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Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: लापता होने से पहले अंतिम बार धनबाद में देखे गए थे नेताजी

आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का धनबाद से भी गहरा नाता रहा है। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है। नेताजी का वर्ष 1930 से 1941 के बीच कई बार धनबाद आगमन हुआ था।

By Atul SinghEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 08:42 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 08:42 AM (IST)
Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: लापता होने से पहले अंतिम बार धनबाद में देखे गए थे नेताजी
आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का धनबाद से भी गहरा नाता रहा है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

आशीष सिंह, धनबाद: आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का धनबाद से भी गहरा नाता रहा है। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है। नेताजी का वर्ष 1930 से 1941 के बीच कई बार धनबाद आगमन हुआ था।

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यहां वे जर्मन वेंडरर सेडान कार पर सवार होकर धनबाद, झरिया, जामाडोबा, टाटा सिजुआ, तोपचांची, कतरास और बाघमारा इलाके में घूमते थे। देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलन में लोगों को एकजुट कर सकें। मजदूरों के बीच बैठकों के दौरान ही आजाद हिंद फौज की परिकल्पना की गई।

काबुल होते हुए जापान जाने के क्रम में नेताजी ने धनबाद के गोमोह स्टेशन से दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ी थी। दिल्ली से काबुल गए और उसके बाद जापान। अगस्त 1945 से ही नेताजी लापता हो गए थे। अंतिम बार उनको गोमो रेल जंक्शन पर ही देखा गया था। नेताजी के सम्मान में रेल मंत्रालय ने वर्ष 2009 में इस स्टेशन का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन कर दिया। 23 जनवरी 2009 को उनकी जयंती के अवसर पर तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने उनके स्मारक का यहां लोकार्पण किया।

धनबाद में रहते थे नेताजी के रिश्तेदार

नेताजी का धनबाद से पारिवारिक रिश्ता भी था। यहां उनके चाचा अशोक बोस केमिकल इंजीनियर थे। 16 जनवरी 1941 को जब नेताजी जियाउद्दीन पठान के वेश में अंग्रेजों की नजरबंदी से कोलकाता से भाग निकले तो सीधे धनबाद बरारी में अपने चाचा अशोक बोस के यहां गए। नेताजी दिनभर यहीं रहे। यहां से कार से तोपचांची चले गए। तोपचांची से दूसरी कार (बीएलए 7164) पर सवार होकर गोमोह स्टेशन गए। वहां से ट्रेन से दिल्ली निकल गए। जिस कार से नेताजी धनबाद में चलते थे उसका मालिकाना हक ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था। कंपनी ने यह कार बरारी प्लांट में तैनात उनके रिश्तेदार अशोक बोस को दी थी। जो नेताजी के चाचा थे। धनबाद आने पर नेताजी इसी कार की सवारी करते थे। इसी कार से वे तोपचांची तक गए और फिर वहां से गोमोह स्टेशन के लिए दूसरी कार ली।

गोमो से हो गया नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन

17 जनवरी 1941 रात के समय कार से नेताजी अपने भतीजे डॉ.शिशिर बोस के साथ धनबाद के गोमोह स्टेशन पहुंचे। अंग्रेजी फौजों और जासूसों से नजर बचाकर गोमोह हटियाटांड़ के घने जंगल में नेताजी छिपे रहे। यहां जंगल में ही स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और वकील चिरंजीव बाबू के साथ एक गुप्त बैठक की थी। बैठक के बाद वकील चिरंजीवी बाबू व अलीजान ने गोमो के ही लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में नेताजी को ले गए। यहां उनको एक घर में छिपा दिया था। रात भर नेताजी यहां रहे। 18 जनवरी 1941 की रात दोनों साथियों ने इसी गोमोह स्टेशन से उनको कालका मेल से दिल्ली रवाना किया था। इसलिए ही गोमो का नाम नेताजी सुभाष चंद बोस जंक्शन रखा गया। धनबाद में 1930 में देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन कोल माइनर्स टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना की थी। नेताजी स्वयं इसके अध्यक्ष थे। मजदूरों को संगठित कर उनके हक की लड़ाई के दौरान ही नेताजी ने आजाद हिंद फौज गठन का खाका तैयार कर लिया था।


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