Sri Chitragupta Puja 2020:चित्रगुप्त के दरबार में कैथी में लिखा जाता था पाप-पुण्य का हिसाब, अंग्रेजों ने दिया राजकीय भाषा का दर्जा; अब हुई विलुप्त
Sri Chitragupta Puja 2020 भारत की बहुत सारी भाषाएं समाप्त हो गई। इससे कई सभ्यताएं भी समाप्त हो गईं। भाषाओं का सभ्यताओं से सीधा लेना देना है। पुरातन सिक्कों और प्रतिलिपियों के संग्रहकर्ता अमरेंद्र आनंद बताते हैं कि भारत में कैथी एक प्रचलित भाषा थी। आज समाप्त हो गई है।
धनबाद, जेएनएन। Sri Chitragupta Puja 2020 आज (16 नवंबर ) को चित्रगुप्त पूजा है। पुराणों के अनुसार चित्रगुप्त अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा कर न्याय करते थे। इनका लेखा-जोखा एक विशेष भाषा में होती थी, जिसे कैथी के नाम से जाना जाता था। पुरातन हिंदू संस्कृति के अनुसार कर्म के आधार पर जाति का निर्धारण किया गया था। इसके अनुसार कायस्थों का काम लिखने पढ़ने का था। कायस्थों ने कैथी भाषा को अपनाया। राजा-महाराजाओं के समय कायस्थ कैथी भाषा में ही हिसाब-किताब करते थे। हालांकि यह भाषा आज विलुप्त हो चली है। कभी धनबाद और आसपास के इलाके में कैथी में ही तमाम दस्तावेज लिखे जाते थे।
भारत की बहुत सारी भाषाएं समाप्त हो गई। इससे कई सभ्यताएं भी समाप्त हो गईं। भाषाओं का सभ्यताओं से सीधा लेना देना है। पुरातन सिक्कों और प्रतिलिपियों के संग्रहकर्ता अमरेंद्र आनंद बताते हैं कि भारत में कैथी एक प्रचलित भाषा थी। यह आज समाप्त हो गई है। इससे एक सभ्यता भी लगभग ख़त्म हो गई। कायस्थों की भाषा कैथी - एक ऐसी भाषा थी जिसकी खुद की अपनी लिपि थी। इसकी शुरुआत एक जाति विशेष कायस्थों ने अपने प्रयोग के लिए की थी, जो धीरे धीरे जनमानस की भाषा हो गई। 1870 में ब्रिटिश सरकार ने इसे राजकीय भाषा का दर्जा दिया था। उस समय की कागजी मुद्रा, कोर्ट के दस्तावेज आदि पर इस भाषा को देख जा सकता है। यह आज विलुप्त होती जा रही है।
बिहार और पश्चिम बंगाल में अधिक होता था प्रयोग
अमरेंद्र बताते हैं कि कायस्थों की यह भाषा न्यायालय और सरकारी दफ्तरों में खूब प्रचलित थी। खासकर बिहार, अवध और बंगाल के इलाकों में इसका प्रयोग अधिक होता था। कैथी या कायस्थी लिपि में देवनागरी को घुमावदार (कर्सिव) तरीके से लिखा जाता था। यह थी तो हिंदी की वर्णमाला ही, लेकिन लिखने का तरीका अलग होता था। कैथी लिपि का प्रयोग मॉरिशस, त्रिनिदाद और उत्तर भारतीय प्रवासी समुदाय के लोग भी करते थे। कैथी का प्रयोग भोजपुरी, मगही, हिंदी-उर्दू से संबंधित कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को लिखने के लिए भी किया जाता था।