाखा ने राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव के समक्ष साझा किया है। साथ की जीएसटी की परेशानियों से भी अवगत कराया है।
करदाताओं को बेवजह हो रही परेशानी
आइसीएआइ के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव से मुलाकात कर ढेरों समस्याएं गिनाते हुए इनके समाधान की बात कही। यह भी कहा कि राजस्व और करदाताओं दोनों के संसाधनों का उपभोग करने वाले राजस्व अधिकारियों के समक्ष बड़ी संख्या में वैट और सीएसटी मामले लंबित है। इन सभी पुराने बकाए को खत्म करने के लिए एकमुश्त बकाया जमा योजना शुरू करनी चाहिए। धनबाद शाखा अध्यक्ष सीए प्रतीक गणेरीवाल, रांची शाखा अध्यक्ष सीए प्रवीण शर्मा, जमशेदपुर शाखा अध्यक्ष सीए विकास अग्रवाल ने कहा कि अपील-पुनरीक्षण के कई मामलों में प्राधिकरण द्वारा पारित अपील-पुनरीक्षण आदेश का प्रभाव अभी तक नहीं दिया गया है। इससे करदाताओं को बेवजह परेशानी हो रही है।
बोझिल बन गया है जीएसटी रिफंड
एडवांस रूलिंग अथॉरिटी में बड़ी संख्या में पेंडेंसी हैं। इसके कारण शुरुआती दौर में विवादों को कम करने के कानून के मूल इरादे को जोर नहीं मिल रहा है। राज्य प्राधिकरणों में जीएसटी के आदेश के खिलाफ अपील लंबित है। पारित आदेशों को दिए जाने वाले प्रभाव उचित समय पर नहीं किए जा रहे हैं। यही नहीं जीएसटी के तहत रिफंड पाना एक बहुत ही बोझिल प्रक्रिया बन गई है। पारित किए गए अस्वीकृति आदेशों में दस्तावेजों की अस्वीकृति या आगे की आवश्यकताओं के कारण नहीं हैं। इसके अलावा, ऐसे मामलों में जहां दस्तावेज ऑनलाइन जमा किए गए हैं, दस्तावेजों को ऑफलाइन जमा करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। जीएसटी के तहत पंजीकरण के मामलों में काफी देरी होती है। यहां तक कि उचित कारण बताए बिना अस्वीकृति भी की जा रही है। इसमें सुधार की गुंजाइश है।