टुंडी के लखीराम आज भी हैं आदर्श, बहु ने सुनाया विधायक ससुर के दिलचस्प किस्से Dhanbad News
सरस्वती देवी बताती हैं कि शादी के बाद जब वह अपने ससुराल पहुंची तो देखा कि मेरे विधायक ससुर का एक छोटा सा बिचाली का घर है। एक बार उनके साथ रिक्शे के सहारे पूरा पटना घूमे थे।
धनबाद, (गौतम कुमार ओझा)। आज लोग जहां राजनीति को पैसे कमाने का सबसे बड़ा जरिया मनाते है। वहीं 60-70-80 के दशक में कई ऐसे नेता भी हुए, जिन्होंने राजनीति को सिर्फ सेवा का माध्यम बनाया और अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने कभी भी खुद पर स्वार्थ को हावी नहीं होने दिया। उन्हीं नामों में एक नाम है लखीराम मांझी।
धनबाद के टुंडी स्थित घोर नक्सल इलाका तिलैयबेड़ा के रहनेवाले लखी राम वर्ष 1957 और 1962 में कांग्रेस के टिकट पर निरसा विधानसभा से दो बार विधायक चुने गए, लेकिन आज भी उनका घर खपरैल का है। उनकी ईमानदारी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। जब पार्टी उन्हें तीसरी बार चुनाव लड़ाना चाही तो उन्होंने इससे साफ इन्कार करते हुए कहा कि युवा नेतृत्व को मौका मिलना चाहिए।
शिबू सोरेन का नेतृत्व नहीं किया स्वीकार
आज जब लोग सत्ता स्वार्थ के लिए कपड़े की तरह पार्टी बदलते हैं। उन दिनों टुंडी इलाके में शिबू सोरेन के आंदोलन के सहभागी रहे लखी राम ताउम्र कांग्रेसी बने रहे। शिबू की राजनीतिक बुलंदी के बावजूद भी उन्होंने कभी उनका नेतृत्व स्वीकार नहीं किया। कई पाटियों के लोग उन्हें अपने में शामिल करने के लिए कोशिश में लगे रहे। साल 1990 में उनकी मौत हो गई। उन दिनों को याद करते हुए उनके बेटे देवान सोरेन जो कृषि बाजार समिति बरवाअड्डा से चतुर्थ वर्गीय पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें पार्टी में लाने वाले राज नारायण शर्मा (चार बोकारो) और धनबाद गोविंदपुर प्रखंड के रंगलाल चौधरी थे।
पहली बार चुनाव प्रचार के लिए पार्टी ने दी जीप
पार्टी में आने के बाद उन्होंने एक साइकिल खरीदी थी, जिसे देखने के लिए आसपास के लोग जुट गए थे। इसी साइकिल के भरोसे वें चुनाव प्रचार किया करते थे। बाद में पार्टी कि और से टिकट मिलने पर उन्हें चुनाव प्रचार के लिए जीप दी गई थी। चुनाव लड़े और विधायक भी बने। उन दिनों बरवाअड्डा से घर आने के लिए सड़कें नहीं हुआ करती थी। बरबाअड्डा से पगडंडियों के सहारे 20 किलोमीटर पहाड़ और जंगल को पार करते हुए वें घर पहुंचते थे।
पटना विधानसभा जाने के लिए आधी रात को ही घर से पैदल निकलते थे
कई बार बिहार विधानसभा पटना जाने के लिए उन्हें आधी रात को ही घर से पैदल चलना पड़ता था। ऐसे में बरवाअड्डा से गाड़ी पकड़ कर धनबाद रेलवे स्टेशन पहुंचते थे और फिर ट्रेन के सहारे पटना जाते थे। पटना से लौटने के दौरान अगर देर रात हो गई तो उनके एक बड़े भाई जो पांडेय बरवा में रहते थे। उनके यहां कभी-कभी रुक जाया करते थे।
देवान की शादी की दिलचस्प बातें : देवान ने बताया कि मेरी शादी 1965 में सोबना बास्की की बेटी जो पेशे से लकड़ी मिस्त्री थे उनसे हुई। जबकि, देवान की पत्नी सरस्वती देवी बताती हैं कि शादी के बाद जब वह तिलैयबेड़ा स्थित अपनी ससुराल पहुंची तो देखा कि मेरे विधायक ससुर का एक छोटा सा बिचाली का घर है। दूसरे टर्म में ससुर हमलोगों के पटना विधानसभा स्थित आवास घूमने लेकर गए थे। उन दिनों विधायकों को आज की तरह सुविधाएं नहीं दी जाती थी और न ही अंगरक्षक होते थे। घूमने के लिए रिक्शा ही एक मात्र सहारा हुआ करता था। हमलोगों ने ससुर के साथ इसी रिक्शे के सहारे पूरा पटना घूमे थे। हालांकि, पैसे की तंगी हर वक्त लगी रही।
इतिहास के झरोखे से :
- 1957 और 1962 को निरसा विस से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं लखीराम
- आंदोलन में शिबू के साथ रहे मांझी ने उनका नेतृत्व कभी नहीं स्वीकारा
- मरते दम तक पार्टी के सच्चे सिपाही बने रहे लखीराम
- विससत्र में भाग लेने के लिए 20 किमी पैदल चल पहुंचते थे स्टेशन
- पिता की विधायकी खत्म होने के बाद बेटे को मिली थी नौकरी