Weekly News Roundup Dhanbad : निराले हाल तीरंदाजी के... जानें खेल जगत की हलचल 'फोर्थ अंपायर' के साथ
धनबाद जिला तीरंदाजी एसोसिएशन के हाल निराले हैं। एक से बढ़कर एक तीरंदाज भरे पड़े हैं यहां। हवा में तीर चलाने में माहिर।
धनबाद, [सुनील सिंह]। धनबाद को देश का कोल कैपिटल कहा जाता है। लेकिन, इस शहर ने कोयला के अलावा ऐसे हीरे भी जने हैं, जिन्होंने देश-दुनिया में शहर और राज्य का नाम रौशन किया है। वैसे यहां के खेल एसोसिएशन के हाल भी निराले हैं। यहां एक से बढ़कर एक तीरंदाज भरे पड़े हैं। ऐसे में आइये जानते हैं धनबाद के खेल जगत के गलियारे में हो रही तीरंदाजी का हाल फोर्थ अंपायर के साथ...
तीरंदाजी एसोसिएशन के हाल निराले हैं। एक से बढ़कर एक तीरंदाज भरे पड़े हैं यहां। हवा में तीर चलाने में माहिर। अध्यक्ष बिजय झा राजनीति के विशेषज्ञ धनुर्धर हैं तो महासचिव जुबैर आलम फुटबॉलर। झाजी की एक और योग्यता है- आकर्षक स्पांसर की। सप्ताहभर पहले जिला चैंपियनशिप के आयोजन की घोषणा की। वेन्यू डिगवाडीह स्टेडियम। मगर, टाटा प्रबंधन की सहमति बिना ही। फिर संपर्क किया तो पता चला कि वहां कंपनी का वार्षिक खेलकूद आयोजन है। आनन-फानन स्थान बदला गया। आयोजन में लगभग दस टारगेट बोर्ड लगेंगे। टाटा फीडर सेंटर को छोड़ शायद ही किसी के पास यह बोर्ड है। एक तकनीकी अधिकारी की भी जरूरत पड़ेगी। लेकिन, एसोसिएशन का एक भी अधिकारी ऐसा नहीं है जो तीरंदाजी की बारीकियों को समझ सके। ले-देकर बचे तीरंदाजी कोच मो. शमशाद। उनसे तो पहले ही किनारा कर लिया गया है। अब जैसे-तैसे आयोजन की खानापूर्ति पूरी कर देंगे।
खेल के नाम पर उगाही
अभी जिले के नामी स्कूलों की फीस वृद्धि को लेकर स्कूल प्रबंधन और जिला प्रशासन की ठनी पड़ी है। अभिभावक भारी-भरकम फीस से हलकान हैं, लेकिन बच्चों के भविष्य के लिए चुप्पी साधने को मजबूर। नामी स्कूलों में खेल के मद में प्रति छात्र 400 से हजार रुपये तक की भारी-भरकम रकम वसूली जाती है, लेकिन यह राशि कहां खर्च होती है किसी को पता नहीं चलता। डिनोबिली डिगवाडीह की बात करें तो स्कूल की टीम अगर क्रिकेट या बास्केटबॉल टूर्नामेंट खेलने जाए तो स्कूल कोई जिम्मेदारी नहीं उठाता। बच्चे अपने खर्च पर मैदान जाएंगे। गेंद के लिए आपस में कंट्रीब्यूट कर पैसे जुगाड़ेंगे। लंच के लिए तो वैसे भी स्कूल टिफिन बॉक्स ले ही जाते हैं, उसी से काम चल जाता है। मजे की बात है कि बच्चों को ले जाने के लिए कोई खेल शिक्षक भी नहीं रहता। कमोबेश सभी स्कूल खेल के नाम पर सिर्फ उगाही ही कर रहे हैं।
सेर पर भारी सवा सेर
झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (जेएससीए) जूनियर स्तर के टूर्नामेंट के लिए खिलाड़ियों से कई तरह के डॉक्यूमेंट मांगती है। नगर निकाय और स्कूल की ओर से जारी आयु प्रमाणपत्र, पैन कार्ड, आधार कार्ड के अलावा स्थानीय निवासी होने के प्रमाणपत्र के तौर पर अन्य सर्टिफिकेट। इसके पीछे जेएससीए की सदिच्छा दिखती है कि वह बाहरी क्रिकेटरों को दूर रखना चाहती है। लेकिन, अंडर-19 क्रिकेट में धड़ल्ले से बाहरी क्रिकेटर अपना जलवा बिखेर रहे हैं। शायद ही कोई टीम ऐसी हो जिसमें दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा आदि स्थानों के खिलाड़ी नहीं हों। जेएससीए के स्कोरिंग एप इसकी गवाही देते हैं। इतनी पाबंदियों के बावजूद ऐसा कैसे हो पा रहा है। सीधी बात है कि खिलाड़ी तमाम डॉक्यूमेंट फर्जी तरीके से तैयार कर रहे हैं और इसमें संबंधित जिला संघ की भूमिका भी संदिग्ध है। तय मान लें कि जेएससीए अगर सेर है तो जिला संघ सवा सेर।
महिला क्रिकेट का द्रोणाचार्य
जनाब महिला क्रिकेट के द्रोणाचार्य हैं। ऐसा वे खुद कहते हैं। दावा करते हैं कि उनकी सिखाई कई लड़कियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवा दिखा रही हैं। लोग-बाग ऐसा मान लेते हैं। लेकिन, मैदान के बाहर उनका आचरण कुछ अलग ही दिखता है। क्रिकेटरों के नाम पर पूरे शहर में वसूली के किस्से चर्चा में हैं। एक दिन पहुंच गए एक बिल्डर के पास। अपने प्रशिक्षुओं को अंतरराष्ट्रीय मैटेरियल होने और आर्थिक विपन्नता के कारण प्रतिभा की असामयिक मौत हो जाने की बात कह मदद मांगी। अब धनबाद क्रिकेट के दिग्गज ठहरे बिल्डर्स एसोसिएशन के बड़े पदाधिकारी। इस नाते दोनों पूर्व परिचित थे। तुरंत पदाधिकारी को फोन लगा पूछ बैठे कि मदद के लिए पहुंचे हैं। क्या करना है। दिग्गज चुप। कहें तो कहें क्या। ऐसी शिकायतें तो उनके पास कई और लोग पहले भी कर चुके थे। बेचारे कट लिए यह कहकर, जैसा आप उचित समझें।