एक एनआइसीयू बेड पर दो-दो नवजात, ऐसे में तीसरी लहर में भगवान ही मालिक
जागरण संवाददाता धनबाद इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) सहित विशेषज्ञों ने सितंबर में कोरोना की संभावित तीसरी लहर आने की आशंका जताई है। धनबाद में जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग तैयारियां तेज करने की बात कह रहे हैं लेकिन यह धरातल पर तैयारियां अधूरी पड़ी है। एसएनएमएमसीएच में अभी एसएनसीयू (सिकल नियोनेटल केयर यूनिट) और एनआइसीयू (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) यूनिट चल रहा है। लेकिन दोनों जगहों पर एक बेड पर दो-दो नवजात रखे जा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, धनबाद : इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) सहित विशेषज्ञों ने सितंबर में कोरोना की संभावित तीसरी लहर आने की आशंका जताई है। इसको लेकर सभी राज्य में अलर्ट जारी किया जा रहा है। धनबाद में भी जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग तैयारियां तेज करने की बात कह रहे हैं, लेकिन यह धरातल पर तैयारियां अधूरी पड़ी है। एसएनएमएमसीएच में अभी एसएनसीयू (सिकल नियोनेटल केयर यूनिट) और एनआइसीयू (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) यूनिट चल रहा है। लेकिन दोनों जगहों पर एक बेड पर दो-दो नवजात रखे जा रहे हैं। हर दिन 10 से 15 नवजात भर्ती होने के लिए यहां आ रहे है, लेकिन सभी को जगह नहीं मिल पा रही है। ऐसे में तीसरी लहर यदि आती है, तो नवजात व बच्चों को तत्काल कहां भर्ती किया जाएगा। यह बताने वाला कोई नहीं है। एनआइसीयू में नहीं है आक्सीजन पाइपलाइन का सपोर्ट
एसएनएमएमसीएच के एनआइसीयू में 12 बेड हैं। बुधवार को इन बेडों पर 24 नवजात भर्ती थे। एक बेड पर दो-दो नवजात को रखा जा रहा है। शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. अविनाश कुमार का कहना है कि प्रतिदिन 10 से 12 नवजात यहां भर्ती होने के लिए आते हैं। यही कारण है कि एक बेड पर दो तो कभी तीन नवजात को रखने पड़ते हैं। यह तब है, जब तीसरी लहर अभी तक आई नहीं है। वहीं वार्ड में अभी तक आक्सीजन पाइपलाइन का कनेक्शन भी नहीं किया गया है। प्रतिमाह 350 बच्चे होते हैं भर्ती
एनआइसीयू 12 बेड का है, जबकि एसएनसीयू में 16 बेड हैं। दोनों वार्ड में प्रतिमाह 350 बच्चे भर्ती हो रहे हैं। नवजात की संख्या अधिक होने की वजह से कइयों को समय पर बेड नहीं मिल पाता है। कोरोना की दूसरी लहर कम होने के बाद दो महीने (जून और जुलाई) में यहां 660 नवजात को भर्ती कराया गया। फर्श पर ही रात गुजारते हैं नवजात के अभिभावक
एनआइसीयू में जहां बच्चों को बेड मिलने में काफी कठिनाई होती है, वहीं उनके तीमारदार को बाहर फर्श पर बैठकर दिन-रात काटना पड़ता है। तीमारदार के लिए वर्ष 2014 में अलग से वेटिग हाल बनाने का निर्देश तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने दिया था। बावजूद इस पर अभी तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। सबसे ज्यादा परेशानी वैसे माताओं को होती है, जिनके नवजात एनआइसीयू में होते हैं। उन्हें स्तनपान कराने के लिए घंटों फर्श पर रहना होता है। अभी नवजात इन वजह से आते हैं एनआइसीयू
संक्रमण व अंडरवेट से 60 फीसदी
सांस लेने में तकलीफ से 20 फीसदी
अन्य कारणों से 20 फीसदी -----
तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए दवाओं की खरीद की जाएगी। यह अभी प्रक्रियाधीन है। चिकित्सकों और कर्मियों की टीम तैनात की जा रही है। जहां कमियां है, उसे ठीक किया जा रहा है।
डा राजकुमार सिंह, प्रभारी. जिला महामारी रोग नियंत्रण विभाग